पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१६

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'कातिल गले से खींच न खंजर की धार को । कुचए लैली में कहते हैं मुझे। तड़पा न कर दे जबह मुझे बानिए-जफा। मिन अअन ६ मजनूं की बस तस्वीर है। कुरबाँ गले प फेर दे खंजर की धार को । दस्तो-पा सर्द आशिकों के होते हैं। दे दो जबाब साफ कि किस्सा तमाम हो । घर तेरा क्या खत्तए कश्मीर है। दौड़ाते किस लिए हो इस उम्मीदवार को । पीसता है माहरूओं को सदा । होगी कशिश वहाँ से पस अज़ मर्ग जो 'रसा' । कैसी कजफहमी १० पै चरखै मीर है। पाएगी गर हवा मेरे मुश्ते-गुबार २ को ।२३ पूछा मैंने एक दिन उस माह से । मेय तुझको कुछ भी ए बेपीर है। [बुलबुल को बाँधिए तो रगे रूठता है दम बदम बेबजह क्यों । गुल से बाँधिए-तरह आशिकों की क्या यही तौकीर है। जुल्फों को लेके हाथ में कहने लगा वह शोख । है कसम तुफ को हमारे सर की जाँ । गर दिल को बांधना हो तो काबुल से बाँधिए ।२४ क्या खता थी जिसकी यह ताज़ीर २१ है जब कभी उसकी याद पड़ती है। बोला हँस कर चुपके बस जाओ चले । सोस/आकर जिगर में पड़ती है। क्या तुम्हारी मौत दामनगीर है। यादे मिज़गाँ जो मुझको है पैहम । फूल झड़ते हैं जबाँ से बात में। बरछी सी एक जिगर में गड़ती है। मिस्ले बुलबुल यार की तकदीर है। वक्ते तहरीर यह जमीने सखुन । फर्श रह १२ करता हूँ आँख उसके लिए । बात में आसमाँ पै चढ़ती है। खाके-पा हक में मेरे अकसीर है। है जो मद्देनजर विसाल उसे । ख़्वाब में उस गुल को देखा ऐ 'रसा । दम बदम मुझ पे आँख पड़ती है। बस्ल होगा उसकी ये ताबीर १३ है। वस्ल में भी नहीं है चैन मुझे। ऐ 'रसा' मिटती नहीं जुज़ ताब-मर्ग । ख्याहिशे दिल जियाद : बढ़ती है। खते किसमत की अजब तहरीर है ।२६ है अजब उसके सुलहो-जंग में लुल्फ । है कमा अबरू तो मिजगाँ तीर है। दिल मिला जब आँख लड़ती है। आफते जाँ गमज़ए १४ बे पीर है ।२७ ।२७ देके आंखों में सुरमा वह बोले । बाद में मिले हुए फुट कर पद शान पर आज तेग चढ़ती है। सैरे गुलशन जो करता है वह माह । दीपन की बर माला शोभित । बस गुलिस्ताँ पै ओस पड़ती है। जगमग जोत जगति चारो दिसि सोभा बढ़ी बिसाला । बस्ल होगा नसीब आज 'रसा। घृत करपूर पूर करि राखी मेटि तिमिर की जाला । 'हरीचंद' बिहरत आनंद भरि राधा मद-गोपाला ११ चेहरए गुल पै ओस पड़ती है। सौ करो एक भी नहीं बनती। हटरी सजि कैराधा रानी मोहन पिय को लै बैठावत । आह नकदीर जब बिगड़ती है ।२५ | फूल-माल पहिराइ बिबिध बिधि भाँति के भोग लगावत। बर्कदम क्यों हाथ में शमशीर है। बारी देत आरती करि के करत निछावर बसन लुटावत। आज किस के कत्ल की तदबीर है। इक टक निरखि प्रान-पिय मुख छबि खाक सर पर पांओं में जंजीर है। जीवन जनम सुफल करि पावत । तेरे चलते यह मेरी तौकीर है। जगमग दीप प्रकास बदन दुति पूछते हो क्या मेरी जरदी का हाल । रतन अभूषन मिलि मन भावत । साहबो यह इश्क की तासीर है। हाट लगाइ प्रम की मोहन १. शव रखने का संदूक, २. अत्याचारी, ३. एक मुट्ठी धूलि, ४. अफसोस, ५. सर्वदा, ६. विद्युत रूपा, ७. सम्मान. ८. ठीक वैसाही, ९. हाथ पैर, १०. देश, ११. चंद्रमुखी, १२. उल्टी समझ, १३, दंड,१४. राह मार्ग, १५. स्वप्न का फल भारतेन्दु समग्र २७४