पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२१२

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MOS ली बदनामी हुआ बेशर्मी हया दर-दर रुसवा । बे-ईमाँ बे-दी काफिर अपने को कहलाया हमने । सब को खोया यार अपने को तब पाया हमने । मिला मेरा दिलबर मुझको अब किसी बात की चाह नहीं। कोई खफा हो या खुश हो कुछ मुझको परवा नहीं । सिवा यार के कूचे जाना दैरो-हरम की राह नहीं । सब कुछ मेरा यार है और कोई अल्लाह नहीं । 'हरीचंद' क्या बयाँ हो गूंगे होकर गुड़ खाया हमने । सब को खोया यार अपने को तब पाया हमने । श्री राधा-माधव जुगल-चरन-रस का अपने को भस्त बना। पी प्रेम-पियाला मर भर कर कुछ इस मै का भी देख मजा। यह वह मै है जिसके पीने से और ध्यान छूट जाता है । अपने में औ दिलबर में फिर कुछ भेद नहीं दिखलाता है । इसके सुरूर सेमस्त हरेक अपने को नजर बस आता है। फिर और हवस रहती न जरा कुछ ऐसा मजा दिखाता है । टुक मान मेरा कहना दिल को इस मैखाने की तर्फ मुका। पी प्रेम-पियाला भर भर कर कुछ इस मै का भी देख मजा। यह वह मै है जिसका कि नशा जब आँखों में छा जाता है। मैखाना काबा बुतखाना सब एकी सा दिखलाता है। हुशियार समझता अपने को जग को अहमक बतलाता है। वह काम खुशी से करता जिसके नाम से जग शर्माता है । जिसका नाम है शर्म आप वह इस मैसे जाती शरमा । पी प्रम-पियाला भर-भर कर कुछ इस मै का भी देख मजा। हुशियार वही है आलम में इस मैसेजो सरशार बने । हो कार उसी का पूरा जो इस दुनियाँ से बे-कार बने । हो यार वही उसका जो इस पग में सबसेकुछायार बने। पहिने कमाल का जामा वह जिसका कि गरेबां तार बने। गर लुत्फ उठाना हो इसका तो तू भी मेरा मान कहा । | पी प्रेम-पियाला भर-भर कर कुछ इस मै का भी देख मजा। गो दुनिया में उस दाना को हर शख्श बड़ा नादान कहे । पर उसेमजा वह हासिल है जिससे वह हेच सबको समझे कमी न उतरै उसका नशा जिसके सिर इसका भूत चढ़े। हँसते-हँसते इस दुनिया से फट उसका बेड़ा पार लगे। इतबार न हो तो देख न ले क्या 'हरीचंद' का हाल हुआ। पी प्रम-पियाला भर मर कर कुछ इस मै का भी देख मजा.. यह वह गोरख-धंधा है जिसका न किसी पर भेद खुला । वह झगड़ा है फैसला जिसका कुछ अब तक न हुआ कहाँ से औ किस तरह से किसने क्यों यह पैदा किया जहाँ । किसने सूरत खड़ी की किसने इसमें डाली जाँ । मिली कहाँ से अक्ल बशर को अक्ल सख्त यह है हैरों। क्या बोलता बयाँ से इसके बस हारी है जबाँ। फिर अखीर में कहाँ जायेगा इसका नतीजा होगा क्या। वह झगड़ा है फैसला जिसका कछु अब तक न हुआ । कोई बनानेवाला खुद है या खुद ही यह बनता है। बदन है सोई जाँ है या वहाँ- दूसरा बैठा है। बुरी-मली बातों का नतीजा कहीं जाके कुछ मिलता है। या मन माने वही करना दुनिया में अच्छा है। इसको मुअम्मा कहते हैं मुश्किल है हल करना जिसका। वह झगड़ा है फैसला जिसका कुछ अब तक न हुआ । गरचे खुदा है कोई तो हो फिर उसके मानने से है क्या। मानै भी तो किस तरह कैसे कोई देवे बता । काबे में जाकर के झुका सिर करे उसको डार कर सिज्दा । या कोई बुत बना कर उसकी नित कर ले पूजा । होके एक-मत मजहबवालो कुछ तो इसमें कहो जरा । वह झगड़ा है फैसला जिसका कुछ अब तक न हुआ । एक किसी ने माना किसी ने दो व किसी ने तीन कहा । मिला बताया किसी ने उसे जहाँ से कहा जुदा । बुत में किसी ने पूजा किसी ने उसको पुकारा कह के खुदा। अपनी अपनी तौर पर गरज कि सबने है खींचा। मनर न ते यह हुआ हक़ीक़त में य माजरा है कैसा । वह झगड़ा है फैसला जिसका कुछ अब तक न हुआ । मैंने तो पहिचाना प्यारे तुमको ते कर सब झगड़े । बने बनाये तुम ने सब का सब में मौजूद रहे। नाम तुम्हारा दिलबर है हैं बुत व खुदा दोनों झूठे। यह सब जलवा तुम्हारा ही है जिधर चाहे देखे । 'हरीचंद' के सिवा किसी पर जरा न तेरा भेद खुला । वह झगडा है फैसला जिसका कुछ अब तक न हुआ । दिलबर के इश्क में दिल को एक मिलाये। अपने को खोए तब अपने को पावे । दिलबर को एक कर के अपने में साने । इस दुनिया को इक अजब तमाशा जाने । मैं क्या है इसको जी देकर पहिचाने । अपने को अपना सिरजनहारा माने । यह मेद का परदा आँखों से हट जावे । अपने को खोए तब अपने को पावे । वह मैं पी ले उतरे न नशा फिर जिसका । वह सुरूर हो जिसका बयान क्या करना । सब दुनिया को बस जाने एक तमाशा । इस धारा में अपने को सममै बहता । जब सब आलम यह नजर खेल सा आवे । अपने को खोए तब अपने को पावे । कुछ भले-बुरे में फर्क न जी से रक्खे भारतेन्दु समग्र १७२