पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११६

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BHOGH कयौ सोई हठ करि के कियो । । तातें कोउ नहिं धरत पाव तेहि पूजित ठौरहि । श्री बूला मिशन उदार अति बिनु रितुह बालक दियो।१३५ | ठाकर जिन सों सानुभाव कहिए का औरहि । मीराबाई की प्रोहिती रामदास जू तजि दई । सेये जिन अपन बिसारि के भरी निरतर भाँवरी । हरि-गुरु परम अभेद भाव हिय रहत सदाई । भगवानदास सारस्वतै दई प्रभुन श्री पावरी ।१४१ याही तें गुरु-कीरति इन हरि-सनमुख गाई । भगवानदास श्रीनाथ के हुते भितरिया सुखद अति । मीरा भाख्यौ हरि-चरित्र गाओ द्विजराई । कछ सामग्री दाझि गई इक दिन अनजाने । सुनि अति कोपे इन जाने नहिं वल्लभराई । गोस्वामी सेवा में बाहिर किए रिसाने । लाख द्वैध भाव जि गाँव सों दूर बसे मति गुरु भई। | सुनि जन अच्युत गोस्वामी सों रोइ बिनय की । मीराबाई की प्रोहिती रामदास जू तजि दई ।१३६ नाथ हाथ गति प्रभु संबंधी जीव निचय की । सेवक गोवर्द्धननाथ के रामदास चौहान हे । नि कर गहि लै गिरिराज पै कही सेइ अबतें सुमति। भगवानदास श्रीनाथ के हुते भितरिया सुखद अति।१४२ जब प्रगटे प्रभु प्रथम गोवरधन गिरि के ऊपर । दुज अच्युतदास सनोड़िया चक्रतीर्थ पै रहत है। नाम नवल गोपाललाल त्रय-दमन मनोहर । आ3 नित सिंगार समै श्रीनाथ-दरस हित । तब श्री बल्लभ इनकों सेवा हरि की दीनी । रहै मैंडैया छाइ परम रति मैं मति भीनी । पुनि निज थल कों जात हुते ऐसो साहस चित । नित ब्रज को गारस अरपिके सेवत हरि सुख-खान हे। नाथ-परिक्रम दंडवती इन तीन करी र सेवत गोबर्द्धननाथ के रामदास चौहान हे१३७ श्री गोस्वामी श्री-मुख करी बड़ाई बह तब द्विज रामानंद विछिप्त बनि जगहि सिखाई प्रेम-बिधि ।। है गुनातीत ये भगवदी प्रभुन-भगति रस बहता गरु रिसि कार के तज्यौ तऊ हरि जेहि नहिं त्याग्यौ । | दुज अच्युतदास सनोडिया चक्रतीर्थ पे रहत हे दरसायो सिद्धांत यहै पथ को अनुराग्यौ । दुज गौड़ दास अच्युत तही प्रभु बिरहानल तन दहे। बिकल पथहि पथ फिरत खात तन की सुधि नाहीं । । सेवा पधराई श्री मोहन मदन लाल की । निरखि जलेबी हरिहि समी अति चित-चाही । | आपहु बैठे पाट प्रगटि तन छबि रसाल की । ताको रस हरि के बसन मैं देख्यौ गुरुवर भावनिधि । सेये नीकी भाँति मदन-मोहन रिझवारे । द्विज रामानंद बिछिप्त बनि श्री गोस्वामी जिनहिं नमत लषि अपन बिसारे । जगहि सिखाई प्रेम-बिधि ।१३८ | प्रभु-असुर-विमोहन-चरित लषि बद्रिनाथ दरसन लहे। छीपा-कल-पावन भे प्रगट विष्णुदास वादीद्र-जित । । दुज गौड़ दास अच्युत तहीं प्रभु बिरहानल तन दहे।१४४ हरि-सेवक बिन लेत न जलहू प्रेम बढ़ावन । श्री प्रभुन सरूप सुजान सुभ अच्युत अच्युतदास द्विज । भट्टना के परस लेत नहि जानि अपावन । प्रभु सँग पृथ्वी-परिक्रम करि पद-पाँवरि पूजत । श्री गोस्वामी-चरन-कमल-मधुकर ये ऐसे ।। प्रभु के लौकिक करम धरम तिन कहं नहि सूझत । स्वाती-अंबर को चातक चाहत है जैसे । जिन लषि नर सुर असुर बिमोह परत भव-सागर । धनि धनि जिनके प्रम-पन अन्याश्रय गत धीर-चित । गुनातीत प्रभु-चरित-मगन मन जन नव नागर । छीपा-कुल-पावन मे प्रगट विष्णुदास षादींद्र-जित ।१३९ | मोहित जन लषि प्रभु दरस दै कहे सगुन प्रागट्य निज। जन-जीवन प्रभु की आनि दै मेघनि नहि बरसन दये।। श्री प्रभुन सरूप सुजान सुभ एक समै श्री महाप्रभू दरसन करिबे हित । अच्युत अच्युतदास द्विज ।१४५ आवत हे सब सीहनंद के वैष्णव इक चित । नरायनदास प्रभु-पद-निरत अंबालय में बसत हे । लागे करन रसोई मग में घन घिरि आये। नृप-नौकर अवसर न पावते प्रभु दरसन को । निहचै जानि अकाज अनन्यनि अति अकुलाये । उत्कठित दिन राति धन्य धनि जिनके मन को । चटि आई गरु की कानि चित मघवा-मद जिन हरि लये।| कब जेहो भेया श्री वल्लभ के दरसन हित । जन-जीवन प्रभु की आदि दै मेघनि नहिं बरसन दये।१४०/चाकर राषे सुरति देन को यो छन छन तिन । भगवानदास सारस्वत प्रभात श्री पाँवरी | बहु भेट पठावत हे प्रभुहि ऐसे ये भागवत हे। श्री आचारज जाइ बिराजे इनके घर जह। । नरायनदास प्रभु-पद-निरत अंबालय में बसत हे।१४६ है नित उठि प्रातहि करहिं दंडवत ये सादर तहं । | नरायनदास भाट जाति मथुरा में निवसत रहे ।। भारतेन्दु समग्र ७६