पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४४९

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सत्य हरिश्चन्द्र नाटक के परवर्ती संस्करणों में बढ़ाया गया अंश । (पिशाच और डाकिणी गण परस्पर आमोद करते और गाते बजाते आते हैं। पि. और डा.-- डा.--- हैं भूत प्रेत हम, डाइन हैं छमाछम, हम मांग के लाल लाल लोह का सिंदूर लगावेंगी। हम सेवै मसान, शिव को भजे, बोलें बम बम बम । हम नस के तागे चमड़े का लहँगा बनावेगी ।। पि.- सब-- हम कड़ कड़ कड़ कड़ कड़ कड़ हड़ी को तोड़ेंगे। हम धज से सज के बज के चलेंगे चमकेंगे चम चम चम। हम भड़ भड़ धड़ धड़ पड़ पड़ सिर सबका फोड़ेंगे । डा.-- हम घुट घुट घुट घुट घुट घुट लोह | लोहू का मुंह से फरै फर फुहारा छोड़ेंगे। पिलावेंगी। माला गले पहिरने को तड़ी को जोड़ेगे ।। हम चट चट चट चट चट चट ताली बजादेगी ।। सब-- हम नाचें मिलकर घेई घेई धेई घेई को धम् धम् धम् । लाद के औंधे मुरदे चौकी बनावेंगी। हैं भूत प्रेत हम, डाइन हैं छमा छम ।। कफन बिछा के लड़कों को उस पर सुलावेंगी ।। पि.--- सब हम काट काट कर सिर को गेंदा उछालेंगे। हम सुख से गावेंगे ढोल बजावेंगे ढम ढम ढम ढम ढम। हम खींच खींच कर चर्बी पंशाखा बालेंगे !। (वैसे ही कृदते हुए एक ओर चले जाते हैं।) हम WYWAN! सत्य हरिश्चन्द्र ४०५