पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०८३

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बस्ती परसों पहिली एप्रिल थी इससे सफर करके रेती में बेवकूफ बनने का और तकलीफ में सफर करने का हाल लिख चुके है । अब आज आठ बजे सुबह रे रे करके बस्ती पहुंचे । वाह रे बस्ती, झख मारने को बसती है अगर बसती इसी को कहते हैं तो उजाड़ किसको कहेंगे । सारी बस्ती में कोई भी पंडित बस्तीराम जी ऐसा पंडित नहीं । खैर अब तो एक दिन यहीं बसती होगी । राह में मेला खूब था, जगह जगह पर शहाबे का शहाबा । चूल्हे जल रहे हैं । सैकड़ों अहरे लगे हुए हैं । कोई गाता है, कोई बजाता है, कोई गप हाँकता है। रामलीला के मेले में अवध प्रांत के लोगों का स्वभाव रेल अयोध्या और इधर राह में मिलने से खूब मालूम हुआ । बैसवारे के पुरुष अभिमानी, रूखे और रसिकमन्य होते हैं, रसिकमन्य ही नहीं वीरमन्य भी । पुरुष सब पुरुष और सभी भीम, सभी अर्जुन, सभी सूत पैराणिक और सभी वाजिद अली शाह । मोटी मोटी बातों को बड़े आग्रह से कहते सुनते हैं । नई सभ्यता अब तक इधर नहीं आई है । रूप कुछ ऐसा नहीं पर स्त्रियाँ नेत्र नचाने में बड़ी चतुर । यहाँ के पुरुषों की रसिकता मोटी चाल सुरती और खड़ी मोछ में छिपी है और स्त्रियों कि रसिकता मैले वस्त्र और सूप ऐसी नथ में । अयोध्या में प्राय : सभी ग्रामीण स्त्रियों के गोल आते हुए मिले । उनका गाना भी मोटी रसिकता का । मुझे तो उनको सब गीतों में 'बोलो प्यारी सखियाँ सीताराम राम राम" यही अच्छा मालूम हुआ । राह में मेला जहाँ पड़ा मिलता था वहाँ बारात का आनंद दिखलाई पड़ता था । खैर मैं डाँक पर बैठा बैठा सोचता था कि काशी में रहते तो बहुत दिन हुए परंतु शिव आज ही हुए क्योंकि बृषभवाहन हुए । फिर अयोध्या याद आई कि हा ! यह वही अयोध्या है जो भारतवर्ष में सबसे पहले राजधानी बनाई गई । इसी में महात्मा इक्ष्वाकु, मांधाता, हरिश्चन्द्र, दिलीप, अज, रघु, श्री रामचन्द्र हुए हैं और इसी के राजवंश के चरित्र में बड़े बड़े कषियों ने अपनी बुदिशक्ति की परिचालना को है । संसार में इसी अयोध्या का प्रताप किसी दिन व्याप्त था और सारे संसार के राजा लोगइसी अयोध्या की कृपाण से किसी दिन दबते थे वही अयोध्या अब देखी नहीं जाती । जहाँ देखिए मुसलमानों की कब्र दिखाई पड़ती हैं । और कभी डॉक पर बैठे रेल का दुःख याद आ जाता कि रेलवे कंपनी क्यों ऐसा प्रबंध किया है कि पानी तक न मिले । एक स्टेशन पर एक औरत पानी का डोल लिए आई भी तो गुपला गुपला पुकारती रह गई, जब हम लोगों ने पानी मांगा तो लगी कहने कि 'रह : हो पानियें पानी पड़ल हौ' फिर कुछ जियादा जिद में लोगों ने मांगा तो बोली 'अब हम गारी देव' ! वाह ! क्या इंतजाम था ! मालूम होता था रेलवे कंपनी स्वभाव (Nature) की बड़ी शत्रु है क्योंकि जितनी बातें स्वभाव से संबंध रखती हैं अर्थात खाना, पीना, सोना, मलमूत्र त्याग करना इन्हीं का इसमें कष्ट है । शायद । इसी से अब हिंदुस्तान में रोग बहुत हैं । कभी सराय को खाट के खटमल और भटियारियों का लड़ना याद आया । यही सब याद करते कुछ सोते जागते हिलते हिलते आज बस्ती पहुंच गए ! बाकी फिर ! यहाँ एक नदी है उसका नाम कुआनय । डेढ़ रुपया पुल का गाड़ी का महसूल लगा। बस्ती के जिले की उत्तर सीमा नेपाल, पश्चिमोत्तर की गोडा, पश्चिम-दक्षिण अयोध्या और पूरब गोरखपुर है । नदियाँ बड़ी इसमें सरयू और इरावती । सरयू के इस पार बस्ती उस पार फैजाबाद । छोटी नदियों में कुनेय, मनोरमा, कठनेय, आमी, बानगंगा और जमबर है । बरकरा लाल और जिरजिरवा दो बड़ी झील भी हैं । बाँसी, बस्ती और मकहर तीन राजा भी हैं । बस्ती सिर्फ चार पाँच हजार की बस्ती है पर जिला बड़ा है क्योंकि जिले की आमदनी चौदह लाख है । साहब लोग यहाँ कुल दस बारह हैं, उतनेही बंगाली हैं। अगरवाला मैंने खोजा एक भी न मिला, सिर्फ एक है वह भी गोरखपुरी। पुरानी वस्ती खाई के बोच में बसी है । राजा के महल बनारस के अर्दली बजार के किसी मकान से मदानही महल के सामने मैदान, पिछवाड़े जंगल और चारों ओर खाहें है । पाँच सौ खटियों के पास जो आगे किसी जमाने में राजा के लूटमार के मुख्य सहायक थे। अब राजा के स्टेट के मैनेजर कूक साहब है। यहाँ के बाजार का हम बनारस के किसी भी बाजार से मुकाबिला नहीं कर सकते । महज बेहेसियत । महाजन एक यहाँ है वह टूटे खपड़े में बैठे थे । तारीफ यह सुना कि साल भर में दो बेर कैद होते हैं क्योंकि महाजन पर जाल करना फर्ष है और उसको भी छिपाने का शऊर नहीं । यहाँ का मुख्य ठाकुरद्वारा दो तीन हाथ चौड़ा और उतना ही लंबा और उतना ही ऊंचा बस । पत्थर का कहीं दर्शन भी नहीं । यह हाल बस्ती का है ।। सरयूपार की यात्रा १०३९