पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४२६

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जमदग्नि को परशुराम हुए । यह उपाख्यान कालिका उत्पन्न और इन्हीं हम लोगों के पूर्व पुरुष महाराजा पुराण के ८४ अध्याय में स्पष्ट है। हरिश्चन्द्र भी थे और यह समझकर इस नाटक के पढ़ने इन उपाख्यानों के जानने से इस नाटक के पढ़ने | वाले कुछ भी अपना चरित्र सुधारेंगे तो कवि का वालें को बड़ी सहायता मिलेगी । इसी भारतवर्ष में | परिश्रम सुफल होगा । समर्पण नाथ यह एक नया कौतुक देखो। तुम्हारे सत्यपथ पर चलने वाले कितना कष्ट उठाते है यही उसमे दिखाया गया है। भला हम क्या कहै ? जो हरिश्चन्द्र ने किया वह तो अब कोई भी भारतवासी न करैगा पर उस वंश ही के नाते इनको भी मानना हमारी तो कुछ भी नहीं पर तुम्हारी तो बहुत कुछ हए । बस इतनी ही सही।लो सत्य हरिश्चन्द्र तुम्हें समर्पित है अंगीकार करो। छल मत समझना सत्य शब्द सार्थ है कुछ पुस्तक के बहाने समर्पण नहीं है। तुम्हारा जेष्ठ शुद्ध ५ सं. १९३३ । हरिश्चन्द्र। चार अंको में सत्यहरिश्चन्द्र | इतने गुणज्ञ और रसिक लोग एकत्र हैं और सबकी एक रूपक इच्छा है कि हिन्दी भाषा का कोई नवीन नाटक देखें। करुण रस अंगी धन्य है विद्या का प्रकाश कि जहां के लोग नाटक किस भयानक और बीर अंग चिढ़िया का नाम है इतना भी नहीं जानते थे भला वहाँ अब लोगों की इच्छा इधर प्रवृत्त हुई । परन्तु हा ! शोच प्रथम अंक इन्द्र सभा की बात है कि जो बड़े-२ लोग हैं और जिनके किए कुछ द्वितीय अंक हरिश्चन्द्र की सभा हो सकता है वे ऐसी अन्धपरम्परा में फंसे हैं और ऐसे तृतीय अंक काशी में विक्रय बेपरवाह और अभिमानी हैं कि सच्चे गुणियों की कहीं चतुर्थ अंक स्मशान बात है जिन्हें झूठी खैरखाही दिखाना वा लंबा चौड़ा अथ सत्यहरिश्चन्द्र गाल बजाना आता है । (कुछ सोच कर क्या हुआ, ढंग (मंगलाचरण) पर चला जायगा तौ यों भी बहुत कुछ हो रहैगा । काल सत्यासक्त दयाल द्विज प्रिय अघ हर सुख कन्द । बड़ा बली है, धीरे-२ सब आप से आप ही कर देगा । जनहित कमला तजन जय शिव नृप कवि हरिचन्द || पर भला आज इन लोगों को लीला कौन सी दिखाऊ । (नान्दी के पीछे सूत्रधार आता है) (सोच कर) अच्छा उनमें भी तो पूछ लें ऐसे कौतुकों में सु.- अहा! आज की सन्ध्या भी धन्य है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की बुद्धि विशेष लड़ती है । पूछ ही नहीं है । केवल उन्हीं की चाह और उन्हीं की (नेपथ्य की ओर देख कर) मोहना ! अपनी भाभी को १. यह श्लेष शिवजी, राजा हरिश्चन्द्र, श्रीकृष्ण, चन्द्रमा और कषि पांच का वर्णन करता है। २. सूत्रधार हरे वा नीले रंग की साटन का कामदार जांघिया पहिने उस के आगे पटुके की तरह। कमरबन्द के दोनों किनारे नीचे ऊपर लटकते हुए गले में चुस्त सामने बुताम की मिरजाई. ऊपर माला वगैरह और सब गहिने सिर पर टिपारा, पैर में धुंघरू, हाथ में छडी, वा पैजामा, काछनी सिर पर मुकुट । motit भारतेन्दु समग्र ३८२