पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९३

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जानि । कजली बिनु साँवरे पियरवा जिय की जरनि न जाय दोउ झूलें आजु ललित हिंडोरे सखियाँ । जिय नहि बहलत प्रान-प्रिया-बिनू कीने लाख उपाय। लखि सोभा मेरी सुनो री सिरानी अखियाँ । काले बादर देखि बिरह की हुक उठत जिय आय । फूले फूल बहु कुंज मुकि रही डलियाँ । 'हरीचंद' स्याम बिनु बादर उलटी आग देत दहकाय।४७ तहाँ बोल मोर कोकिला गावत अलियाँ । बिजुरी चमकि चमकि डरवाये, पर मंद मंद फुही दीने गल-बहियाँ । मोहिं अकेली पिय बिनु श्याम भीजत बचावै प्यारी करि छहियाँ । बादर गरजि गरजि अति तरजे छबि बाढ़ो अनूप तहाँ तीन घरियाँ । पंच-रंग धनुहीं तानि । तन मन 'हरिचंद' बलिहारी करियाँ ।४१ मोरवा बैरी कड़खा गावें भारत में एहि समय भई है सब कुछ मनमथ-बिरद बखानि । बिनहिं प्रमान हो दुइ-रंगी । पिय 'हरिचंद' गरें लगि मरत आधे पुराने पुरानहिं माने जियाओ अरज लेहु यह मानि ।४८ आधे भए किरिस्तान हो दुइ-रंगी । काहे तू चौका लगाय जयचंदवा । क्या तो गदहा को चना चढ़ावै अपने स्वारथ भूलि लुभाए कि होइ दयानंद जायँ हो दुइ-रंगी । काहे चोटी-कटवा बुलाए जयचंदवा । क्या तो पढ़े कैथी कोठिवलियै अपने हाथ से अपने कुल के कि होइ बरिस्टर धाय हो दुइ-रंगी । काहे ते जड़वा कटाए जयचंदवा । एही से भारत नास भया सब फूट के फल सब भारत बोए जहाँ तहाँ यही हाल हो दुइ-रंगी । बैरी के राह खुलाए जयचंदवा । होउ एक मत भाई सबै अब और नासि ते आपो बिलाने छोड़हु चाल कुचाल हो दुइ-रंगी ।४२ निज मुंह कजरी पुताय जयचंदवा ।४९ सखी चली री कदम्ब तरे छोड़ि काम धाम । ट्रटै सोमनाथ के मंदिर केहु लागै न गोहार । फूलै रमकि डिरोरे जहाँ राधा-घनश्याम । दौरो दौरो हिंदू हो सब गौरा करें पुकार । सोभा देखिकै सिराने नयन पूरे मन-काम । की केहू हिंदू कै जनमल नाही की जरि मैलै छार । 'हरिचंद' देखो उरझी गरे बन-दाम ।४३ की सब आज धरम तजि दिहले मैले तुरुक सब इक बार। एरी सखी झूलत हिडोरे श्यामा- केहू लगल गोहार न गौरा रोवै जार-बिजार । श्याम बिलोको वा कदम के तरे । अब जग हिंदू केह नाही मूठे नामैं कै बेवहार १५० ऐसी सोभा देखत ही बनि आवै बिरिछि सोहैं हरे हरे । धन धन भारत के सब क्षत्री जिनकी सुजस-धुजा फहराय। एरी तहाँ रमकत प्यारी झूलें दिये बांह पिय के गरे । मारि मारि के सत्रु दिए हैं लाखन बेर भगाय । एरी छबि देखत ही 'हरिचंद' नैन मेरे आवत भरे ।४४ | महानंद की फौज सुनत ही डरे सिकंदर राय । राजा चंद्रगुप्त आए बेटी सिल्यूकस की जाय । देखो भारत ऊपर कैसी छाई कजरी । मारि बलूचिन बिक्रम रहे शकारी पदवी पाय । मिटि धूर में सपेदी सब आई कजरी । बापा कासिम-तनय मुहम्मद चीत्यौ सिधु दियो उतराय। दुज बेद की रिचन छोड़ि गाई कजरी । आयो मा चढ़ि हिंदुन पै चौबिस बेरा सैन सजाय । नृप-गन लाज छोड़ि मुंह लाई कजरी ।४५ खुम्मानराय तेहिं बाप-सार लखि सब बिध दियो हराय । तोरे पर भए मतवार रे नयनवा । लाहौर-राज जयपाल गयो चढ़ि खुरासान पर धाय । लोक-लाज-जस-अजस न मानै दीनो प्रान अनंदपाल पर छाँड्यौ देस धरम नहिं जाय ।५१ सरस रूप रिझवार रे नयनवां । मदिरा प्रम पिये मतवारे ध्रुवपद मलार सब से करत बिगार रे नयनवाँ । आयो पावस प्रचंड सब जग मैं मचाई धूम 'हरीचंद' पिय रूप दिवाने कारे घन घेरि चारों ओर छाय । करत न तनिक विचार रे नयनवाँ ।४६ | गरजि गरजि तरजि तरजि बीषु चमक चहुँ दिसि वर्षा विनोद १५३