पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३३५

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03 होय -मैं तो उसे उसी दिन वर चुकी जिस दिन उस तृतीय गांक का आगमन सुना और उसी दिन उसे तन मन धन दे (विद्या अकेली बैठी है और सुन्दर आता है) 'चुकी जिस दिन उस का दर्शन दिया. इस से अब प्राण कहां रहा और विचार का क्या काम है ? वि.-आज मेरे बड़े भाग्य है कि आप सांझ ही ही. मा.- पर मन मे लइड्र खाने से तो काम | आये । नहीं चलेगा । क्योंकि मन से हम ने इन्द्र का राज कर सुं.- (पास बैठकर) प्यारी, मुझे जब तेरे लिया, इससे क्या होता है, सपने की सम्पति किस | मुखचन्द्र दर्शन हो तभी सांझ है काम की कि जब आंख खुली तो फिर वही टूटी वि.-- परन्तु प्राणनाथ, यह दिन सर्वदा न रहेगा खाट - राजा यह बात कैसे जानेंगे और रानी इस बात चार दिन की चांदनी है। को क्या समझती है कि मेरी कन्या का गान्धर्व विवाह सुं. - हां यह तो मैं भी कहता हूँ। हो चुका है और जब सन्यासी से व्याह देंगे तब तुम क्या वि.- क्यों? करोगी और वह तब कहां जायगा ? सु.- क्योंकि जब मैं 'बैठिए' तो कभी नहीं वि.- हाँ तुम तो इस बात से बड़ी प्रसन्न हो ! | सुनता और 'जाइए"प्राय : सुनता हूं तो अवश्य ऐसा तुम्हारी क्या बात है । मैंने कई बार कहा कि उसको | होगा । एक बार मुझसे और मिला दे पर तू उसे कब छोड़ती वि.- वाह वाह ! अब तो आप बहुत सी हंसी है । अरी पापिन जामाई को तो छोड़ देती पर तो भी तू | करना सीखे हैं - कहिए के उपवास में यह विद्या धन्य है कि इतनी बूटी हुई और अभी मद नहीं उतरा । आई है (पान का डब्बा देती है) लीजिए इसे छूके शुद्ध जब बुढ़ापे में यह दशा है तो चढ़ते यौवन में न जाने क्या कर दीजिए । रही होगी। सु. ..- पहिले आप तो मुझे पवित्र कीजिए पीछे ही. मा.-- सच है उलटा उराहना तो मुझे मैं जब आप शुद्ध हो जाऊंगा तब इसे भी पवित्र कर मिलेहीगा क्योंकि अब तो सब दोष मुझे लगेगा, तुमको | सकूगा । सब बात में हंसी सूझती है पर मुझे ऐसा दुख होता है वि.- भला यह बात तो हुई आज सवेरे मालिन कि उसका वर्णन नहीं होता । आई थी उसका समाचार आप जानते हैं ? जो विधि चन्दहिं राहु बनायो । सु.- हां वह तो नित्य सबेरे आती है आज सोइ तुम कह संन्यासी लायो ।। विशेष क्या हुआ, क्या उसको किसी ने एक दो धौल इस दु:ख से प्राण त्याग करना अच्छा है - मेरी | लगाई ? तो छाती फटी जाती - यह मैंने जो सुना सो कहा अब वि.-भला. मेरे सामने ऐसा कभी हो सकता है तुम जानो तुम्हारा काम जानै, मैंने जो सुना कहा । और फिर वह ऐसी डरपोकनी है कि जो उसको कोई वि.-- नहीं नहीं मैं तो तेरे भरोसे हैं जो तू करेगी मारता तो वह तुरन्त रानी से जाकर सब समाचार कह सो होगा - भला उनसे भी एक वेर यह समाचार कह देती तो भी बुरा होता । तो उससे बहुत चौकस रहना चाहिए । (चपला आती है) वि.-नहीं, इसका कुछ भय नहीं है पर एक च.- राजकुमारी पूजा का समय हुआ । दूसरी बात जो मैंने सुनी है उसका बहुत भय है वि.-चलो सखी मैं अभी आई। सुं. क्या कोई दूसरा उपद्रव हुआ ? (चपला जाती है) वि.- एक बड़े पण्डित संन्यासी आए हैं वह ही.मा.-तो मैं आज जाकर उससे यह वृतान्त | कहती हूं, इस पर यह जो कहेगा सो मैं कल तुमसे फिर | मुझसे विचार किया चाहते हैं । सुं. .- (विषाद से) अरे यह बड़ा उपद्रव कहूंगी। वि.-ठीक है, कल अवश्य इसका कुछ उपाय हुआ – मैं उस संन्यासी को जानता हूं क्योंकि जब मैं वर्द्धमान को आता था तो वह मुझे मार्ग में मिला था, वह करेंगे! (जवनिका गिरती है) 1 निश्चय बड़ा पंडित है, इससे उसका विचार में जीतना कठिन है वि. तब क्या होगा? 1 विद्यासुंदर २९३