पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२

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प्रेम-मालिका रचनाकाल - १८७१ ई. "संचिन्तयेद्भगवतश्चरणारविन्द, वज्रांकुशध्वजसरोरुहलाछनाढ्यम । उत्तुगरक्तविलाससन्नखचक्रवाल, ज्योत्स्नाभिराहरमहदृदयान्धकारम् । यच्छौचनिसृतसरित्प्रवरोदकेन, तीर्थेन मूर्त्यधिकृतेन शिव : शिवोभूत । ध्यातुर्मनश्शमलशैलनिसृष्टवजं. ध्यायेच्चिर भगवतश्चरणारविन्दम् ।२" TO THE LOVE THESE Few Pages are Affectionately DEDICATED WITH THE GOOD WISHES OF HARISH CHANDRA BENARES विजयते जीवितेश: इस छोटे से ग्रंथ में मेरे बनाए कीर्तनों में से कतिपय कीर्तन एकत्र किए गए हैं। इसमें कीर्तन तीन भाँति के हैं-एक तो लीला संबंधी, दूसरे दैन्य भाव के और तीसरे परम प्रेममय अनुभव के हैं। इसको एकत्र करना और छपवाना अप्रयोजन था, क्योंकि एक तो संसार में प्राय: अनधिकारी लोग हैं, दूसरे इसके द्वारा लोगों में अपनी प्रसिद्धि की इच्छा नहीं। तथापि परम प्रीति से यह प्रेम-पुष्प-प्रथित मालिका उसी के श्रीकंठ में समर्पित है जो इसमें गाया गया है। हरिश्चंद्र प्रेम-मालिका. राग यथा-रुचि प्यारी छबि की रासि बनी । जाहि बिलोकि निमेष न लागत नी वृषभानु-जनी ।। नंद-नंदन सो बाहु मिथुन करि ठाढ़ी जमुना-तीर । करक होत सौतिन के छघि लखि सिंह कमर पर चीर ।। कीरति की कन्या जग-धन्या अन्या तुला न बाकी । वृश्चिक सी कसकत मोइन-हिय भौंह छबीली जाकी । धन धन रूप देखि जेहि प्रति छिन मकरध्वज-तिय लाजै। जुग कुच-कुंभ बावत सोभा मीन नयन लखि भाजै ।। बैस-संधि-संक्रौन-समय तन जाके बसत सदाई । 'हरिचंद' मोहन बढ़भागी जिन अंकम करि पाई।१ आजु तन नीलाम्बर अति सोहै। तैसे ही केश खुले मुख ऊपर देखत ही मन मोहै ।। मनु तन-गन लियो जीति चंद्रमा सौतिन मध्य बंध्यो है । कै कवि निज जिजभान जूथ में सुंदर आइ बस्यौ है ।। श्री जमुना जल कमल खिल्यौ भारतेन्दु समग्र १२