पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३७५

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होकर बन में चला गया । इस समय में राजा के चले जीवसिद्धि के द्वारा चाणक्य ने राक्षस का सब हाल जाने से राक्षस और भी उदास हुआ । मदनदास नामक जानकर अत्यंत सावधानतापूर्वक चलना आरंभ 'एक बड़े धनी जौहरी के घर में अपने कुटव को छोड़ किया। अनेक भाषा जानने वाले बहुत से धूल पुरुषों को कर और शकटदास कायस्थ तथा अनेक राजनीति वेष बदल बदलकर भेद लेने को चारों ओर नियुक्त जाननेवाले विश्वासपात्र मित्रों को और कई आवश्यक किया । चंद्रगुप्त को राक्षस का कोई गुप्तचर धोखे से | काम सौपकर राजा सर्वार्थसिद्धि के फेर लाने को आप किसी प्रकार की हानि न पहुंचाये इसका भी पक्का तपोवन की ओर गया। | प्रबंध किया और पर्वतक की विश्वासघातकता का चाणक्य ने जीवसिद्ध द्वारा यह सब सुनकर राक्षस बदला लेने का दृढ़ संकल्प से. परन्तु अत्यंत गुप्त रूप से. उपाय सोचने लगा। के पहुंचने के पहले ही अपने मनुष्यों से राजा सर्वार्थसिद्धि को मरवा डाला । राक्षस जब तपोवन राक्षस ने केवल पर्वतक की सहायता से राज के में पहुंचा और सर्वार्थसिद्धि को मरा देखा तो | मिलने की आशा छोड़कर कुलूल', मलय, काश्मीर. अत्यन्त उदास होकर वहीं रहने लगा। यद्यपि | सिधु और पारस इन पांचों देशों के राजा से सहायता सार्थसिद्धि के मार डालने से चाणक्य की नंदकुला | ली । जब इन पाँचों देश के राजाओं ने बड़े आदर से के नाश की प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी थी, कितु उसने राक्षस को सहायता देना स्वीकार किया तो वह तपोषन सोचा कि जब तक राधास चंद्रगुप्त का मंत्री न होगा के निकट फिर से लोट अऔर वहां से चंद्रगुप्त के तब तक राज्य स्थिर न होगा । वरच बड़े विनय | मारने को एक विषकन्या २ भेजी और अपना से तपोवन में राक्षस के पास मंत्रित्व स्वीकार करने विश्वासपान समझ कर जीवसिदि को उसके साथ कर का संदेसा भेजा, परंतु प्रभुभक्त राक्षस ने उसको दिया । चाणक्य ने जीषसिदि द्वारा यह सब बात स्वीकार नहीं किया। | जानकर और पर्वतक की पूर्तता और विश्वास घातकता से कूद कर प्रकट में इस उपहार को बड़ी प्रसन्नता से तपोवन में कई दिन रहकर राक्षस ने यह सोचा कि ग्रहण किया और लानेवाले को बहुत सा पुरस्कार देकर जब तक पर्वतक को हम न फोड़ेंगे, काम न चलेगा। विदा किया । सांभ होने के पीछे धूर्ताधिराज चाणक्य यह सोचकर वह पर्वतक के राज्य में गया और वहाँ ने इस कन्या को पर्वतक के पास भेज दिया और उसके बूढ़े मंत्री से कहा कि चाणक्य बहा दगाबाज है, इंद्रियलोलुप पर्वतक उसी रात को उस कन्या के संग वह आधा राज कभी न देगा । आप राजा को लिखिए, वत मुलसे मिले तो मैं सघ राज्य उनको दै । मंत्री ने केतु यहाँ रहेगा तो उसको राज्य का हिस्सा देना पड़ेगा. से मर गया । इधर चाणक्य ने यह सोचा कि मलय- पत्रद्वारा पर्वतक को यह सब उत्त और राक्षस की इससे किसी तरह इसको यहां से भगावे तो काम चले। नौतिकुशलता लिख भेवा और यह भी लिखा कि अत्यंत इस कार्य के हेतु भागरायण नामक एक प्रतिष्ठित वृद्ध ई. आगे से मंत्री का नाम राक्षस को दीजिए विश्वासपात्र पुरुष को मलयकेतु के पास सिखा पड़ा पाटलिपुत्र विजय होने पर भी चाणक्य आभा राज्य देने कर भेज दिया । उसने पिछली रात को मलयकेतु से में विलंब करता है. यह देखकर सहज लोभी पर्वतक ने जाकर उसका बड़ा हितू बनकर उसने कहा कि आज मांत्री की बात मान ली और पत्र द्वारा राक्षस को गुप्त चाणक्य ने विश्वासपातकता करके आप के पिता को रीति से अपना मुख्य अमात्य बना कर इधर ऊपर के विषकन्या के प्रयोग से मार डाला और अवसर पाकर चित्त से चाणक्य से मिला रहा । आप को भी मार डालेगा । मलयकेतु बेचारा इस बात १. कुतूल देश किलात वा कुल्लू देश । २. विषकन्या शास्त्रो में दो प्रकार की लिखी है । एक घोड़े से ऐसे बुरे योग हैं कि उस लग्न में उस प्रकार के ग्रहों के समा जो कन्या उत्पन्न हो जिसके साथ जिसका विवाह हो वा जो उसका सा करे वह साथ ही या शीघ्र ही मर जाता है । दूसरे प्रकार की विषकन्या वैद्यक रीति से बनाई जाती थे । छोटेपन से वरन गर्भ से कन्या को दूध में या भोजन में थोड़ा-थोड़ा विष देते बड़ी होने पर उसका शरीर ऐसा विषमय हो जाता था कि जो उसका अंग संग करता वह मर जाता । OAK मुद्रा राक्षस ३११ 24