पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०९

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इल्जमगारू-गर्भ-रलसम बनि अरक बृच्छ चढ़ि दरस दै अतिथि संक सब हरि लई। बेद-सार हरिनाम दान करि प्रगट चलायो श्री निंबादित्य सरूप धरि आपु तुंग विद्या भई १५७ अनुदिन हरि-रस निरतत जुग दुग नीर बहायो । मायावादी बननाद मद रामानुज मर्दन कियो । नित कृष्ण मधुपान करि समनेह ध्यान न अन्य को। अगनित तम पाखंड प्रगट हवै धूरि मिलायो । जग कठिन संखला सिथिल कर बीर बनक सों सुदृढ़ भक्ति को पंथ चलायो । प्रगट प्रम चैतन्य को ।६३ वादी-गगन प्रतच्छ सेस बनि दरसन दीनो । ये मध्य संप्रदा के परम प्रेमी पंडित जग-विदित । गुरु को चार मनोरथ पन करि पूरन कीनो । बिजय-ध्वज अति निपुन बहुत बादी जिन जीते । जा सरन जाइ निरद्द ह्वै जीव नरक-भय तजि जियो । माधवेन्द्र नरसिंह भारती हरि-पद प्रीते । मायावादी घननाद मद रामानुज मईन कियो ।५८ | ईश्वरपुरी प्रकाशभट्ट रघुनाथ अचारज। दृढ़ भेद भर्गात जग मैं करन मध्व अचारज भुव प्रगट। त्रिपुर गंग श्रीजीव प्रबोधानंद सु आरज । प्रथम शास्त्र पढ़ि सकल अरंभन खंडन ठान्यौ । अद्वैत सुनित्यानंद प्रभु प्रेम-सूर-ससि से उदित । द्वैतवाद प्रगटाइ दास-भावहि दृढ़ मान्यौ । ये मध्य संप्रदा के परम प्रेमी पंडित जगविदित ।६४ थापि देव गोपाल धरनि निज बिजय प्रचार्यो । जान्यौ वृंदाबन रूप हरिदास ब्यास हरिवंस मिलि । मतिमडित पंडितगन-बल खंडित करि डार्यो । निबारक मत विदित प्रेम को सारहिं जान्यौ । दैसंख चक्र की छाप भुज दई मुक्ति सारूप्य झट । जुगल-कोल-रस-रीति भलें करि इन पहिचान्यौ । दृढ़ भेद भगति जग मैं करन मध्व अचारज भुव प्रगट ।५९ सखी-भाव अति चाव महल के नित अधिकारी। श्री विष्णु स्वामि-पथ-उदरन जै जै बल्लभ राजवर । पियह सो बढ़ि हेत करत जिन 4 निज प्यारी । तिलंग वस द्विजराज उदित पावन वसुधा-तल । जग दान चलायो भक्ति को भारद्वाज सुगोत्र यजुर साखा तैत्तिर कल । ब्रज-सरवर -जल जलज खिलि। यज्ञनरायन कुलमनि लक्ष्मनभट्ट-तनूभव । जान्यो वृंदाबन रूप हरिदास व्यास हरिवंस मिलि ।६५ श्रीलक्ष्मी धव । ये वृंदावन के संत सब जुगल भाव के रंग रँगे । श्री गोपनाथ-विट्ठल-पिता भाष्यादिक बह ग्रंथकर । मौनीदास गुविंददास निंबार्कसरन श्री विष्णु स्वामि-पथ-उद्धरन जै जै वल्लभ राजवर ।६० ललितमोहिनी चतुरमोहिनी आसकरन जू । सखी-चरन राधाप्रसाद गोवर्द्धन दवा। निज प्रेम-पंथ सिद्धांत हरि बिट्ठल बपुर्धार कै कयौ। कंबल ललित गरीबदास भीमा सखि-सेवा । श्री श्री वल्लभ-सुअन विप्रकुल-तिलक जगत-वर । ग्रीष्म-दिवाकर । श्री वल्लभदास अनन्य लघु बिट्ठल मोहन रस पगे। ये वृंदाबन के संत सब जुगल भाव के रंग रंगे ।६६ जन-चकोर हित-चंद भक्ति-पथ भुव प्रगटावन । रघुनाथ-सुअन पंडित-रतन श्री देवकिनंदन प्रगट । अंतरंग सखि-भाव स्वामिनी-दास्य दृढ़ावन । किय रसाब्धि नव काव्य कृष्ण-रस रास मनोहर । दैवी-जन मिलि अवलंब हित इक जा पद दृढ करि गयौ। निज प्रेम-पंथ सिद्धांत हरि बिट्ठल बपु धरि कै कह्यौ।६१ | श्री गोकुल-ससि सेइ लहे अनुभव बहु सुंदर । पिता पितामह प्रपितामह की पंडितताई । भक्ति रीति हरि प्रीति भलें करि आपु निभाई। जय वल्लभ-कुल-कलपतर । गोपीनाथ प्रगट पुरुषोत्तम प्यारे । जानकी-उदर-अंबुधि-रतन पितु-गुन जिन में विदित खट। रघुनाथ-सुअन पंडित-रतन श्री देवकिनंदन प्रगट ।६७ श्री गिरिधर गोविंद राय रुक्मिनी दुलारे । पीतांबर-सुत विद्या-निपुन पुरुषोत्तम वादीाजत । बालकृष्ण श्री वल्लभ माला विजय प्रकासन । श्री वल्लभ पाछे बुधि-बल आचार्ज कहाए । श्री रघुपति जदुनाथ स्याम-घन भव-भय-नासन । निरनय बाद-बिबाद अनेकन ग्रंथ बनाए। मुरलीधर दामोदर सुकल्यानराय आदिक कुँवर । गाड़ा पैं धुज रोपि जयति वल्लभ लिखि तापर । ग्रंथ साथ सब लिए फिरे जीतत चहुँ दिसि धर । ज्य वल्लभ-कुल-कलपतर ।६२ श्री बालकृष्ण-सेवा-निरत निज बल प्रगटायो अमित। जग कठिन सृखला सिथिल कर प्रगटि प्रेम चैतन्य को। पीतांबर-सुत-विद्या-निपुन पुरुषोत्तम वादींजित ।६८ श्री गोपीजन-सम हरि-हित सब सों मुख मोर्यो । लोक-लाज भव-जाल सकल तिनुका सो तोर्यो । श्री द्वारकेश ब्रजपति व्रजाधीश भए निज कुल-कमल । माया-मत-तम-तोम-विमर्दन निज फलित प्रफुल्लित जगत मैं गुरुवर निज फलित प्रफुल्लित जगत मैं उतराहर्द भक्तमाल ६९