पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'प्रान बचै केहि भातिन सों तरसैं नहिं जान परै हरिचन्द कळू जब दूर सों देखिबै को मुख ।। बिधि ने हम सों हठ कौर ठयो ।। ब. दे. (आंसू अपने आंचल से पोंछकर) तौ निसि आजहू की गई हाय बिहाय ये यहां नाय रहिबे की सखी एक घड़ी धीरज धर जब पिया बिनु कैसो न जीव गयो ।। हम चली जाय तब जो चाहियो सो करियो । हत अभागिनी आखिन को नित के च.- अरी सखियो मोहि छमा करियो, अरी दुख देखिबे को फिर भोर भयो ।। देखो तो तुम मेरे पास आई और हमने तुमारो कछ्र तो चलो घर चलें. हाय हाय ! मां सों कौन बहाना सिष्टाचार न कियो । (नेत्रों में आंसू भर कर, हाथ | करूंगी, क्योंकि वह जाती ही पूछेगी कि सब रात जोड़कर) सखी मोहि छमा करियो और जानियो कि जहां अकेली बन में कहा करती रही । (कुछ ठहर कर) पर मेरी बहुत सुखी हैं उन मैं एक ऐसी कुलच्छिनी हूं है । प्यारे ! भला यह तो बताओ कि तुम आज की रात कहां सं और व.-नहीं नहीं सखी तू तो मेरी प्रानन रहे ? क्यों देखो तुम हमसे झूठ न बोले न ! बड़े झूठे सों हूं प्यारी है, सखी हम सच कहैं तेरी सी सांची | हौ, हा ? अपनों से तो झूठ मत बोला करो, आओ प्रेमिन एक ह न देखी ऐसे तो सबी प्रेम करै पर तू सखी आओ अब तो आओ। धन्य है। आउ मेरे झूठन के सिरताज । चं. हां सखी और (संध्या को दिखा कर) या छल के रूप कपट की मूरत मिथ्यावाद जहाज । सखी को नाम का है? क्यों परतिज्ञा करी रह्यौ जो ऐसो उलटो काज । ब. दे.-याको नाम सध्या है । पहिले तो अपनाइन आवत तजिबे में अब लाज ।। चं.- (घबड़ा कर) संध्यावली आई ? क्या कुछ चलो दूर हठो बड़े झूठे हो । संदेसा लाई ? कहो कहो प्रान प्यारे ने क्या कहा ? आउ मेरे मोहन प्यारे झूठे। सखी बड़ी देर लगाई (कुछ ठहर कर) संध्या हुई है ? अपनी टारि प्रतिज्ञा कपटी उलटे हम सों रूठे ।। संध्या हुई ? तो वह बन से आते होंगे सखियो चलो | मति परसौ तन रगे और को रंग अधर तुम जूठे । झरोखों में बैठे यहां क्यों बैठी हौ 1 ताहू पै तिनको लाजत निरलज अहो अनूठे ।। (नेपथ्य में चन्द्रोदय होता है, चन्द्रमा को देखकर) पर प्यारे बताओ तो तुम्हारे बिना राता क्यों इतनी अरे-२ यह देखो आया । (उंगली से दिखा कर) काम कछु नहिं यासों हमें देख सखी देख अनमेख ऐसो भेख यह सुख सों जहां चाहिए रैन बिताइए। जाहि पेख तेज रबिहू को मंद वै गयो । पै जो करे बिनती हरिचन्द जू हरिचन्द ताप सब हिय को नसाइ चित उत्तर ताको कृपा कै सुनाइए ।। आनन्द बढ़ाइ भाइ अति छकि सों छयो ।। एक मतो उनसो क्यों कियो तुम ग्वाल उडुगन बीच बेनु को बजाइ सुधा सोउ न आवै जो आप न आइए । रस बरखाइ मान कमल लजा दयो । रूसिबे सों पिय प्यारे तिहारे गोरज समूह घन पटल उघारि वह दिवाकर रूसत है क्यों बताइए ।। गोप कुल कुमुद निसाकर उदै भयो ।। जाओ जाओ मैं नहीं बोलती (एक वृक्ष की आड़ में चलो चलो उधर चलो । (उधर दौड़ती है) दौड़ जाती है) ब.दे. (हाथ पकड़ कर) अरी बावरी भई है तीनों-भई ! यह तो बावरी सी डोले, चलो हम चन्द्रम निकस्यो है के वह बन सों आवै है? सब वृक्ष की छाया में बैठे (किनारे एक पास ही तीनों चं. (घबड़ा कर) का सूरज निकस्यो ? भोर बैठ जाती हैं) भयो हाय ! हाय ! हाय ! या गरमी में या दुष्ट सूरज की चंद्रा.- (घबराई हुई आती है अंचल केश तपन कैसे सही जायगी अरे भोर भयो हाय भोर भयो ! | इत्यादि खुल जाते है) कहां गया कहां गया ? बोल ! सब रात ऐसे ही बीत गई. हाय फेर वही घर के व्योहार उलटा रूसना, भला अपराध मैंने किया कि तुमने ? चलेंगे, फेर वही नहानो वही खानो बेई बाते. हाय ! अच्छा मैने किया सही, क्षमा करो, आओ, प्रगट हो, मुंह केहि पाप सों पापी न प्रान चलैं दिखाओ, भई बहुत भई गुदगुदाना वहां तक जहां तक अटके कित कौन बिचार लयो । रुलाई न आवै ( कुछ सोचकर) हा ! भगवान किसी को % बढ़ जाती है भारतेन्दु समग्र ४४८