पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 इसी से नेति नेति ऐ यार वेदों ने पुकारा है। असीराने कफ़स सहने चमन को याद करते है न कुछ चारा चला लाचार चारो हारकर बैठे। मला बुलबुल प यों भी जुल्म ऐ सैयाद करते हैं। बिचारे बेद ने प्यारे बहुत तुमको बिचारा है। कमर का तेरे जिस दम नकश हम ईजाद करते हैं । जो कुछ कहते हैं हम यह भी तेरा जलवा है एक वरन :। तो जा फर्मान आकर मानियो बिहजाद१० करते हैं। किसे ताकत जो मुंह खोले यहाँ हर शख्स हारा है। पसे मुर्दन तो रहने दे ज़मीं पर ऐ सबा मुझको । तेरा दम भरते हैं हिंदू अगर नाकूस बजता है। कि मिटटी खाकसारों११ की नहीं बरबाद करते हैं। तुझे ही शेख न प्यारे अजां देकर पुकारा है। दमे रफ्तार आती है सदा पाजेब से तेरी। जो बुत पत्थर हैं तो काबे मैं क्या जुज़ खाको पत्थर है। लहद के खिस्तगाँ उट्ठो मसीहा याद करते है। बहुत भूला है वह इस फर्क में सर जिसने मारा है । कफ़स में अब तो ऐ सैयाद अपना दिल तड़पता है । न होते जलवगर तुमतो यह गिरजा कब का गिर जाता । बहार आई है मुरगाने-चमन फरियाद करते हैं ।१२॥ निसारा को भी तो आखिर तुम्हारा ही सहारा है। बता दे ऐ नसीमे सुबह शायद मर गया मजनूं । तुम्हारा नूर है हर शै में कहरे सो कोई तक प्यारे । बता दे ऐ नसी सुबह शायद मर गया मजनूं। इसी से कह के हर हर तुमको हिंदू ने पुकारा है । ये किसके फूल उठते हैं जो गुल फरयाद करते हैं। गुनह बख्शो रसाई दो 'रसा' को अपने कदमों तक । मसल सच है बशर१३ की कद्रे ने अमत१४ बाद होती है। बुरा है या भला है जैसा है प्यारे तुम्हारा है । सुना है आज तक हमको बहुत वह याद करते हैं 1 उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले । लगाया बागबां ने ज़ख्म कारी दिल प बुलबुल के । इधर तो देखिये बहरे खुदा५ किधर को चले। गरेवाँ चाक गुंचे हैं तो गुल फरयाद करते हैं। 'रसा' आगे न लिख अब हाल अपनी बेकरारी का । मेरी निगाहों में दोनों जहाँ हुए तारीक । य आप खोल के जुल्फे दोता किधर को चले । बरंगे गुच : लब१५ मजमू तेरे फरयाद करते हैं ।१० अभी तो आए हो जल्दी कहां है जाने की। दिल आतिशे हिजरा से जलाना नहीं अच्छा । उठो न पहलू से ठहरो जरा किधर को चले। अय शोल : रुखो१७ आग लगाना नहीं अच्छा । खफा हो किसपै भंवें क्यों चढ़ी हैं खैर तो है। ये आप तेग पै धर कर जिला किधर को चले। किस गुल के तसव्बर१८ में है ए लाल : जिगर-बूं। यह दाग कलेजे प उठाना नहीं अच्छा । मुसाफिराने अदम कुछ तो अज़ीज़ों से कहो । अभी तो बैठे थे है है भला किधर को चले । आया है अयादत१९ को मसीहा सरे बाली२० । चढ़ी हैं त्यौरियाँ कुछ है मिज़ह भी जुम्बिश में । ऐ मर्ग२१. ठहर जा अभी आना नहीं अच्छा । ख़ुदा ही जाने ये तेगे अदा किधर को चले । सोने दे शबे वस्ले गरीबों है अभी से। गया जो मैं कहीं भूले से उनके कूचे में। ऐ मुर्गे-सहर२२ शोर मचाना नहीं अच्छा । तो हंस के कहने लगे हैं 'रसा' किधर को चले ।२ तुम जाते हो क्या जान मेरी जाती है साहब । १. शंख. २. ईसाई, ३. तिनका, ४. पर्वत, ५. ईश्वर के लिए. ६. दोनों ओर, ७. पलक. ८. हिलना. ९. एक पुष्प, १०. तर्क तथा वाधा, ११. दीनों, १२. पाठा - बहार आई है फिर सैरै गुलिस्ता याद करते हैं। कफस में सिर को टकराते है और फरियाद करते हैं ।। १३. मनुष्य, १४. भलाई,१५. कली के समान बंद ओठ, १६. एक प्रति में निम्नलिखित और अधिक है। मज़ामीने बलंद अपनी पहुंच जाएंगी गईं तक । य तर्जे नौ जमी में और हम आबाद करते हैं ।। १७. प्रकाशमान मुखवाले, १८. सोच, १९. रुग्णावस्था में हाल पूछने जाना, २०. सिराहना, २१. मृत्यु, २२. सबेरे का मुर्गा । स्फुट कविताएं २७१