पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४४

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चन्द्रमा के चिन्ह को भाव वर्णन याही हित नवकोन को चिन्ह कृष्ण-पद पास ।५ श्री शिव सों निज चरण सों प्रगट करन हित हत । यामैं नव रस रहत हैं यह अनंद की खानि । चंद्र-चिन्ह हरि-पद बसत निज जन को सूख देत ।१ याही ते नवकोन को चिन्ह कृष्ण-पद जानि । जे या चरनहिं सिर धरे ते नर रुद्र समान । नव को नव-गुन लगि गिनौ नवै अंक सब होत । चंद्र-चिन्ह यहि हेतु निज पद राखत भगवान ।।२ तातें रेखा कहत जग यामै ओत न प्रोत ७ निज जन पै बरखत सुधा हरत सकल त्रयताप । यव के चिन्ह को भाव वर्णन चंद्र-चिन्ह येहि हेतु हरि धारत निज पद आप ।।३ जीवन जीवन के यहै अन्न एक तिमि येह । भक्त जनन के मन सदा यामैं करत निवास । या हित जब को चिन्ह पद धारत साँवल देह ।१ यातें मन को देवता चंद्र-चिन्ह हरि पास ।४ तिल के चिन्ह को भाव वर्णन बहु तारन को एक पति जिमि ससि तिमि ब्रजनाथ । दक्षिनता प्रगटित करन चंद्र-चिन्ह पद साथ ।५ याके शरण गए बिना पित्रन को गति नाहि । जाकी छटा प्रकाश तें हरत हृदय-तम घोर । या हित तिल को चिन्ह हरि राखत निज पद मांहि ।१ या हित ससि को चिन्ह पद धारत नंदकिसोर १६ त्रिकोण के चिन्ह को भाव वर्णन निज भगिनी श्री देखि कै चंद्र बस्यौ मनु आइ । स्वीया परकीया बहुरि गनिका तीनहु नारि । चन्द्र-चिन्ह ब्रजचंद्र-पद यातें प्रगट लखाइ ७ सबके पति प्रगटित करत मनमथ-मथन मुरारि ।१ तरवार के चिन्ह को भाव वर्णन तीनहु गुन के भक्त को यह उदरण समर्थ । निज जन के अघ-पसुन को बधत सदा करि रोस । सम त्रिकोन को चिन्ह पद धारत याके अर्थ १२ एहि हित असि पग मैं धरत दर दरत जन-दोस ।१ ब्रहमा-हरि-हर तीनि सुर याही ते प्रगटत । या हित चिन्ह त्रिकोन को धारत राधाकंत ।३ गदा के चिन्ह को भाव वर्णन श्री-भू-लीला तीनहू दासी याकी जान । काम- म-कलुख-कुंजर-कदन समरथ जो सब भाँति । तातें चिन्ह त्रिकोन को पद धारत भगवान ।४ गदा-चिन्ह येहि हेतु हरि धरत चरन जुत क्राति ।१ स्वर्ग-भूमि-पाताल में विक्रम हवै गए धाइ । भक्त-नाद मोहिं प्रिय अतिहि मन महँ प्रगट करत । याहि जनावन हेत त्रय कोन चिन्ह दरसाइ । गदा-चिन्ह निज कमल पद धारत राधाकंत ।२ जो याकै शरनहि गए मिटे तीनहूँ ताप । छन्त्र के चिन्ह को भाव वर्णन या हित चिन्ह त्रिकोन को धरत हरत जो पाप । भक्ति-ज्ञान-वैराग है याके साधन तीन । भय दुख आतप सों तपे तिनका अति प्रिय एह । छत्र-चिन्ह येहि हेत पग धारत साँवल देह ।१ यातें चिन्ह त्रिकोन को कृष्ण-चरन लखि लीन १७ त्रयी सांख्य आराधि के पावत जोगी जौन । ब्रज राख्यो सुर-कोप तें भव-जल ते निज दास । छत्र-चिन्ह पद मैं धरत या हित रमानिवास ।२ सो पद है येहि हेत यह चिन्ह त्रिश्चति को मौन । याकी छाया में बसत महाराज सम होय । बृन्दाबन द्वारावती मधुपुर तषि नहि जाहि । छत्र-चिन्ह श्रीकृष्ण पद यातें सोहत सोय ।३ यातें चिन्ह त्रिकोन है कृष्ण-चरन के माहिं ।९ नवकोण चिन्ह को भाव वर्णन का सुर का नर असुर का सब पैं दृष्टि समान । नवो खंड पति होत हैं सेवत जे पद-कंजु । एक भक्ति ते होत बस या हित रेखा जान ।१० चिन्ह धरत नवकोन को या हित हरि-पद मंजु ।१ नित शिव जू वंदन करत तिन नैननि की रेख । या हित चिन्ह त्रिकोन को कृष्ण-चरन मैं देख ।११ नवधा भक्ति प्रकार करि तब पावत येहि लोग । या हित है नवकोन को चिन्ह चरन गत-सोग ।२ वृक्ष के चिन्ह को भाव वर्णन नव जोगेश्वर जगत नजि यामें करत निवास । वृक्ष-रूप सब जग अहै बीज-रूप हरि आप । या हित चिन्ह सुकोन नव हरि-पद करत प्रकास । याते तस को चिन्ह पग प्रगटत परम प्रताप ।१ नव ग्रह नहिं बाधा करत जो एहि सेवत नेक । जे भव आतप सो तपे तिनहीं के सुख हेतु । याही तें नवकोन को चिन्ह धरत सविवेक ।४ वृक्ष-चिन्ह निज चरन मैं धारत खगपति-केतु ।२ अष्ट सखिन के संग श्री राधा करत निवास । जहँ पग धरै निकुंजमय भूमि तहाँ की होय । wote भारतेन्दु समग्न ४