पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११३७

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बनारस अब की यहां दिवाली भी अच्छी नहीं भयी । शुक्रवार को पानी बरसने लगा तो दूसरे शनिवार तक सूर्य दृष्ट नहीं पड़े । सोमवार वाले दिन वायु का वेग इतना पचण्ड था कि खिड़कियों पर भी दीये न ठहर सकें। मधुराम या माधोराम नामें एक कोई ब्राहमण दशाश्वमेध घाट पर रहता है उस का आगमन किसी प्रकार से एक पंजाबी के घर हो गया और वहां उसको किसी मृगनैनी के हाव भाव ने आसक्त कर लिया और यह बराबर वहां आने जाने लगा । जब इस बात का समाचार उस घर के मालिक को हुआ उसने इसका आना बंद कर दिया । फिर उसको कैसी व्याकुलता हुई होगी प्रेमी लोग भली भांति जानते हैं । दैवयोग से उस मालिक का एक पुत्र बीमार पड़ा । लोगों ने कहा अमुक जन भूत विद्या जानता है । तुमारा पुत्र उसी के कारण बीमार हुआ है । उन्होंने उसको बुलाने का उपयोग किया पर उसने उत्तर दिया कि जब तक वे आप मेरे घर पर न आवै मैं न आजुगा यह उसके पास गये और वह आया और किसी प्रकार से दवा दारू करके लड़के को अच्छा किया, तब ७०० रु. और दुशाले की इच्छा प्रकट की और कहा कि यदि तुम न दोगे तो अबकी तुम्हारे पुत्र को मार ही डालेगे । ये कुछ पढ़े लिखे भी हैं इससे यह जानते हैं कि यह सब झूठ है । पर इनके घर वाले मानते नहीं । अतः वह १०० लेने पर प्रस्तुत हुआ है पर वह बड़े विकल हे कि क्या करै। हम लोगों ने सुना है उसका यहीं व्यापार है कि लोगों को धमका धमका कर रुपया पुषावे । क्या ऐसे आदमियों को सार नहीं पकड़ती। इनका तो भलीमाति दण्ड करना चाहिए । (२) पहली नवम्बर का प्रातःकाल साढ़े सात बजे गवर्नर जनरल बहादुर काशी में आये । महाराज विजयानगरम और महाराज बनारस और अन्य रईस आगे से मिलने के लिए स्टेशन पर ठहरे थे । स्टेशन की सजावट न्यूनाधि उसी प्रकार की थी जैसी डयूक साहब के समय हुई थी । इस पार आकर श्रीयुत लार्ड साहिब और काशीराज एक ही गाड़ी पर और सब लोग अपनी अपनी गाड़ियों पर आरोहण करके महाराज की नदेसर वाले कोठी में गये । दोपहर के अनन्तर दर्बार हुआ था । रात्रिकाल में रोशनी प्रसन्नता योग्य हुई थी और आतिशवाजी का वृतांत लिखा नहीं जाता जिन्होंने देखा वही लोग जानते हैं । तीसरी को प्रातःकाल गाजीपुर पधारे। कविवचन सुधा जिल्द दो नं० सनं० १८७० "कविवचन सुधा" और "हरिश्चन्द्र मैगजीन" में प्रकाशित कुछ विज्ञापन और सूचनाएँ द्रष्टव्य हैं। इनसे भारतेन्दु के अध्येताओं को उनकी रुचि, धर्म और समाज के प्रति उनका लगाव तथा शान विस्तार की उनकी ललक का पता चलता है।भारतेन्दु व्यक्तित्व की समग्रता को यह सामग्रियां समेटें हैं। सं० शिवाला हटाकर सड़क बनाने पर। सं० "शिवाला" काशी में चौक से गुदोलिया तक जो नई सड़क निकली है उसके बीच में एक शिवाला है ईश्वर उस्को खुदने से बचावै नहीं तो हिन्दुओं के चित्त में इसका बड़ा खेद होगा निश्चय है कि सरकार इस पर ध्यान देगी और अवश्य ध्यान देना चाहिए । यह भी सुना गया है कि किसी पंडित ने यह कह दिया है कि यह शिवलिंग तो वेश्या द्वारा स्थापित है इस्से खोदने में दोष नहीं : धिक धिक उस्की बुद्धि ऐसा जो सोचा M* पत्रकार कर्म १०९३