पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५३

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मुखरी श्री।

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बैरिन मेरी सास बिठानी है सबै । मेरो प्यारे लाल को हो देत न कोउ बताय । अरी मैं ip देखनदेशन मोहन । | सखी संग आवे नहीं आनि कलकिन मोहि । जरी लाल यह है कीने कामरी । | सोई हम दूजी मई ही कहा कहीं री तोहि । श्ररी में. 15 जो नहिं देखन देत पिया घनश्याम री। | और कह भाव नहीं बिसरयो भोजन-पान । मोहिं अकेली निरबल अबला जान री । | चि और कछ बैगई मेरी कहलो करौं बखान । बरी, तानि फ्रानि लौ खीच्यौ मदन कमान री । सोई बन धरई सोई हो सोई सबै समाज । कहा करी कह जाऊं बतानो मोहिरी। | विष सों मोहि लागै अरी सय मिले बिना ब्रजराव अरी. कह किन और उपात सपथ है दोहरी। | कोऊ नाहिं सुनावई हो सपर लाल की प्राय । जदपि कलांकन कहत सबै अज-लोगरी। तन मन पापै वारिये हो भेद डो देहि बताय । श्ररी मै. तऊ मिटल नांह मुख लखिये को सोगरी । प्रम प्रगट जग में भयो हो बाज्ची नेह-निसान । रोनहूँ नहि देत प्रगट मोहि हायरी । नऊ आस पूरई नहीं तो कैसे चतुर सुजान । अरी में, क्यों ऐसो दुख मिटे बताय उपाय री। तोरि सिखला गेह की हो सोक-माज-भय खोय । फिरि डफ वाजत सुनि सखि आए श्याम री । 'हरीचंद' हरि सो मिलौं होनी होय सो होय । अरी.२७ होरी खेलत प्रागनाथ सुखधाम री। परवी अब कैसे रहि जाय मिलीगी धाइ के। एक वेर भरि नैन लखन दै फिर पिया जैयो बिदेसवारे। लाज डाँड जग नेह-निसान बजाइके। 'हरीचठ दौरी भामिनि प्रीति सों तुम बिन प्रान रहे वा नाही यह जिय मोडि देसवा रे। हरीचद फिर कठिन परैगी कहिलै कोउ न संदेसवा रे।२८ बरजेहू नहि रही मिली मन-मीत सों ।२४ कहाँ पिलमे कौन देसवा में छाये ईमन कल्याण मोरे अबहुं न आये पियवा रे लैंडा होरी खेल मैडे जीउ मावदा । राह देखत मोरि अखिया पक्कि गई तू वारी कोई दी सरमन करदा बुरी बे गालियाँ गाँवदा । निसि बीति भयो भोरवा रे । पाथ अपीर नैण विन साडे बसी निलज बजावदा । पाटी कर पटकत भई व्याकुल 'हरीनंद' मैनूं लगी लड़ तेंद्री तूं नहि अस पुरावदा ।२५ लागत हार पहरवा है। अहीरी 'हरीचंद' पिय विनु कैसी परिहे कौन लागे मोरे गरवारे ।२९ वह नटवर धनं सांवरो मेरो मन ले गयो री । जब सो देति लियो है वाको, तब सों भोजन-पान न भाये, ईमन कल्यान बेरनि खाज हो गई मेरी बिरहदै गयो री। सुनो चित्त दे सब सखियाँ बरनि पर अंगना मोहि नाँह सुहाधे, पैठत ही घुमरी सी आधे. सुनाऊँ श्याम सुंदर के खेल । लोग कहै मोहि देखि-देखि याको कहा हो गयो री। कल ही निकसी मारग याही रोगी गैल । 'डरीचद" ग्वालिन रसमाली, सास ननद की डर न हेराली. अबिर उब्राइ गाइ गारी बहु जोकलाज तजि सँग में होले. कहा जाने का नंदलाल (डफ अजाइ के) करी संग को रेल । टोना सो के गयो री ।। 'हरीचंद' तबतें नहि भूलत नेनन तें वह केलि ।३० यह नटवर घर सांघरो मेरो मन तो गयो री ।२६ डफ की गौरी ऐसो उधम न करि अवै कस जिये । मैं अरी कहा करो कित जाऊँ, यह ऊधम तेरो सुन पावे जो तो सखी री मन ले गयो वह हेल पकर मैंगाये तोहि लिये दिये। मेरी गलियन आइकै बसी मधुर अजाय । ने कै चलि अठतानि धुरी है सदा रहत अभिमान किये। जाद सरो कछ कह करि गयो वह मेरो नाम सुनाय । अरी मै। हरीचंद' या फागुन में क्यों निवहंगी हम लाव लिये।३१ सब सों कछु भाव नहीं हो पन-अन फिरूं उदास । राग होरी विभास 'कहुँ मोहि कल आवे नहीं हो ब्याकुल लेहुँ उसास । अरी. आय कहाँ से आज प्रात रस-भीने हो। तर तरु सग मृगन सों ही पूछत डोलों धाय । होली ११३