पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९६

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200 'अति निरबली स्याम जापाना । तब इनहीं की जगत बड़ाई। हाय न भारत तिनहुँ समाना । रही सबै जग कीरति छाई । हाय रोम तू अति बड़-भागी । तितही अब ऐसो कोउ नाहीं । बरबर तोहिं नास्यो जय लागी ।४२ लरै छिनहुँ जो संगर माहीं ।५२ तोडे कीरति-खंभ अनेकन । बहे गढ़ बहु करि जय-टेकन । प्रगट वीरता देह दिखाई। सबै चिन्ह तुव धूर मिलाए । छन मह मिसरहिं लेइ छुड़ाई। मंदिर महलनि तोरि गिराए ।४३ | निज मुज-बल विक्रम जग माहे। कछु न बची तुव भूमि निसानी । भारत-जर-धुज अविचल गाड़े ।५३ सो बरु मेरे मन अति मानी । यवन-हृदय-पत्री पर बरबस । पै भारतभुव-जीतन-हारे । लिखै लोह-लेखनि भारत-जस । थाप्यौ पद या सीस उघारे ।४४ | पुनि भारत-जस करि विस्तारा । तोर्यो दुर्गन, महल ढहायो । मम मुख फेर करै उँजियारा ।५४ तिनही मैं निज गेह बनायो । शाखा ते कलंक सब भारत केरे । हाय ! ठाढ़े अजहूँ लखो घनेरे ४५ सोय भारत मूमि मई सब भांति दुखारी । रहयो न एकहु वीर सहजन कोस मैझारी ।५५ आय पंचनद, हा पानीपत । होत सिंह को नाद जौन भारत-बन माहीं । अजहुँ रहे तुम धरनि बिराजत । तह अब ससक सियार स्वान खर आदि लखाहीं ।५६ हाय चितौर निलज तू भारी । जहँ भूसी उज्जैन अवध कन्नौज रहे वर । अजहुँ खरो भारत मझारी ।४६ | तह अब रोवत सिवा चहूँ दिसि लखियत खंडहर ।५७ जा दिन तुव अधिकार नसायो । धन विद्या बल मान वीरता कीरति छाई । ताही दिन किन धरनि समायो । रही जहाँ तित केवल अब दीनता लखाई ।५८ रह्यो कलंक न भारत-नामा । कोरस क्यों रे तू बाराणसि धामा ।४७ अरे बीर इक बेर उठहु सब फिर कित सोए । इनके भय कंपत संसारा । लेहु करन करवालि काढ़ि रन-रंग समोए ।५९ सब जग इनको तेज पसारा । चलहु बीर उठि तुरत सने जय-ध्वजहि उड़ाओ । इनके तनिकहि भौंह हिलाए । | लेहु म्यान सों खंग खींचि रन-रंग जमाओ ।६० थर थर कंपत नृप भय पाए ।४८ परिकर कटि कसि उठो बंदू कहि मरि भरि साधौ । इनके जय की उज्जल गाथा । सजी जुद-बानो सब ही रन-कंकन बाँधो ।६१ गावत सब जग के रुचि साथा । का अरबी को बेग कहो वाको बल भारी । भारत-किरिन जगत उजियारा । सिंह जगे कहुँ स्वान ठहरिहै समर मॅभारी ।६२ भारत जीव जियत संसारा ।४९ पद-तल इन कहं दलहु कीन-तृन-सरिस नीच-चय । भारत-भुज-बल लहि जग रच्छित । तनिकहु संक न करहु धर्म जिय जय तित निश्चय ।६३ भारत-विद्या सों जग सिच्छित । जिन बिनहीं अपराध अनेकन कुल संहारे । दूत पादरी बनिक आदि बिन दोसहि मारे ।६४ रह्यो दंड जय प्रबल अखण्डल ।५० प्रथम जुद्र परिहार कियो विश्वास दिवाई । रहयो रुधिर जब आरज सीसा । पुनि धोखा दै एकाएकी करी लराई ।६५ ज्वलित अनल-समान अवनीसा । इनको तुरतहि हतौ मिलें रन के घर माहीं । साहस बल इन सम कोउ नाहीं । इन हलियन सों पाप किएर पुन्य सदाहीं ।६६ जबै रहयो महि मंडल माही ।५१ उठहु बीर तरवार खींचि माड़हु धन संगर । रहे जबै मनि क्रीट सूकुंडल ' भारतेन्दु समग्र २५४