पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३४७

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(ऊपर कान लगाकर भिक्षु.- (ऊंचे सुरसे) अले अले उपाछकओ क्या कहयो कौण रिसिआरी ? अरे सुण अलेअले भिच्छुओ अले छुनो भगवान छौगत छुनो । जौ न करौ परनाम दै मिष्ट भोग सतकार । (पुस्तक पढ़ता है) तौ भैरहु तिन सो न कर जदपि रमत रिषि दार ।। अले भिच्छुओ अमदिव्य चच्छ छेछब लोकों की (वैसाही भेस बनाये प्रद्धा आती है। दुलगइ छुलगइ छब देखते ऐ अले छव छंछार छनिकए आम्मा थायी नईऐ अल्ले इच्छे जोऊके दाठभिच्छुओछे श्र.-हुकम महाराज ।। जिय की लाअ अच्छी नई अलेबछबछ इनकी लाअ छे (शान्ति मूर्छा खाके गिरती है) (नेपथ्य की ओर देखकर) छलघेइधल् आना इधल ।। दिग.- अरे सरावकारा कुल एक्क छिण मत छोडिया ।। (श्रद्धाभिछुकी बनी आती है) श्र.-आज्ञा महाराज ।। श्र.- जो हुकम महाराज (जाती है) करु.-सखी धीरज धर धिरज धर तू इतता भिक्षु.- अले उपाछक औ भिच्छुओ छ छव्वदालपती लहु ।। क्यों डरती है क्योंकि मैंने अहिंसा से सुना श्र.-जो आज्ञा महाराज (जाती है) | पाखंडियों को भी तमोगुण की बेटी सरधा है इससे यह शा.-सखी यह भी तामसी प्रदा होगी। तो तमोगुनी सरधा है। करु.-सखी ऐसेही है। शा.- (उठ कर और अपने को सम्हाल कर) दिगं.- (भिक्षुक को देखकर बड़े ऊँचे शब्द से) सखी ठीक है। में अति लपटाई। अरे अरे भिच्छुक इठे आ इठे आ म्हां तोसू कछु दुराचार पूछांगा। वेष कप न देख्यो जाई ।। भिक्षु.- (क्रोध से) हट पाप पिछाचकी बस बिधि होन अहै गुनमाहीं । मूअतका वकताऐ ।। माता की सरि कोउ बिधि नाहीं ।। दिगं. अरे क्रोध क्यूं करैहै रे हों शस्त्ररो तो अब हम लोग बौद्धों के घर में उसे खोजें। बिचार पूछवावालोछ ।। (शान्ति करुणा घूमती हैं) मि.-अले छपनअतू छ छतल वो जानताए ।।हाथ में पोथी लिए भिक्षुक बुदागम आता है ।। अच्छा देखतेए । (बैठकर) पूछका पूछताऐ ।। भिक्षु-(चिन्ता करके) अले अले उपाछको छुनो दिगं.- अरे कहे छन विनास वालामत वारो तेरो कसो ब्रतछै। छन छन मै विगरत बनत जग ता भावहि मानि । मि.- (हिं) सुन छनछन में ज्ञान का नाश और छोड़ि बासना सकल भे मुक्त तत्व हम जानि ।। उदय होता है इस से जब कोई विज्ञान क्षन में प्रान त्याग (फिर कर बड़े चाव से) करता है तो उसकी मोक्ष होती है अले अले अहाहा ! अले छावाछ छावाछ इछ धलम्म मैं दिगं.- अरे मूरख अरे जो कोई मन्वन्तर दोनों लोअ का छुख है ।। माकोई रो मोछहोवा वालो छ वा भयो तो वह तेरो लहने को मिआ घल छुन्दलछा अलु उपकार कैसे करेगो और पूछ के यह धरम रो उपदेश भोजन को मिली छुदल नानी । कोण ने कियो छै ।। लद्दु अनेअन भोजन को मिए मि.- अले छलवग्गबुध भगोआनने उपदेछ छैन के एत ऎ छेज छुखाली ।। किआऐ।। कै छलधा जुअती छब अंगन दिगं.- अरे बुध्ध सरवज्ञ छे यह चैने कहां लाओत तेअ फुएअ छुवाली । सूकाढारे ।। दै गलमैं वइयाँ छुख छो इमि भि.- अले उनके छाछतले छेछिध्यए ।। बीअत है नित लात उजाली ।। दिगं.- अरे थोरी बुद्धि के अरे जो वाहीके कहेसु कछ.- सखी यह ताड़ सा लम्बा बड़ा गेरुआ | सर्वज्ञता होती होय तो हूँ भी कहूं छू के हूंसर्बज्ञ छू और काछे सिर मुंडा कौन है जो इधरी की ओर चला आता हूं भले जानू छूजो हूं सर्वज्ञारो सर्वत्रछू और थे और थारे वाप दादे सात पुरषा म्हारे दास हैं ।। शा.- सखी यह बुदागम है ।। भि. अले पाप पिछाच अले मैया कुचैआ अले छनो। पाखंड विडंबन ३०५