पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोप को पूछता हूँ। थे। तो उसका नाम गोप महाशय हुआ वृद्ध गोप-- हे भगवान् ! तुम में कितना अंतर बाबा गोप महाशय का वर्णन न करों क्योंकि वह युवा हो गया है । भला तुझे से और तेरे स्वामी से कैसी पटती सज्जन मनुष्य तो कुछ दिन हुए मर गया या यों समझ है ? मैं उसके लिये कुछ भेंट लाया हूँ। बता तेरी लो कि स्वर्ग को गया । उनके साथ कैसी निभती है? वृद्ध गोप- भगवान न करे ! वही लड़का तो गोप- किसी भांति निभ जाती है । मैं अपने जी मेरे बुढ़ापे की लकड़ी था. मेरे अँधेरे घर का दीपक था । में नौ दो ग्यारह होने की ठान चुका हूँ और जब तक कुछ गोप- मेरी सूरत तो कहीं लकड़ी या दिये से दूर भाग न लूंगा कदापि दम नहीं लूंगा । मेरा स्वामी नहीं मिलती ? - बाबा तुम मुझे पहचानते हो ? पूरा जैन है । उसे मेंट दोगे ! हुह, उसे फाँसी दो । मैं वृद्ध गोप- शोच है कि मैं आप को नहीं उसी नौकरी में भूखों मरता हूँ-नेक मेरी दशा तो पहिचानता, किंतु ईश्वर के लिये मुझे शीघ्न बतलाइए देखो कि कोई चाहे तो मेरी नसों को हर एक अँगुली को कि मेरा लड़का (भगयान ससकी आत्मा को सुख दे !) गिन ले । बाबा बड़ी बात हुई कि तुम यहाँ आ गए । जीता है कि मर गया? चलो अपनी भेंट बसंत महाराज को दो जो अच्छी नई गोप- बाबा तुम मुझे नहीं पहिचानते ? नई वर्दियाँ बाँटता है । यदि मुझे इसकी नौकरी न वृद्ध गोप- साहिब मैं तो बिल्कुल अंधा हूँ | मिली तो जहाँ तक कि ईश्वर के पास पृथ्वी है मैं भाग और तुम्हें नहीं पहिचान सकता । जाऊँगा । अहा ! मेरा भाग्य कैसा प्रबल है ! देखो वह गोप- और न यदि तुम्हारे आँख होती तो तुम आप चले आते हैं । बाधा इससे कहो, क्योंकि यदि मुझे पहिचान सकते । यह बड़े बुद्धिमान पिता का काम अब मैं एक दम भी जैन की नौकरी करूं तो मैं उससे है कि अपने लड़के को पहिचान लें । अच्छा बूढ़े बाबा अधम । मैं तुम्हारे बेटे का हाल तुमसे कहूँगा, मुझे आशीर्वाद (बसंत लोरी तथा दूसरे भृत्यों के सहित आता है) दो, अभी सच्चा हाल खुल जायगा । रुधिर अधिक दिन बसंत-अच्छा यों ही करो-परंतु देखो ऐसी तक नहीं छिप सकता, लड़का कदाचित छिप सके शीघ्रता से सब प्रबंध हो कि अधिक से अधिक पाँच बजे परंतु अंत को मुख्य बात प्रकट हो जाती है । (घुटने के तक ब्यालू तैयार हो जाय । इन पत्रों को डाक में डाल बल झुकता है)। आओ, वर्दियाँ झटपट बनवा लो और गिरीश से जाकर वृद्ध गोप-भाई उठो यह क्या बात है कहो कि अभी मेरे घर आवें । मुझे निश्चय है कि तुम मेरे लड़के गोप नहीं हो । (एक नौकर जाता है) गोप- ईश्वर के लिये अब अधिक मूर्ख मत गोप- बाबा - बनो और मुझे आशीर्वाद दो । मैं वहीं गोप हूँ जो पहिले वृद्ध गोप- ईश्वर आपको चिरायु करै । तुम्हारा लड़का था, अब तुम्हारा बेटा है, और आगे बसंत-(धन्यवाद पूर्वक) तुम्हें मुझसे कुछ तुम्हारा बच्चा कहलावेगा । काम है? वृद्ध गोप- मैं कैसे जानूं कि तुम मेरे बेटे हो ? वृद्ध गोप-धर्मावतार यह दीन बालक भेर गोप-मैं नहीं जानता कि तुम्हारी समझ को | पुत्र - क्या कहूँ पर महाजन का नौकर गोप मैं ही हूँ और भली गोप-दीन बालक नहीं महाराज वरंच धनिक भाँति जानता हूँ कि तुम्हारी पत्नी मागधी मेरी माता है । महाजन का मनुष्य जो इस बात को चाहता है जैसा कि वृद्ध गोप- निस्सन्देह उसका नाम मागधी | मेरा पिता विवरण के साथ कहेगा कि है । मैं शपथ से कह सकता हूँ कि यदि तू गोप है तो मेरे वृद्ध गोप- इसे नौकर की बड़ी इच्छा है ही मांस और रुधिर से है । वाह वाह तेरे डाढ़ी कितनी और - लंबी निकल आई है ! जितने बाल तेरी टुइडी पर हैं गोप- सचमुच महाराज मुख्य बात वह है कि मैं उतने तो मेरे घोड़े दमनक की पोंछ पर भी न होंगे। जैन के यहां नौकर हूँ और इच्छा रखता हूँ जैसा कि मेरा गोप- तो इससे मालूम होता है कि दमनक की बाप कहेगा कि पोंछ बढ़ने के बदले दिन पर दिन भीतर घुसी जाती है । वृद्ध गोप–महाराज इसकी और इसके स्वामी मुझे स्मरण है कि जब मैंने उसे अंतिम बार देखा था की जरा भी नहीं पटती तो उसकी पोंछ के बाल मेरी डाढ़ी के बाल से कहीं बड़े गोष-मैं थोड़े में सच्ची कहे देता है कि जैन ने भारतेन्दु समग्र ४९८