पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१८७

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HOM संवत पंद्रह सौ सुभ सरसठि आश्विन कृष्ण द्वादशी जानि। साँझी को पद श्री महालक्ष्मी जी के उदर ते प्रगटे हैं सब सुख की खानि । आजु दोउ खेलत सांझी साँझ । पुष्टि प्रवेस हेतु अधिकारी करन कियो लीला-बिस्तार । | नंदकिशोर राधा गोरी जोरी सखियन मांझ । कहि जय जय बल्लभ-सु दोऊ कुसुम चुनन में रुनझुन बाजत कर-चूरी पग-झाँझ । 'हरीचंद' जन भयो बलिहार ।१२८ 'हरीचंद' विधि गरव गरूरी भई रूप लखि बाँझ।१३४ श्रीघनश्यामजी को पद महारानी तिहारो घर सुफल फलो । श्री बिट्ठल घर अतिही उछाह । सुन री कीरति तैं कन्या जनि सब रानी पद्मावति सुत जायो ब्रज-जन को कियो भलो । पूरी अपने जन की चाह । कोउ गावत कोउ हंसत मोद आश्विन बदी तेरसि रविबासर भरि कोउ अति आनंद रलो । बाढ़यो गोकुल प्रेम प्रवाह । देखि चंद्र-मुख कुँवरि लली 'हरीचंद' बैराग प्रकट गुन को वारि-फेरि तन-मन सकलो । जय जय जय श्री कृष्णावति-नाह ।१२२ आनंद-मगन सबै ब्रज-बासी सब श्री गोविन्द राय जी को पद जिय को दुख पगनि दलो। 'हरीचंद' जुग-जुग चिरजीवो श्री गुबिंद राय जयति सुंदर सुखधाम । जुगल कहानी जुगुल चलो ।१३५ देवि देव मेटि सकल कृष्ण-रूप थापन नित दीनता, यथा-सचि सुंदर बरन निज भक्तन अभिराम । सुंदर मर्याद रूप लोक-रीति स्वबस भूप हमरे निर्धन की धन राधा । श्रीभागवत थापन सुखमय सुआद जाम । साधन कोटि छोड़ि इनहीं को चरन-कमल अवराधा । 'हरीचंद' बिट्ठलसुत भक्तिभाव भूरि संयुत इनके बल हम गिनत न काहू करत न जिय कोउ साधा। राज-भाव बिनसे हरि सुजन पूरन काम ।१३० 'हरीचंद' इन नख-सिख मेरी हरी तिमिर भव-बाधा ।१३६ श्री बालकृष्ण जी को पद श्री रुक्मिनि-नंदन, जय-बंदन, श्री महाप्रभु जी की बधाई बाल कृष्ण सुख-धाम । आजु ब्रज साँची बजत बधाई । सुंदर रूप नयन रतनारे रति-पथ प्रगट करन को द्विज-बपु वल्लभ प्रगटे आई। भक्तन पूरन काम । देवीजन-हित कारन भूतल लीला फेरि दिखाई। रस वात्सल्य-करन अनुभव नित 'हरीचंद' झूले लखि तिज जन बिरह विधूनन हरि मुख नाम । लियो बाह गहि धाई।१३७ 'हरीचंद' बिट्ठल सुखदायक प्रिय आजु प्रेम-पथ प्रगट भयो भुव उनहारि रूप अभिराम ।१३१ जनमे श्रीवल्लभ पूरन-काम । श्री गोकुलनाथ जी को पद कठिन काल कलि देखि दया करि श्री आपुहि चलि आयो द्विजधाम । लभ निच राखि लियो। बहे जात अपने जन लखि के जीति सभाबादी कठोर बहु माला तिलक दियो । धरयो बाँह गहि कहि हरि-नाम । अद्भुत अचरज बहुत दिखाये खल नृप निरखि भियो। 'हरीचंद' रसमय बपु सुदर 'हरीचंद' मर्याद राखि निज जग जस प्रगट कियो।१३२ एकै राधा सुंदर श्याम ।१३८ श्री यदुनाथ जी को पद निज पथ प्रगट करन को द्विज हवै श्रीजदुपति जय जय महाराज । आपुहि प्रगट भये हरि आज । बिरह गुप्त अनुभवत प्रगटि जग महँ बिराग को साज। माधव कृष्ण एकादशि दिन निवसत रह लघु कहत सुनत लहु छाड़ेि जगत के काज। लक्ष्मण भट-गृह पूरन काज । 'हरीचंद' परमारथ-पूरन गोविंद भक्ति जहाज ।१३३ दैवीजन मन अति हुलसाने राग संग्रह १४७