पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४२२

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3. पालीपुत्र भारतवर्षीय हर्म्युलास (हरिकल) देषता द्वारा | इंदिराज पांडत लिखते हैं कि सर्वार्थसिद्धि नदों में स्थापित हुई । सिसरो ने हyास (हरिकृष्ण) देवता मुख्य था । इसको दो स्त्रियाँ थी । सुनंदा बड़ी थी और का नामांतर लस (प्रल :) लिखा है। अल शब्द पास गया था. किंतु फिर तपोवन में चला गया । फिर बलदेव जी का बोध करता है और इन्ही का नामांतर शकटाल के कौशल से चाणक्य नंद के नाश का कारण बली भी है । कहते हैं कि निज पुत्र अंगद निमित्त हुआ । उसी समय शकटाल ने हिरण्यगुप्त जो कि बलदेव जी ने यह पुरी निर्माण को, इसी से वशीपुत्रपुरी योगानंद का पुत्र था उसको मार कर चन्द्रगुप्त को जो इसका नाम हुआ। इसी से पालीपुत्र और फिर कि असली नंद का पुत्र था, गद्दी पर बैठाया । पाटलीपुत्र हो गया । पाली भाषा, पाती धर्म, पाली देश इसरी शुदा थी. उसका नाम मुरा था । एक दिन राजा इत्यादि शब्द भी इसी से निकले है। कहते है कि दोनों रानियों के साथ एक ऋषि के वहाँ गया और ऋगि याणामुर के बनाए हुए वहाँ तीन पुर ये उन्हीं को कृत मार्जन के समय सुनव पर नौ और मुरा पर एक जीतकर बलदेव जी ने अपने पुत्रों के हेतु पुर निर्माण | टीट पानी की पड़ी । मुरा ने ऐसी भक्ति से उस जल को किए । वह तीनों नगर महाबलोपुर इस नाम से एक ग्रहण किया कि ऋषि से प्रसन्न होकर वरदान दिया। मनस हाते में एक विदर्भदेश में (मुजफ्फरपुर वर्तमान सुनंदा को एक मांसपिंड और मुरा को मोर्ष उत्पन्न नाम) और एक (राजमहल वर्तमान नाम) बंगदेश में हुत्रा । राक्षस ने मासापड काटकर नो टुकड़े किया, है । कोई कोई जलेश्वर मैसूर, पुरनियाँ प्रभृति को भी जिससे नौ लड़के हुए । मौर्य को सौ लड़के थे, जिसमें बाणासुर की राजधानी बतलाते हैं । यहाँ एक बात बड़ी | चन्द्रगुप्त सबसे बड़ा वृद्धिमान था । सर्वार्थसिद्धि ने गदा विचित्र प्रकट होती है । बानासुर भी कलीपुत्र है । क्या | को राज्य दिया और आप तपस्या करने लगा । नदों ने आश्चर्य है कि पहले उसी के नाम से बलीपुत्र शब्द से मोर्य और उसके कारकों को मार डाला, किंतु निकता हो । कोई नंद ही का नामांतर महाबली कहते चंद्रगुप्त चाणक्य नात्मण के पुत्र विष्णुगुप्त को है और कहते हैं कि पूर्व में गंगा जी के किनारे नद ने सहायता से नदों को नाश करके राजा हुआ। केवश एक महल बनाया था. उसके चारों ओर लोग यो ही भिन्न भिन्न कषियों और विद्वानों ने भिन्न धीरे-धीरे बसने लगे और फिर वह पत्तन (पटना) हो | भिन्न कथाएँ लिखी है। किंतु सबके मूल का सिद्धान्त गया । कोई महावती के पितामह उदसी, उसी. पास पास एक ही जाता है। उदम, श्रीउदयसिंह (?) ने ४५० ई. पू. इसको बसाया इतिहास तिमिरनाशक में इस विषय में जो कुछ मानते है । कोई पाटणि देवी के कारण पाटलिपुत्र | लिखा है वह नीचे प्रकाश किया जाता है। मानते हैं। बिंबिसार को उसके लड़के अजातशत्रु ने मार विष्णुपुराण और मागक्त में महापद्य के बड़े लड़के | दाला । मालूम होता है कि यह फसाद ब्राह्मणों ने का नाम सूमाल्य तिता है । इहल्कया में लिखते हैं कि उठाया । अजातशत्रु बोद्ध मत का शत्रु था । शाक्यमुनि शक्टाल ने इंदत्त का शरीर जला दिया इससे योगानंद गौतम बुद्ध धरती में रहने लगा । यहाँ भी प्रसेनजित (प्रथांत नंद के शरीर में इंद्रदत्त की आत्मा) फिर राजा को उसके बेटे ने गड़ी से उठा दिया : शाक्यमुनि गौतम हुआ । व्याडि जाने के समय शकटाश चे नाश करने बुद्ध कपिलवस्तु में गया । श मंत्र दे गया था । दरसगि मन्त्री हुआ किंतु योगानंद अजातशत्रु की दुश्मनी बोर मत से धीर धीरे बहुत ने मदमन होकर उसको नाश करना चाहा उससे वह कम हो गई । शाक्यमुनि गौतम बुद्ध फिर मगध में शकटान के में छिपा । उसकी स्त्री उपकोशा पति गया । पटना उस समय एक गाँव था, वहाँ हरकारों की को मृत समझकर सती हो गई । योगानंद के पुत्र | चौकी में ठहरा । यहाँ से विशाली ' में गया । विशाली हिरण्यगुप्त के पागल होने पर परसाद फिर राजा के की रानी एक वेश्या थी । वहाँ से पाया गया. वहाँ से १जैनो महावीर के समय विशाल्ली अथवा विशाला का राजा चेटक बतलाते हैं । यह जगह पटने के उत्तर तिरहुत में है: उजड़ गई है। यहाँ वाले अब उसे असहर पुकारते है। लेनी यहाँ महाीर का निर्वाण बतलाते है. पर जिस जगह को अब पावापुर मानते हैं असल में यह नहीं है । पाका विशाली से पश्चिम और गंगा ने उत्तर होनी चाहिए जैन अपने चौबीसवें अर्थात सबसे पिछले तीर्थंकर महावीर का निर्वाण विक्रम के संवत से ४१७६० अर्थात् सन् इसवी से ५२७ वरस वक्ताते है और महावीर के निर्वाण से २५० बरस पहले अपने तेईसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ भारतेन्दु समग्र ३७८ "Moka