पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८०

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जव्यलपुर 'कविवचन सुधा २० जुलाई सन् १८७२ के अंक में यात्रा वृत्तान्तों की कड़ी में छपा सम्पादक के नाम पत्र । श्रीयुत अपि पचन सुधा संपादक समीपेषु महाशय मेरी इच्छा है कि मैं अपनी मध्य देशीय और बंबई की यात्रा का सविस्तार समाचार लिखकर आपके पत्र द्वारा नापने देशवालों पर विदित करे जिसमें लोग इसे पढ़कर सज्ञ हो जाय और श्राशा रखता हूँ कि आप को स्थान देने में कुछ असमंजस न होगा। मैन ब्राप की पवित्र नगरी से दूसरी तारीख को संध्या समय दस बजे प्रस्थान किया और समय राजपाट पहुँचा गाड़ी छूटने को केवल पांच मिनट का विलंब था । झट टिकट लेकर आरोहण किया और थोडे समय में मोगलसराय में गहुँचा । वहाँ पर एक दूसरे गाड़ी में चढ़ा और निरंतर चला तो सूर्योदय होते होते नेनी क स्टेशन पर पहुंचा और यहाँ उतर पड़ा क्योंकि वह गाड़ी इलाहाबाद जाती थी और मुझे जाना चा उवागपुर । यहाँ हम लोगों ने (ज्योरि एक मित्र भी मेरे साथ थे) नित्य शेच किया और वाहा कुछ खाय पर वहाँ काहे जो कछ मिलता है । दूध के लिए एक मनुष्य को पैसा दिया तो वह नह बनाये हुए आया और बोला कि भी भ नही आया । फिर हम लोगों ने पूछा कि भला यहाँ जिलेबी मिलेगी उसने कहा हाँ । पेसा देकर मेवानी शाह की जिलयी उठा लाया परंतु बेसी तेल की न समझिए जेसी बनारस में बनती है और टके की गार मन विक्रनी है । यह उससे नो बटकर थी । हम लोगों ने अपना अपना माथा ठोंका और इस द्रव्य को उसी मनुष्य के अंगण क्रिया । इतने में नी बजा और गाड़ी आई । फिर हम लोग चढ़े और जसरा, शिवराजपुर बरगढ़, दयारा. माणिक्यपुर. मस्कृण्डी, मजगांवा, जेतवार, सतना उचारा, मेहरी, अधरा. जोखाई. कतनी, स्नीमानाबाद सिहोरा गड. देवरी नाम स्टेशनों को पार करते हुए सवा आठ बजे रात को जबलपुर पहुंचे । मार्ग में जो बरोश हुआ वह अपकनीय है । एक नो मार्नण्ड की प्रचण्ड किरण से गाड़ी ऐसी उत्तप्त हो रही थी यदि शरीर स्पर्श घारापरला हो प्राय ना यह भ्रम होता था कि फफोला तो नहीं पड़ गया, किसी प्रकार से चेन नहीं मिलता था । यदि एकाद बार सिड़की बन जाती तो मुंह मानो प्रयनित अग्नि की चाल से मीस जता । प्वास के मारे कंठ था और मुख से प्रासर नहीं निकलते थे । जो कहीं पानी मिले भी तो अदहन के सहस । उधर क्षुधा आशग सता रही थी । आले नाते जब सलना में पहुंचे तो थोड़ी सी जिणेची लेकर खाया तब कुछ आँसे खली फिर मैहर में पक्का आम विक्रय होता था वह लिया । इसी भाँति ज्या त्यों कर करके जबलपुर कहीं टिकने का ठिकाना न मिले । थोड़ी दूर पर ना कि एक सराय है । वहाँ गए तो देखा कि एक बड़ा भारी आकर उतरे . अब यहाँ नाग कठसूखा जाता भारतेन्दु समग्र १०३६