पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२९

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तवाँ दृश्य निठुर होइ तजि मोहि सिधारे नेह निबाहन रीति । जागत नेकु न यदपि बहुत बिधि भारत बासी रोए ।।। लोगों ने सुना । अब कहिए क्या कर्तव्य है ? मेरी तो इक दिन वह हो जब तुम छिन नहिं भारत हित बिसराए। शोक से मति विकल हो रही है । आप लोगों की जो इतके पसु गज को आरत लखि आतुर प्यादे धाए ।। अनुमति हो किया जाय । इक इक दीन हीन नर के हित तुम दुख सुनि अकुलाई।। १रा. पू.-कुमार आप ऐसी बात करेंगे कि अकुलाई ।। शोक से मति विकल हो रही है तो भारतवर्ष किसका अपनी संपति जानि इनहि तुम रहयो तुरतहि धाई ।। मुंह देखैगा । इस शोक का उत्तर हम लोग अश्रुधारा प्रलय काल सम जौन सुदरसन असुर प्रान संहारी । से न देकर कृपाण धारा से देंगे। ताकी धार भई अब कुंठित हमरी बेर मुरारी ।। २ रा. पु.-बहुत अच्छा !!! उन्मत्त सिंह, दुष्ट जवन वरबर तुव संतति घास साग सम काटें । तुमने बहुत अच्छा कहा । इन दुष्ट चांडाल यवनों के एक-एक दिन सहस सहस नर सीस काटि भुव पाटै।। रुधिर से हम जब तक अपने पितरों का तर्पण न कर व्यै अनाथ आरत कुल विधषा बिलपहि दीन दुखारी।। लेगे हम कुमार की शपथ करके प्रतिज्ञा कर के कहते हैं बल करि दासी तिनहिं बनावहिं तुम नहि लजत खरारी। कि हम पितृऋण से कभी उऋण न होंगे। कहाँ गए सब शास्त्र कही जिन भारी महिमा गाई । ३ रा. पू. शाबाश! विजयसिंह ऐसा ही भक्तबछल करुनानिधि तुम कहं गयो बहुत बनाई ।। होगा। चाहे हमारा सर्वस्व नाश हो जाय परंतु हाय सुनत नहिं निठुर भए क्यों परम दयाल कहाई । आकल्पात लोह लेखनी से हमारी यह प्रतिज्ञा दुष्ट सब बिधि बुड़त लखि निज देसहि लेहु न अबहुँ बचाई।। यवनों के हृदय पर लिखी रहेगी । धिक्कार है उस (दोनों रोते हैं) छत्रियाधम को जो इन चांडालों के मूल नाश में न प्रवृत्त (जवनिका पतन) हो। ४रा. पू.-शत बार धिक्कार है सहस बार धिक्कार है उसको जो मनसा वाचा कर्मणा किसी तरह इन कापुरुषों से डरै । लक्ष बार कोटि बार कोटि बार धिक्कार है उसको जो इन चाडालों के दमन करने में राजा सूर्यदेव के डेरे (एक भीतरी डेरे में रानी नीलदेवी बैठी है और बाहरी तृण मात्र भी त्रुटि करे । (बायाँ पैर आगे बढ़ाकर) डेरे में क्षत्री लोग पहरा देते हैं) म्लेच्छ कुल के और उसके पक्षपातियों के सिर पर यह नी.दे. (गाती और रोती) मेरा बायाँ पैर है जो शरीर के हजार टुकड़े होने तक ध्रुव तजी मोहि काके ऊपर नाथ । की भांति निश्चल है। जिस पामर को कुछ भी सामर्थ्य हो हटावै । मोहि अकेली छोड़ि गए तजि बालपने के साथ । सो. दे. याद करहु जो अगिनि साखि दै पकौ मेरो हाथ । .- धन्य आर्यवीर पुरुषगण ! तुम्हारे सो सब मोह आज तजि दीनों कीनो हाय अनाथ ।।१।। सिवा और कौन ऐसी बात कहेगा । तुम्हारी ही मुजा के भरोसे हम लोग राज्य करते हैं । यह तो केवल तुम प्यारे क्यों सुधि हाय बिसारी? लोगों का जी देखने को मैने कहा था। पिता की दीन मई बिड़री हम डोलत हा हा होय तुमारी ।। वीरगति का शोच किस क्षत्रिय को होगा " हाँ जो हम कबहुँ कियो आदर जा तन को तुम निज हाथ पियारे । ताही की अब दीन दशा यह कैसे लखत दुलारे । लोग इन दुष्ट यवनों का दमन न करके दासत्व स्वीकार आदर के धन सम जा तन कह निज अंकन तुम धर्यो । करें तो निसंदेह दु:ख हो । (तलवार खींच कर) भाइयों चलो इसी क्षण हम लोग उस पामर नीच यवन ताही कह अब पर्यो धुर में कैसे नाथ निहार्यो ।२ के रक्त से अपने आर्य पितरों को तृप्त करें। प्यारे कितै गई सो प्रीति ? चलहु बीर उठि तुरत सबै जय ध्वजहि उड़ाओ । लेहु म्यान सो खंग खींचि रनरंग जमाओ । इकहयो रहयो जो छिन नहिं तजिहै मानहु वचन प्रतीति। ! परिकर कसि कटि उठो धनुष पै धरि सर साधौ । सो मोहि जीवन लौं दुख दीनो करी हाय विपरीति ३ केसरिया बानो सजि सजि रनकंकन बाँधौ । जौ आरज गन एक होइ निज रूप सम्हारै। तजि गृह काहहि अपनी कुल मरजाद विचार। सोम.-भाइयो महाराज का समाचार तो आप तो ये कितने नीच कहा इनको बल भारी t%AM नील देवी ४५ (कुमार सोमदेव चारपूतों के साथ बाहरी डेरे में आते हैं।