पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१४३

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Done. - age बदती पनि दैवज्ञ मिलन को समय बावत। टि आंद ने दि घाट रकम करी और की भीर ।२२० श्री 'हरिनंद' सुकूज-सेज नीरथ जानह जिय। । करी और की और लखत सिसता बलिटी।। गह अपर-रस-दान यान भागन पाई तिय ।२५ । दियो नितान भार पाखो बीचहि काट लूटी। बेस-सांप-संग्रौन सात अिनु चार सौति कह । कृष्ट उमगे 'हरिचद भई धिह गुन-श्रागार ।। देशी पट भी नष सागत जिव अठ दृग बारह । चपल मैन बढि चले मदन परसत नव नागार ।३१ बारह च म पनि शंट मधून नहि जिय। जहाहांन तन नरुनई नाच ग पो गाफ जाइ । करहनकम देश होड़ जय भाग मिती गिय २५ लागे लांक लोइन-भरी लोइन खेति लगाइ ।५३२ लोइन लेति लगाइ फेरि छूटे न इडाए । निलन आगोफिक परिकई बातिलति सखी सिहाति । बनत चांदशा नैन लगे डोलन संग पाए। आव फ्रान्ति में देखियत उर उफसोही भांति।२६। लाश लट्र 'हरिचंद, लट्र सम देखत छाती । उर उकसोटी भति बनक कष्ट कात न आये। । भट्र फिरत सैम लगे तरुनई लखि उत्सहाती ।३२ देते ही सुख होइ तिहारे मनहि रिझाने। सहज निश्कन, स्याम चि. मुनि, सुगन्ध, मुरुमार । नाम निग्यो 'हरिचंद जगल बय मिलन कौकिकागनत नमन पथ अपच, माखविधर सुथर बार ।९५ नैन चैन कङ् भये औरही गलन श्रोकिक ।२६८ विधुरे सुथरे यार देखि उरझयौही चाहत । मानत नाहिशा-कानि गाव नहि ननिक निचाहत । भावक उभरोही भयो, कड़क परयौ भराभाय । पूरा में धाँध गर्दाक रहन माकन के छींकन । सीपहरा के मिस हियो निसि-दिन देत जाय ।२५२ चोटिन में गाँध जान केस गर्गास साहब सचीकन ।३३ निसि-दिन हरीत जाय कह हौंस हस के जाने। वई कर बोरी यह. मोरो क्यों न विचार ।। आंग-मिचौनी के मिस सास-दग नापान होगे। जिनहीं उरमयो मो हियो तिनही सुरझे बार ४३० हिय हरखे हरिचंद पियांह लांस होस लोही। तिनही मरक्षे चार बार जिनपे में धारी । कटि सूछमता प्रगट करत भावक उभरोही ।२७ को देत कर-परसनि सखि यह तो गिरधारी। उन धिन को 'हरिचर' परम प्रग मनमथ- पर । अपने अंग के जनि के जोबन-नृपात प्रवीन । रोम-पात उकसाति पीठ नागे घेई कर ।३४ म्नन-मन-नयन-नितंब की बड़ी इजाफा कोन २ कन सटि, भूज कर उर्लाट खरी सीस-पट गरि । बड़ो इसका कोन सर्वान जागीर बदाई। काको मन धन यह गं बांधांनार । कंकि भारत अंजन सारी विगत रिगई। उरो बाँनिहारि गाँध मन मोर न जाने । मदन नको जान करन कारत ना मन के । मीनि सरस मनेन मगंधहूँ मे माने । जोवन नए श्रधिकार बढ़ाए भागने मन के १२८ ननि नहि हरिचंद मोहि चोनि मुखड़ न बन । इक भी पहणे पर, यू.. को हजार। उफ चीरन मीस फूल को कपणः भन कन ।३५ किते न भौगुन जग करन चै नै नढ़नी पार ॥४६१ बे ने चढ़ती चार कण-मरया नोरन । इट इवध जगत में सटकारं मुकमार । मंजत धीरज-मेड गाज-सामाँ सप पोरन । मन बांधत बेनी बंधे नीग छवीणे वार ।१०३ बेग कठिन 'हरिचंद भेद यह ताप दुई दिक । | नील छबी बार हरन मन सच ही भनिन । चतुर होत एक पार जानि के भूड़त हि इक ।२९ वघे, घटे, सटकार गूंथे मोती पॉतन । अहि सिवार अाल आप सबन को गरम मिटायें । देह दहिया की बदै उयों ज्यों जोमन-जोति । अंखियन अरूझे रहत न सुरझें छूटे छुटाने ।३६ त्यो त्यो लखि सौते सबै बदन मलिन दुति होति ।४० टित तक टि परत मुख दिगो इतो उदोत । बन्दन लिन दति होति सौत गुरुजन सुख पावत । बंक कारी देत ज्यो वाम रुपैया होत ।४४२ लाल हजारन भांति मनोरथ डर उपजायत । । बाम रुपैया होत उलया ते व्यवहारन । तवत गरब हरिचंद जिती जुषती जग महियाँ। सोलह सै गुन बढ़त बदन-सोभा तिमि वारन । ज्यौ ज्यौ उलहति चात सलोने देह दुपहिया ।३० | अमल कमल रिण पाँत रहत जिमि अमला और जुटि । । सांस पैहि सम सास-बदनी के कटिल अराक टि ।३७ अवध नागरि-तन-मुथुक हि जोवन-आमिल जोर।। सतसई सिंगार १०३