पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९५

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. सनि क्वार मास लाग्यो सुहावन सबै सांझी खेलही।

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कैसे आयें मोहन उन बिन ब्याका मैं नारी । निसि चन्द पूरन चाँदनी मैं नाह गह भुज मेलही 10 याद कर तबियत घबराती ।। मोहि चाँदनी भई धूप रोक्षत रात थीति सबै गई। पिया बिन में व्याकुल तड़पू नीद नहीं आती । बिनु श्याम सुंदर सेज सूनी येव के व्याकुल भई । जुगनूं चमके चार दिसा में भई बड़ी सोभा । शतिक पुनीत नहाइ सब दे दीप उँजियारी करे । हरी भूमि पर वीर-बाटी देखत मन सोभा । हम प्रान-पिय-विनु विकत पिरणागिनि दिवारी सी उरे। नए नए विरछन के गोभा । अधिगार गिय चिनु हिए चौपड़ कौन हँसि हसि खेलई। देख देख के कामदेष मेरे जिय मारै चोभा । | बिनु श्याम सुंदर सेज सूनी देख के व्याकुल भई। हुई जोवन-मद से माती। अगहन लग्यौ पाला पड़यौ सच लपटि पिय सों सोचहीं। पिया बिना में व्याकुल तडपू नींद नहीं आती। | चिनु प्रान-प्रियतम मिले हम करि हाय बहु विधि रोषही बरसा रितु में पीतम के संग फिर सभी नारी । दो भए बिन इक रैन आणी लाख पुग सी लागई । झूलें आगों जाय हिंडोरा गाई दै तारी। | बिनु श्याम सुंदर सेज सूनी देख के व्याकुल भई । पहिन के रंग रंग की सारी । सखि पूस लाग्यौ रूस धैठे प्रानपिय और कहीं मै किसके सँग सोङ सखी री विपति बढ़ी भारी । यह रात जाडे की बिना पिय साथ के बीतत कर क्या तषियत्त लहराती। उन निठुर सब सुख टीनि हमरो राह मधुबन की लई। पिया बिना में व्याकुल तडपू नींद नहीं आती | विगु श्याम सुंदर श्याम सुंदर सेज सूनी देख के व्याकुल भई | दादुर बोलें नाचे मोरा बरसा रितु जानी । | सखि माघ में कोयल कुइको काम को आगम भयो । बिजुली चमकै पादल गरजे वरस रहा पानी । फूली सेव सूनी लखि पछितानी । घसंत सुखेत सरसों आम बन योर्यो नयो । यह पंचनी तिहवार की भई हाय दुखदाइनि दई। हाथ पटक पाटी पर रो रो पिय बिन विलखानी भई। कोई नहिं आकर बिनु श्याम सुंदर सेल सूनी देख के व्याकुल समझाती पिया बिना में व्याकुल तड़पू नींद नहीं आती। | फागुन महीना मस्त सय मिलि निलाज गारी गावडी । कहाँ जाईच्या करूं कोई ततधीर न द्वारे अधीर गुलाल चोश रंग संग उहाही । खड़ी द्वार पर राह देखती भीजत पछताती । | चिनु प्रान-पिय में आप विरहिनि होय होरी उरि गई । बिनु श्याम सुंदर सेज । अब तक भी पाती। र सूनी देख के व्याकुल भई। 'हराचद' को जाके कोई इतना तो समभाती । | सति चेत चाँदनि लगी सुखद वसंत ऋतु बन आइयो। कटै कैसे दुख की राटी। | चटके गुलाम सुहावने जग जाम को मल धाइयो । पिया बिना में व्याकुज तडा नींद नहीं आती 150 बिनु प्रानपिय बुख दुगुन भयो मनो आज भइ बिरहिन नई। | चिनु श्याम सुंदर सेज सूनी देख के व्याकुल भई । बारह-मासा | वैसाख मास अरभ ग्रीषम औरद्र दुख बाढ़ही । पिय गए विदेस संदेस नहि पाथ सखी मन-भावनी । | इक तो वियोगिन आप दूजे दुसह ग्रीषम डानही । लाग्यो असाद वियोग बरसा भई अरंभ सुहावनी । जन नयो पालव काम-पान समान उर बेधा दई । अदरा लगी बदरा घुमड़ि रहे विपत्ति यह उनई नई । बिन श्याम सुंदर सेज सूनी देख के ज्याकुल भई । पिनु श्याम सुंदर सेब सूनी देख के व्याकुता मई । | सखि जेठ में दिन भयो दुनो फटत जोऊ विधि नहीं । सापन सुहाएन दुख-बनायन गरजि घन बन घेरही। | बन पात पालन ,दि हारी नहिं मिले प्यारे कहीं । दामिनि दमकि जुगनूं चमकि मोति दुस्खी जान तरेरही | पानी न पाई श्याम की सखि बयस सब योही गई। पपिहा पिया को नाम रटि रटि काम-अगिन जगावई | बिनु श्याम सुंदर सेज सूनी देख के आकुल भई । बिनु श्याम सुंदर सेब सूनी देख के व्याकुल भई इमि खोज धारह मास पिय को हारिभामिनि भौनहीं। भादो अंधेरी रात टपकै पात पर पानी बजे । धरि रूप जोगिन को रही औॉब करि इक मौनहीं । डरि काम के भय सुन्दरी मिलि नाड सों सेजिया सजे । हरिचंद' देख्यो जगत को सब एक पिय मोहन-मई । मैं भीजि मारग देखि पिय को रोय तजि असा दई । चिनु श्याम सुंदर सेव सुनी देख के व्याकुल भई ६१ पिनु श्याम सुंदर सेज सूनी देख के व्याकुल भई । कजसी मोडि नंद के कंधाई बेलमाई रे हरी वर्षा विनोद १५५ 1 न दिखलाती। 13