पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०६

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06** पद दिले हृदिराज, 'चंद्रिका हृदय नवीन वत्सरे पद दिल प्राननाय । ओ वत्सरे दिन हेन विधि पुन : देन जेन । घरे ए वासना मन पूर्ण जगन्नाच ।३६ आज किवा सुखि होलो जीवन बेंचे छिले ताई जीवन पाईले दिन ऐमन प्राननाधेर जन्म दिन दिला दरसन । देख 'चंद्रिकार' आज किया सुख हदि माझे. आनंदेर आज साज से छे मन ।३७ कि आनंदेर दिन आज हेरिनु नयने । इवर समान दिन नहिक ए भुवने । हरिश्चंद्र प्रानपति आज तारे जन्म-तिथि, विधि सुख दित्त अति अजि चदिश' मने।३८ एई दिन पुन : हेरि मने वासना । नवीन वत्सरे आई पद तारे सुखे राखुन प्रभु एई कामना । पुन: एई दिन हेरी एकांत वासना करी, सुख उपजिल नाना ।३५ शुनियाश्चि तव कृपा पतित-गामिनी । पाइवे कोचाये तबे पतित आमार तुल्य, मात्र कर्म जार दिवस-यामिनी । सर्वस्य स्वरूप जार मिथ्याचार व्यवहार, हिंसा छल त मद्य मांस ओ कामिनी ४० निभूत निशीथे सई ओ वांशी बजिल । पूरित करिया बन भेदिया गगन धन, जे कॉपाईया समीरन रबे गाजिल । स्तंभित प्रवाह नीर ताड़ित मयूर कोर, कंकारिया तरगन एक तान साजिल "हरिश्चंद्र श्याम-बांशी-स्वर कामदेव फांसी कुणबघु सुनियाई आर्यपश्च त्याजिल ॥४१ कोथाय भाछ जोहे प्रिय अबला-जीवन प्रानधन श्यान-धन । नव-नील-वर्ण-तन पूर्ण-चंद्र-निभानन । वित वंशिकास्वन प्रसन्न-बदन । कर दु:ख विनाशन ओहे गोपिका-रमन । आशिया बोद्धायन दाओ दर्शन । 'हरिश्चन्द्र निवेदन सुन दिया किछ मन । ओई पदे समर्पण आहे गो जीवन ।४२ सई मजाले मजाले श्याम मजाले आमाय । सतत बांशीर ध्वनि करे मोरे पागलिनी सई कांदाले कांदाले श्याम कांदाले आमाय । बांशी ते गहन बने डाके काला घने चने, सई मताले मताले श्याम मताले आमाय ।४३ केह जाओ गो जाओ मधुपुरि ते । बुझाईए सेई प्रानेर श्यामे अनिले । बल पिया प्रानधने राधा जे यांचे ना प्राने । तोमार विच्छेद-वान नाहि पारे सहित ४४ मदन मोहन मधु-सूदन दयामय । बलि शुन गुनमनि सेवा राधा विनोदिनी विरहे व्याकुल धनि चल गो सराय ।४५ ओहे श्याम आछे कि आर आमाय मने । सून हे श्याम त्रिभंग दिया ए प्रनय भंग । सेथाय कुषजा संग मुले ए दु:खिनी जने । सुन हरि प्रानधन आमार ए निवेदन । आर कि ओहे दर्शन दिवे नाए वृन्दाबने ।४६ गजल तेरी सूरत मुझे भाई मेरा जी जानता है। जो झलक तूने दिखाई मेरा जी जानता है। अरे जालिम तेरे इस तीरे निगह से हमने । चोट जैसी कि है खाई मेरा जी जानता है। सायगे जहर नहीं डूब मरेंगे जाकर । जो है कत्ल करके न खबर खी मेरे कातिल अफसोस जाँ इसी दुख में गधाई मेरा जी जानता है। प्यार की यह तेरी चितवन व नशीली आंतें । दिल को किस तरह है भाई मेरा जी दे के जी और पै जीने का मजा तो बेठे । जी पैबन आर्ड मेरा जी जानता है। सन की फौज के या उठ गए दिख हार गया । । ऑस तूने जो स्माष सा हो गया शव को तेरी सूहबत का खयाल । रात वह फेर न फेर न आई मेरा जी जानता है। दाग दिल पर य होगा कि तेरे कूचे तक । थी 'रसा' की न रसाई मेरा जी जानता है । दिल मेरा ले गया दगा करके । बेवफा दित की शब घय हीदी हमने । की बदा करके। समाई मेरा जी जानता है। जो जानता है। जो लड़ाई मेरा जी जानता है। वफा करके। वसा जुल्फ पहा शुअतारू कह तो क्या मिला तुझको । दिलजलों को करके। वक्ते रेहलत जो आए वाली पर । सूब रोए गले लगा सर्व कामत गजब की चाल से तुम करके । भारतेन्दु समग्र ६६