पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११३३

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आगमनान्तर अपनी फारसी अर्थात फारस देश की भाषा के सन्मुख प्राकृत का नाम हिन्दी अर्थात हिन्द की भाषा रक्खा ।" "प्राचीन रीत्यानुसार चलने वाले इसी को हिंदी भाषा कहते हैं और इसी की वृद्धि चाहते है । परन्तु वे महाशय एक और स्थान में कहते है कि "भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसको सम्पूर्ण लोग वे प्रयास समझ जाये" और आप ही ऐसे ऐसे क्लिष्ट शब्द लिखते हैं कि फारसी खाओं के अतिरिक्त और लोगों को यूनानी भाषा जान पड़े हम नहीं जानते कि वे यहाँ की भाषा किस को ठहराते हैं । कितने लोग कहते हैं हिन्दी उस भाषा का नाम है जिसमें संस्कृत शब्द विशेष है वह भाषा है जिसमें फारसी और अरबी शब्दों की अधिकता हो हम लोग भी इसी वर्ग के है और सदा अपने हिंदी ही की उन्नति चाहते है आप लोग जानते होंगे कि प्रयाग में एक यूनीवर्सिटी अर्थात प्रधान शिक्षालय नियत कराने के हेतु लोग बड़ा श्रम कर रहे है। बहुतेरों ने इस विषय में अपनी सम्मति प्रकट की है। परन्तु प्रोग्रेस के सम्पादक को यह बात पसन्द नहीं है । इस विषय पर हम लोग अवकाश के समय अधिक ध्यान देंगे। सम्पादकीय नोट 'कविवचन सुधा' के किसी न किसी अंक में प्रकाशित महत्व के कुछ सम्पादकीय नोट दिये जा रहे हैं इनमें भारतेन्दु की देश भक्ति, भाषा भक्ति तथा तात्कालिक भारत की आर्थिक दशा के सन्दर्भ में उनकी चिंता पर प्रकाश पड़ता है। साथ ही राजभक्ति से देश भक्ति की ओर अग्रसर उनकी मानसिकता का अन्दाज मिलता है। 'भुतही इमली का कनकौआ" नामक लेख पर राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने आपत्ति की कि इस लेख में परोक्ष रूप से उनका मजाक उड़ाया गया है। गवर्नर से भी शिकायत की गयी। इसी प्रकार "मर्सिया" के छपने पर भी अंग्रेज नाराज हुए। उन्होंने कविवचन सुधा की सौ प्रतियों की सरकारी खरीद को बन्द करने की धमकी दी। भारतेन्दु को कविवचन सुधा के २० अप्रैल १८७४ के अंक में एक स्पष्टीकरण छापना पड़ा। -सं० शंका शोधन "मर्सिया में हमारे अनेक ग्राहकों को शंका होगी कि वह राजा कौन था । इस्से अब हम उस राजा का अर्थ स्पष्ट करके सुनाते हैं । वह राजा अंग्रेजी फैशन था जो इस अपूर्ण शिक्षित मंडली रूप अंधेर नगरी का राज करता था जब से बम्बई और काशी इत्यादि स्थानों में अच्छे अच्छे लोगों ने प्रतिज्ञा करके अंग्रेजी कपड़ा पहिरना छोड़ देने की सौगद खाई तब से मानो वह मर गया था ।" 'कविवचन सुधा (८ जून १८७४) में छपा फिर भी कविवचन सुधा की सरकारी खरीद बन्द हो गयी। अंत में भारतेन्दु को अपने पाठकों से ही आग्रह करना पड़ा। "अप्रसन्नता" "आजकल हमारे पत्र के अष्टमंगल आये हैं बहुत से लोग हम लोगों से अप्रसन्न हो रहे है श्रीयुत डायरेक्टर साहब ने पत्र के सम्पादक को लिख भेजा कि मर्सिया ऐसे बुरे आर्टिकल लिखने से तुम्हारे पत्र का गवर्नमेंट एड बन्द किया गया ।"

पत्रकार कर्म १०८९