पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१८५

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BEEFINK मुरली रली भली बाजत मिलि बीन लीन सुर खास । गली सांकरी अटकि रह्यौ रथ नहिं कहुँ इत उत जावै। उत वृषभानु-कुमारि अटा पे ठाढ़ी दृष्टि न टारै । इत नंदलाल रसिकबर सुंदर इक टक उतहि निहारे । ये हँसि हँसि के कमल फिरावत वै दोउ नैन नचावें। ये पीतांबर लै जु उड़ा3 वे मधुरे सुर गावें 1 रीझे रसिक परस्पर दोऊ 'हरीचंद' मन माहीं । ये इत अपनो रथ न चलावत वे न अटा-सों जाहीं ।१०८ स्पुट, यथा-उचि लाल लाल कर पद लाल अधर रस लाल लाल नयन तासों साँचे लाल भये हो । लाल माल बिनु गुन लाल पीक छाप तन लाल लाल ही महावर सिर पैदये हो । पीरो पट छोरि लाल पट भलो ओढ़ि आये अनुराग प्रगट दिखावत नये हो । 'हरीचंद' अरुन सिखा-धुनि सुनि चौंकि अरुन उदय से आज अरुन भेष लये हो ।१०९ राग, यथा-सचि लखि सखि आजु राधिका रास । जमुना-पुलिन सरल कोमल कल जहँ मल्लिका बिकास। उदित चंद्र पूरन नभ-मंडल पूरन ब्रज-तिय आस । मंद सुरन पिय पास बने सजि निकर चिकुर भल पास। प्रचलित पवन रवन हित महकत मह मह दवन-सुबास। दवन मदन मद मंद गवन सुख भवन जहाँ हरि-बास । बजत मृदंग उपंग चंग मिलि भजनन जति तति जास। बढ़यो रंग रति रंग दंग लखि अंग उमंग प्रकास । हसनि मुरनि बतरानि परस्पर कछुक दर ते परत लखाई फैली अंग-प्रभा दीपक मैं जाल- रंध्र सो घिरि घिरि आई। 'हरीचंद' कंकन-किकिनि-रव निसि के उछीर भरो मधुर कछु सुनाई ।११२ रथ-यात्रा वह देखो सखि सेन-ध्यजा फहरात । ज्यों ज्यों रथ नियरे आवत है त्यों त्यों मन अकलात । खजन से भये नैन सखी के चक्रित इत उत डोलें। आवत प्राननाथ रथ चढ़ि के सजनी यह मुख बोलें 1 जहँ लगि दृष्टि जात प्यारी की यह छवि होत रसाले । मानहुँ आदर सों पिय के हित कमल पाँवड़े डालें। अति अनुराग संग बैठन को प्यारी मन की जानी । 'हरीचंद' ले रथ बैठाये तिया अतिहि सुख मानी ।११३ पालन वारी वारी हौं तेरे मुख पै वारी मैं तेरे लटकन पैवारी। पालना-झूलो हो दठ छाँडो बलि बलि गइ महतारी । छोटी सी दुलहिनि तोहि व्याहों अपने बाबा की दुलारी । तुम भूलो हौं हर्राख मुलावों 'हरीचंद' बलिहारी।११४ वारी मेरे लालन भूलो पलना । हो बलि जाऊँ बदन की मोहन मानहुँ बात हमारी । माखन लेहु ललन वृज-जीवन वारने गै महतारी । अचरा छोरहु तुमहि झुलाऊँ 'हरीचंद' बलिहारी।११५ स्फुट, यथा-रुचि ताल देत उत्ताल बजावत ताल ताल करि हास । उघटत श्री राधे राधे मधु धुनि बन सब आस । हरि राधा की बचन-रचन लखि बलिहारी हरि-दास।११० स्फुट, देश बेग आओ प्यारे बनवारी हमारी ओर । दीन बचन सुनतै उठि धावो नेकु न करहु अबारी । कृपा-सिंधु छाँडो निठुराई अपनो बिरद सम्हारी । थाने जग दीनदयान कहे क्यों हमरी सुरत बिसारी । प्रान दान दीजै मोहिं प्यारा हौं छ दासी प्यारी । क्यों नहिं दीन बचन सुनो लालन कौन चूक छ म्हारी । तलफै प्रान रहै नहिं तन मा बिरह व्यथा बढ़ी भारी । 'हरीचंद' गहि बाँह उबारौ तुम तो चतुर बिहारी ।१११ बिहार वे देखो पौढ़े ऊँचे महल दोऊ झलकत रूप झरोखन आई । सखी मेरे नयना भये चकोर । अनुदिन निरखत श्याम चंद्रमा सुदर नंद-किशोर । तनिक बियोग भये उर बाढ़त बहु बिधि नयन मरोर । होत न पल की ओट छिनकहूँ रहत सदा दृग जोर । कोउ न इन्हें जुड़ावनहारो असझे रूप झकोर । 'हरीचंद' नित छके प्रेम-रस जानत साँझ न भोर ।११६ गरमी को पद सखी मोहिं ग्रीषम अति सुखदाई । जामें शोभा श्याम अंग की प्रति छन परत लखाई। बिनु अंतरपट मिलत पियारी अंग अंग सो लाई । 'हरीचंद' लखि कै सुख पावत गावत केलि बधाई ।११७ फूल-सिंगार सखियन आज नवल दुलहिन को फूल-सिंगार बनायो हो। फूलन के आभरन मनोहर रचि रचि कै पहिरायो हो । फूलनि बेनि गुही मनोहर फूलन मौर सुहायो हो ।। राग संग्रह १४५