पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६

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जहाँ जहाँ प्रभु पद धरत तहाँ तीन प्रगटत । महाराज तिनको करत सह स्यामा भगवान ।२ या हित तीनहु चिन्ह ए धारत राधाकत ।२ सात चिन्ह को मिलि कै वर्णन त्रिकोन नवकोन और अष्टकोन के चिन्ह तहाँ वेणु, मत्स्य, चंन्द्र, वृक्ष, कमल, को भाव वर्णन कुमुद, गिरि के चिन्ह को भाव वर्णन तीन आठ नव मिलि सबै बीस अंक पद जान । आवाहन हित वेणु झष काम बढ़ावन हेत । जीत्यौ बिस्वे बीस सोइ जो सेवत करि ध्यान 1१ चंद्र बिरह-बरधन करन तरु सुगघि रस देत ।१ चारि चिन्ह को मिलि कै वर्णन कमल हृदय प्रफुलित-करन कुमुद प्रेम-दृष्टान्त । गिरिवर सेवा करन हित धारत राधा-कांत २ तहाँ अमृत-कुंभ, धनु, वंशी और गृह के चिन्ह को भाव वर्णन राग-बिलास-सिंगार के ये उदीपन सात । वैद्यक अमृत-कुभ सों धनु सों धनु को वेद । आलंबन हरि संग ही राखत पद-जलजात ।३ गान वेद वंशी प्रगट शिल्प वेद गृह भेद ।१ आठ चिन्ह को मिलि कै वर्णन रिग यजु साम अथर्व के ये चारहु उपवेद । तहाँ वज, अग्निकुंड, तिल, तलवार, मच्छ, सो या पद सों प्रगट एहि हेतु चिन्ह गत खेद १२ गदा, अष्टकोण और सर्प को भाव वर्णन सर्प, कमल, अग्निकुंड और गदा के चिन्ह को भाव वर्णन बज्र इन्द्र बपु. अनल है अग्निकुंड बपु आप । जम तिल बपु. तरवार बपु नैरित प्रगट प्रताप ।१ रामानुज मत सर्प सों शेष अचारज मानि । निबारक मत कमल सों रविहि पद्म प्रिय जानि ।१ वरुन मच्छ बपु, गदा बपु वायु जानि पुनि लेहु । विष्णुस्वामि मत कुंड सों श्रीवल्लभ वपु जान । अष्टकोन बपु धनद है, अहि इसान कहि देहु ।२ गदा चिन्ह सों माध्य मत आचारज हनुमान ।२ आयुध बाहन सिद्धि मष आदिक को संबंध । इन चारहु मत मैं रहै तिनहिं मिले भगवंत । इन चिन्हन सों देव सों जानहु करि मन संध ।३ कुंड गदा अहि कमल येहि हित जानहु सब संत ।३ सोइ आठो दिगपाल मनु सेवत हरि-पद आइ । शक्ति, सर्प, बरछी, अंकुश अथवा दिगपति होइ जो रहै चरन सिरु नाई को भाव वर्णन पुन: सर्प चिन्ह श्री शंभु को शक्ति सु गिरिजा भेस । अंकुश, बरछी, शक्ति, पवि, गदा, धनुष, असि तीर । कुंत कारतिक आपु है अंकुश अहै गणेस ।१ आठ शस्त्र को चिन्ह यह धारत पद बलबीर । प्रिया-पुत्र सँग नित्य शिव चरन बसत हैं आप । आठहु दिसि सों जनन की मनु-इच्छा के हेत । तिनके आयुध चिन्ह सब प्रगटित प्रबल प्रताप ।२ निज पद में ये शस्त्र सब धारत रमा-निकेत ।२ पाँच चिन्हन को मिलि कै वर्णन नव चिन्ह को मिलि कै वर्णन तहाँ गदा, सर्प, कमल, अंकुश शक्ति के चिन्ह को भाव वर्णन तहाँ बेनु, चंद्र, पर्वत, रथ, अग्नि, बज,मीन, गदा विष्णु को जानिए अहि शिव जू के साथ । गज, स्वस्तिक चिन्ह को भाव वर्णन दिवसनाथ को कमल है अंकुश है गणनाथ ।१ बेनु-चंद्र-गिरि-रथ-अनल-बज्र- मीन-गज-रेख । शक्ति रूप तहँ शक्ति है एई पाँचौ देव । आठौ रस प्रगटत सदा नवम स्वस्तिकहु देख ।१ चिन्ह रूप श्रीकृष्ण-पद करत सदा शुभ सेव ।२ बेनु प्रगट शृंगार रस जो बिहार को मूल । जिमि सब जल मिलि नदिन में अंत समुद्र समात । चरन कमल मैं चंद्रमा यह अद्भुत गत सूल ।२ तिमि चाहौ जाकौ भजौ कृष्ण चरन सब जात ।३ कोमल पद कहँ गिरि प्रगट यह हास्य की बात । छ चिन्हन को मिलि के वर्णन रन उद्यम आगे रहै रथ रस वीर लखात ।३ तहाँ छत्र, सिंहासन, रथ, घोड़ा, निसिचर-तूलहि दहन हित अग्निकुंड भय-रूप । हाथी और धनुष के चिन्ह को भाव वर्णन| रौद्र सर्प को चिन्ह है दुष्टन-काल-सरूप ।४ छत्र सिंहासन बाजि गज रथ धनु ए षट जान । गज करुणा रस रूप है जिन अति करी पुकार । राज-चिन्ह मैं मुख्य हैं करत राज-पद दान ।१ मीन चिन्ह बीभत्स है बंगाली-व्यवहार ।५ जो या पद को नित भजे सेवै करि करि ध्यान । नाटक के ये आठ रस आठ चिन्ह सों होत । 18 भारतेन्दु समग्न ६