पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३३७

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कहती फिरती होंगी। उस दिन पैर नहीं फूले थे, आज आप 'गजगति' चलते विम.- हां तो फिर रानी ने सब बात जान कर | हैं। क्या कहा? सुं.- क्यों व्यर्थ बकता है, राजा के पास तो सब च. कहेंगी क्या अपना सिर ? राजकुमारी को चलते ही हैं, वह जो समझेगा सो उचित दंड देगा, फिर बुला कर बड़ी ताड़ना की और हम लोगों पर जो क्रोध | तुम को अपनी तीन छटाक पकाये बिना क्या डूबी जाती किया उस का तो कुछ पार ही नहीं है और राजा से जा है। कर सब कह दिया । राजा ने और भी दस बीस बाते १चौ. - अहा मानो हमारे राजपुत्र आये हैं, देखो सुनाई, क्रोध से लाल होकर कोतवाल की आज्ञा दी कि सब लोग मुंह सम्हाल के बोलो कहीं अप्रसन्न न हो नंगे शस्त्र ले कर रात भर राजकुमारी के महल के चारों जाय और उनकी अक्षत चन्दन से पूजा करो-लुच्चा, ओर घूमा करो और किसी प्रकार से उस चोर को जिस दिन सेन लगाया था उस दिन आदर कहां गया पकड़ो। था, आज आप बड़े पद्धती बने हैं, चल चुपचाप आगे विम. (घबड़ा कर) तब क्या हुआ ? चला चल नहीं तो च.- उसी समय से कोतवाल न हम लोगों के महल में बड़ा उपद्रव मचा रखा है और कहां तक कहैं | कोतवाल ने कह दिया कि चुपचाप जाना हम पीछे २ २ चौ.- सुनो भाई बहुत शब्द मत करो, कई चौकीदार स्त्री बन २ के विद्या के सोने के महल में आते हैं और सब लोग संग ही महाराज के यहां जायंगे रात भर बैठे रहें, पर जिस के हेतु इतना उपद्रव हुआ इस से जब तक वह न आवै तब तक यहां चुपचाप खड़े वह अभी यह समाचार नहीं जानता और फिर उसकी | रहो । क्या दशा होगी, इस सोच से विद्यावती रात मर रोती ३ चौ.- अच्छा आइए चोर जी यहां ठहरिए । रही । यद्यपि हम लोगों ने बहुत समझाया परन्तु राजकन्या के महल के जाने का समय गया, अब उसको धीरज कहां, इसी विपत में सब रात कटी । कारागार में चलने का समय आया (सब बैठते हैं)। विम.-फिर सबेरे क्या हुआ सो कहो । २चौ.- देखो भाई भला यह तो परदेसी है पर च.-फिर क्या हुआ यह तो मैं ठीक २ नहीं इस रांड़ मालिन को क्या सूझी कि इसने ऐसा साहस जानती पर कोतवाल सबेरे उठ के चले गये और विद्या किया! ने मुझ से कहा कि तू सोध ले कि अब क्या होता है । १ चौ.- अरे यह छिनाल बड़ी छत्तीसी है, विम.-सो तूने कुछ सोघ पाई ? इसको तुमने समझा है क्या - ऐसा मन होता है कि च.- अब तक तो कुछ सोघ नहीं मिली, लोगों इस राड़ की जीभ पकड़ के खींच लें (हीरा के पास के मुंह से ऐसा सुनती हूं कि चोर पकड़ गया और एक जाता है। आपत्ति यह भी न है कि मैं तो किसी से पूछ भी नहीं ही. मा.-दोहाई महाराज की, दोहाई महाराज सकती परन्तु कोतवाल इत्यादिक बड़े प्रसन्न हैं इस से की, हे धर्मदेवता तुम साक्षी रहना, देखो यह सब मुझे जाना जाता है कि चोर पकड़ गया - मैंने पहिले ही अकेली पाकर मेरा धर्म लिया चाहते हैं, दोहाई राजा कहा था कि इस काम को छिपा के करना अच्छी बात की। नहीं है (नेपथ्य में कोलाहल होता है) अरे यह क्या है, १चौ.- वाह वाह, चुप रह । यह तो कोतवाल का शब्द जान पड़ता है और मानो सब (धूमकेतु कोतवाल आता है) इसी ओर आते है तो अब हम लोग किनारे खड़ी हो धू के.- क्यों तुम लोगों ने क्या शब्द कर जायं जिस से वह सब हमको न देखें (दोनों एक ओर रक्खा है? खड़ी हो जाती है) ही. मा.- दोहाई कोतवाल की, यह सब जो (नेपथ्य में फिर कोलाहल होता है और कोई गाता है) चाहते हैं सो गाली देते हैं हाय इस राज्य में स्त्रियों का (हाथ बंधे हुए सुन्दर और मालिन को लेकर चौकीदार ऐसा अपमान, महाराज धूमकेतु आप तो पण्डित हैं, आते हैं) आप इस का विचार क्यों नहीं करते ? १ चौ.

-चल रे चल ।

१चौ.

- महाराज यही रांड़ सब कुकर्म की जड़

.- आज इसका पांव फूल गया है, जिस | है और तिस पर ऐसी ऐसी बातें बनाती हैं । दिन सुरंग खोद कर राजकुमारी के महल में गया था ही.मा.- एक मैं ही दुष्कर्म करती है और तुम 44 विद्यासुंदर २९५ २चौ..