पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११०

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शास्त्रों की शिक्षा समान भाव से मिलती है। यद्यपि पश्चिम में रोम और पैरिस के प्राचीन विश्वविद्यालय वर्तमान विश्वविद्यालयों के आदि गुरू समझे जाते हैं परन्तु केवल छ शताब्दियों से पहिले उनका सूत्र पात होना सुनकर हमें तो ऐसा ही विश्वास होता है कि भारतवर्ष के विद्यालयों ही का उदाहरण लेकर जगत में वर्तमान विश्वविद्यालयों की नींव पड़ी है। परिहासिनी अर्थात हिन्दी-पत्रों से हास्य रस के विषयों का संग्रह। अपने मित्रों के लिए" हँसी"" दिल्लगी" " चीज की बातें" और चुटकुले | भारतेन्दु ने लिखे थे, बाद में जिसका संग्रह" परिहासिनी" उन्होंने स्वयं प्रकाशित कराया था। इसका रचना काल १८७५ से सन् १८८० के बीच है। निज मित्र गंण ठाकुर कविराज श्यामल दासजी, राजा गिरि प्रसाद सिंह, बाबू बदरी नारायण चौधरी, बाबू बालेश्वर प्रसाद, और बाबू दुर्गा प्रसाद के चित्त विनोद के अर्थ हरिश्चन्द्र ने संगृहीत किया। बनारस हरिप्रकाश यन्त्रालय में जगन्नाथ प्रसाद ने मुद्रित किया परिहासिनी अर्थात हँसी, दिल्लगी, पंच, चीज की बातें और चुटकिले चीज की बातें। कृष्ण प्रसाद नो दामोदर से कहा "तुमने हमारा भेद क्यों खोल दिया ।" "ह हा !! इस को तुम भेद खोलना कहते हो ? जब हमने जाना कि हम उसको नहीं छिपा सकते तो हमने क्या बुरा किया कि उस भेद को ऐसे आदमी में कह दिया जो उसे छिपा सकता था" ।। 24* भारतेन्दु समग्र २०६६