पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

GER (होली) भयो पंक अति रंग को तामै गज को जूध फसो री । न कोउ बिधि निकसि सको री ।१४ भारत मैं मची है होरी ।। कंफन बांधो कर में सबेरे चूरी डारहु तोरी । इक ओर भाग अभाग एक दिसि होय रही झकझोरी । एक मतो करि दृढ़ हदै सबेरे आगेहि चरन धरो री । अपनी अपनी जय सब चाहत होड़ परी दुहुँ ओरी ।। मचा बहु गहिरी होरी ।१५ दुन्द सखि बहुत बढ़ो री ।।१।। अबलन सो जनि डरहु धाइ दृढ़ करिकै करन गहोरी । धूर उड़त सोइ अबिर उड़ावत सबको नयन भरो री । निपट निलज करिके झकझोरहु अरुन रंग में बोरी । दीन दसा अंसुवन पिचकारिन सब खिलार भिंजयो री ।। छबीलिन रंग रंगोरी १६ भीजि रहे भूमि लटो री ।।२।। खेलत खेलत पूनम आई भारी खेल मचो री। भइ पतझार तत्व कहुँ नाही सोइ वसंत प्रगटो री । चलत कुमकुमा रंग पिचकारी अरु गुलाल की झोरी ।। पीरे मुख भई प्रजा दीन वै सोइ फूली सरसों री ।। बजत डफ राग जमोरी ।१७२ सिसिर को अंत भयो री ।।३।। होरी सब ठावन लै राखी पूजत लै लै रोरी । बौराने सब लोग न मुझत आम सोई बौरयो री। घर के काठ डारि सब दोने गावत गीतन गोरी ।। कुट्ट कहत कोकिल ताही तें महा अंधार छयो री ।। झूमको भूमि रहो री ।१८ रूप नहिं कहु लख्यौ री ।।४।। तेज बुद्धि बल धन अरु साहस उद्यम सूरपनो री ! हारयो भाग अभाग जीत लखि विजय निसान हयो री। होरी में सब स्वाहा कोनी पूजन होत भलो री ।। तव उछाह श्रीधन बुधिबल सब फगुआ माहि लयो री ।। करत फेरी तब को री ।१९ सेस कछु रहि न गयो री ।।५।। फेर धुरहरो भई दूसरे दिन जब अगिन बुझो री ।

  • गारी बकत कुफार जीति दल तासुन सोच लयो री। सब कछु जरि गयो होरी में तब धूरहि धूर बचो री ।

मूरख कारो काफिर आधो सिच्छित सबहि भयो री ।। नाम जमघण्ट परोरी ।२० उतर काहू न दयो री ।।६।। फूक्यो सब कछु भारत ने कछु हाथ न हाय रहो री । उठौ उठौ मैया क्यों हारौ अपुन रूप सुमिरो री । तब रोअन मिस चैती गाई भली भई यह होरी । राम युधिष्ठिर विक्रम की तुम झटपट सुरत करोरी ।। भलो तेवहार भयो री ।२१ दीनता दूर धरो री ।।७।। (रोती हुई भारत जननी की ठोढ़ी पर हाथ रख कर) कहां गये क्षत्री किन उन के पुरषारयहिं हरो री । चूड़ी पहिरि स्वांग बनि आए धिक धिक सबन कयो री। (राग चैती) भेस यह क्यों पकरोरी । धिक वह मात पिता जिन तुम सो कायर पुत्र जन्यो री। अब हम जात हो परदेसवा कठिन फिर होइहै मिलनवां धिक वह घरी जनम भयो जामै यह कलंक प्रगटोरी। जनमतहि क्यों न मरोरी ।९ अरे मुखहू न कोई बोलै कोई न आदर देय मोरे रामा । खान पियन अरु लिखन पढन सो काम न कछ्र चलो री। अरे सपनेहु न मोर पियरवा रे भुज भर मोहि लेय ।। आलस छोड़ि एक मत हवै कै सांची वृद्धि करोरी । अरे अबहू न सोचत लोगवा मति सद गई बौराय हो राम। समय नहिं नेकु बचो री ।१० हमरे बिन जरि जरि मरिहैं करि करि के हाय । उठौ उठो सब कमरन बांधौ शस्त्रन सान धरोरी । हम रूसि चली परदेसवां फिर नहिं आवन होय हो राम। विजय निसान बजाइ बावरे आगेइ पांव धरो री। अरे बिन आदर तनिको पाए जात विदेश हम रोय । छबीलिन रंग रंगोरी ।११ (रोते रोते हाथ की तलवार को दो टुकड़े तोड़कर भारत आलस मैं कछु काम न चलि है सब कह तो बिनसोरी। दुर्गा जाती है। कित गयो धन बल कल विवेक अब कोरो नाम बचोरी। (भारत लक्ष्मी आती है) (हरी चन्दर जोत छूटै) तऊ नहि सुरत करो री ।१२ कोकिल एहि बिधि बहुबकि हार्यो काह नाहि सुनोरी। (सोरठ गाकर) मेटो सकल कुमेटी थोथी पोथी पढ़त मरो री। काज नहिं तनिक सरोरी १३ भा. ल.-- चालिस दिन इमि खेलत बीते खेल नहीं निपटोरी। मलिन मुख भारत माता तेरो । हो राम । $32 भारत जननी ४७३