पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५२

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प्रथम अंक सो वही लिखते हैं। स्थान रक्त से रंगा हुआ राजभवन 'अनभ्यर्च्य पितृन देवान' (नेपथ्य में) बढ़े जाइयो ! कोटिन लवा बटेर के इससे जो खाली मांस भक्षण करते हैं उनको दोष है । नाशक, वेद धर्म प्रकाशक, मंत्र से शुद्ध करके बकरा महाभारत में लिखा है कि ब्राह्मण गोमांस खा गय पर खानेवाले, दूसरे के मांस से अपना मांस बढ्नेवाले, | पितरों को समर्पित था इससे उन्हें कुछ भी पाप न सहित सकल समाज श्रीगधराज महागजाधिराज! हुआ । (गृध्रराज, चोबदार. पुरोहित और मंत्री आते हैं) मंत्री-- जो सच पूछो तो दोष कछ भी नहीं है राजा--(बैठकर) आज की मछली कैसी | चाहे पूजा करके खाओ चाह वैसे खाम्रो । स्वादिष्ट बनी थी। पुरो. हां जी यह सब मिथ्या एक प्रपंच है. पुरोहित [-- सत्य है । मानो अमृत में डुबोई थी | खूब मजे में मास कचर-२ के खाना और चैन करना । और ऐसा कहा भी है - एक दिन तो आखिर मरना ही है. किस जीवन के वास्ते कचित बदन्त्यमृतमस्ति सुरालयेषु केचित वन्ति | शरीर का व्यर्थ वैष्णवों की तरह क्लेश देना, इससे वनिताधरपल्लवेषु । क्या होता है। ब्रूमो वयं सकलशास्त्रविचारदक्षा : जंबीरनीर राजा- तो कल हम बड़ी पूजा करेंगे एक लाख परिपूरितमत्स्यखण्डे ।। बकरा और बहुत से पक्षी मंगवा रखना । जा- क्या तुम ब्राह्मण होकर ऐसा कहते चोबदार-- जो आज्ञा । हो ? ऐं तु साक्षात् ऋषि के वंश में होकर ऐसा कहते पुरो.-- (उठ कर के नाचने लगा) अहा हा ! हो! बड़ा आनंद भया. कल खुब पेट भरेगा । पुरो. हां हां! हम कहते हैं और वेद, शास्त्र, (राग कान्हरा ताल चर्चरी) धन्य वे लोग जो मांस खाते । पुराण, तंत्र सब कहते हैं । "जीवो जीवस्य जीवनम" राजा- ठीक है इसमें कुछ संदह नहीं है। मच्छ बकरा लवा ससक हरना चिड़ा पुरो. संदेह होता तो शास्त्र में क्यों लिखा भेड़ इत्यादि नित चाभ जाते। जाता । हां बिना देवी अथवा भैरव के समर्पण किए प्रथम भोजन बहरि होइ पूजा सुनित कुछ होता हो तो हो भी । अतिही सुखमा भरे दिवस जाते । मंत्री-सो भी क्यों होने लगा भागवत में लिखा | स्वर्ग को वास यह लोक में है तिन्हैं नित्य एहि रीति दिन जे बिताते । "लोके व्यवायामिषमद्यसेवा नित्यास्ति जन्तोहि तत्र (नेपथ्य में वैतालिक) चोदना ।" राग सारठ पुरो. सच है और देवी पूजा नित्य करना सनिए चित्त धार यह बात । इसमें कुछ सन्देह नहीं. और जव देवी की पूजा भई तो बिना भक्षण मास के सब व्यर्थ जीवन जात । जिन न खायो मच्छ जिन नहिं कियो मदिरा पान । मास भक्षण आही गया । बलि बिना पूजा हो ही गी नहीं और जब बलि दिया तब उसका प्रसाद अवश्य ही लेना | कछु कियो नहिं तिन जगत मैं यह सु निहचै जान ।। चाहिये । अजी भागवत में बलि दना लिखा है, जो जिन न चुम्यौ अधर मंदर और गोल कपोल । वैष्णवों का परम पुरुषार्थ है । जिन न परस्यो कम कच नहि लखी नासा लोल ।। एकह निसि जिन न कीना भोग नहि रस लीन । 'धूपोपहारलिभिस्सर्वकामवरंश्वरी' मंत्री-.और 'पंचपंचनखा भक्ष्या :' यह सब जानिए निह ने पश हैं तिन कछ नहिं कीन । वाक्य बराबर से शास्त्रों में कहते ही आते हैं। दोहा पुरो. .-- हां हां. जी इसमें भी कुछ पूछना है अभी एहि असार संसार में, चार वस्तु है सार । साक्षात मनु जी कहते हैं जआ मदिरा मांस अरू. नारी संग बिहार ।। 'न मास भक्षणे दोषो न मद्य न च मैथुने' क्योंकि "और जो मनुजी ने लिखा है कि "मांस एव परो धर्मों मांस एव परा गति : 'स्वमासं परमासेन यो वयितुमिच्छति' मांस एव परो योगी मांस एव परं तप : ।। भारतन्दु समग्र ३१०