पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२३

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Sex रत्नाभरण और विविध वर्ण वसन से भूषित क्षीण कटि प्रम बिना फीकी सब बातें कहहु न लाख बनाई ।। देश कसे, निज निज पति गण के साथ, प्रसन्न बदन जोग ध्यान जप तप व्रत पूजा प्रम बिना बिनसाई ।। इधर से उधर फर फर कल की पुतली की भाँति फिरती हाव भाव रस रंग रीति बहु काव्य केलि कुसलाई । हुई दिखलाई पड़ती है तब इस देश की सीधी सीधी विना लोन विंजन सो सबही प्रेम रहित दरसाई ।। स्त्रियों की हीन अवस्था मुझको स्मरण आती है और प्रेमहि सो हरिहू प्रगटत है बदपि ब्रह्म जगराई । यही बात मेरे दु:ख का कारण होती है । इससे यह तासों यह जग प्रमसार है और न आन उपाई ।। शंका किसी को न हो कि मैं स्वप्न में भी यह इच्छा करता हूँ कि इन गौरांगी युवती समूह की भांति हमारी कुललक्ष्मी गणा भी लज्जा को तिलांजलि देकर अपने पति के साथ घूमैं ; किंतु और बातों में जिस भांति दूसरा दृश्य अंगरेजी स्त्रियाँ सावधान होती हैं, पढ़ी लिखी होती हैं, युद्ध के ढेरे खड़े हैं। घर का काम काज सम्हालती है. अपने संतान गण को एक शामियाने के नीचे अमीर अबदुश्शरीफखाँ सूर बैठा शिक्षा देती है, अपना स्वत्व पहचानती हैं, अपनी जाति है और मुसाहिब लोग इर्द गिर्द बैठे है । और अपने देश की सम्पत्ति विपत्ति को समझती हैं, शरीफ़-(एक मुसाहिब से) अबदुस्समद ! खूब उसमें सहाय देती हैं. और इतने समुन्नत मनुष्य जीवन | होशियारी से रहना । यहाँ के राजपूत बड़े काफिर हैं । को व्यर्थ ग्रह दास्य और कलह ही में नहीं खोती उसी | इन कमबख्तों से खुदा बचाए । (दूसरे मुसाहिब से) भाँति हमारी गृह देवता भी वर्तमान हीनावस्था को | मलिक सज्जाद ! तुम शव के पहरों का इन्तिजाम अपने उल्लंघन करके कुछ उन्नति प्राप्त करें यही लालसा जिम्मे रक्खो ऐसा न हो कि सूरजदेव शबेखून मारे । है। इस उन्नति पथ की अवरोधक हम लोगों की (काजी से) काज़ी साहब ! मैं आप से क्या बयान करूं. वर्तमान कुल परंपरा मात्र है और कुछ नहीं है । आर्म्य वल्लाही सूरजदेव एक ही बदबला है । इहातए पंजाब जन मात्र को विश्वास है कि हमारे यहाँ सर्वदा स्त्रीगण में ऐसा बहादुर दूसरा नहीं । इसी अवस्था में थीं । इस विश्वास के भ्रम को दूर काजी- बेशक हुजूर ! सुना गया है कि वह करने ही के हेतु यह ग्रंथ विचरित हो कर आप लोगों के हमेशा खेमों ही में रहता है । आसमान शामियाना और कोमल कर कमलों में समर्पित होता है । निवेदन यही जमीन ही उसे फर्श है । हजारों राजपूत उसे हरवक्त घेरे रहते हैं। है कि आप लोग इन्हीं पुण्यरूप स्त्रियों के चरित्र को पढ़ें. सुनें और क्रम से यथाशक्ति अपनी वृद्धि करें। शरीफ- वलाह तुमने सच कहा, अजब २५ दिसंबर १८८१ ग्रंथकर्ता | बदकिरदार से पाला पड़ा, जाना तंग है । किसी तरह यह कमबख्न हाथ आता तो और राजपूत खुद बखुद पस्त हो जाते । १ मुसाहिब-खुदावन्द ! हाथ आना दूर रहा उसके खौफ से अपने खेमे में रहकर भी खाना सोना नीलदेवी हराम हो रहा है। वियोगात शरीफ-कभी उस बेईमान से सामने लड़ कर प्रथम दृश्य फतह नही मिलनी है । मैंने तो अब जी में ठान ली है हिमगिरि का शिखर कि मौका पाकर एक शब उसको सोते हुए गिरफ्तार (तीन अप्सरा गान करती हुई दिखाई देती हैं। कर लाना । और अगर खुदा को इस्लाम की रोशनी का अप्सरागण- (झिझौटी जल्द तिताला) जिल्वा हिन्दोस्तान जुल्मत निशान में दिखलाना मंजूर धन धन भारत की छत्रानी । है तो बेशक मेरी मुराद बर आएगी। वीरकन्यका वीरप्रसविनी वीरवधू जग जानी ।। काजी-इन्शा अलाह तआला । सती सिरोमनि धरमधुरन्धर बुधि बल धीरज खानी । शरीफ-कसम है कलामे शरीफ की मेरी इनके जस की तिहूँ लोक में अमल धुजा फहरानी । खुराक आगे से इस तफक्कुर में आधी हो गई है। सब मिलि गाओ प्रेम बधाई। (सब लोगों से) देखो अब मैं सोने जाता हूँ तुम सब लोग यह संसार रतन इक प्रेमहि और बादि चतुराई ।। होशियार रहना। 56 नील देवी ४७९

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