पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५९२

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बैठता हूं।) सं.- तर्हितु सुस्वागतं ते । आगच्छ । आप ढुंढा के कुल में पैदा हुए है ?) माधवनंदन । (तब आपका स्वागत है। आइए भं.-नाहं जयपुरी । (मैं जयपुरी नहीं हूं।) माधवनंदन जी!) सं. क : कथयति भवान् जयपुरी, दिल्लीपुरी, भं. -हंत, प्रणाम करोमि । हा हंत । प्रणाम गोरक्षपुरी, गिरिभरितीति ? (कौन कहता है कि आप करता हूं।) जयपुरी, दिल्लीपुरी, गोरखपुरी, गिरि, भारती हैं ?) सं.-आस्यता स्थीयताच । (आइए, भं.- तर्हि न सुद्रो मया ढुंढाशब्दार्थ : । (तब तो विराजिए!) मैंने टुढा शब्द का अर्थ नहीं समझा ।) भं.-हं हं हं हं, भवानेव तिष्ठतु । (ह : ह : सं.-ढुंढानाम्न्या राक्षस्या एव होलिकापर्व । ह : आप भी बैठिए ।) (ढुंा नाम की राक्षसी का ही यह होलिका पर्व है।) सं.-नाय कालो व्यर्थशिष्टाचारस्य, तत भं.-आ:! पुनरपि मामाक्षिपसि स्थीयता, इदमासनं (यह व्यर्थ शिष्टाचार का समय राक्षसवंशकलंकेन ! मधुनंदन : मेवोक्त नाहं मधु- नहीं है अत : बैठिए । यह आसन है।) वंशीय, माधवनंदनोहं । (ओह, फिर राक्षस वंश का भं.- इदमासनमास्ये। मैं इस आसन पर कलक लगाकर मुझ पर आरोप करता है। मैंने मधुनंदन कहा ; मैं मधुवंशी नहीं हूँ, माधवनंदन हूं।) (उभावुपनिशत :) सं.--- भवतु, केन साकं रस्यसे होलिकाक्रीड़: । (दोनों बैठते हैं।) (अच्छा, किसके साथ होली खेलेंगे ?) सं.-किमयं निर्गतोसि? (किसलिए निकले भं.-- यो मिलिष्यति-उदारचरिताना तु वसुधैव हैं) कुटुम्बकं । (जो भी मिल जायगा, विश्व परिवार है मं.- कुत : जननीजठरकुहर पिटरात गृहाता । उदार वृत्त वालों का ।) (कहां से? घर से या माता की गर्भ गठरी से ?) सं.- कया सामग्रया भवान् रिरसु : ? (किस सं. -पूर्वतस्तु निर्गत एवं विभासि, परत : चीज से आप होली खेलेंगे ?) पृच्छामि । (गर्भ गठरी से ही निकले जान पड़ते हो; भं.-- धवलधूलिरक्तपौडरश्यामपंकपीता- पहला प्रश्न फिर पूछता हूं किस लिए निकले हो ! | गरुजादिद्रव्यै : । अंतरच गुलाश्च चोवा चंदनमेव च । भं..- होलिका रमणार्थ। (होली खेलने के अबीर : पिचकारी चेति वाक्यात् । (सफेद धूल, लिए) लालपाउडर, कालेकीचड़, पीले अगुरु आदि चीजों से सं. -- हहा! अस्मिन् घोरतरसमयपि भवादृशा और चोया चंदन से भी । अबीर पिचकारी आदि वाक्यों होलिका रमणमनुमोदयंति न जानासिंह नायं समयो से ।) होलिकारमणस्य ? भारतवर्षधने विदेशगते. क्षुत् सं.- अधुना, भारते ताइक, कीर्तिकर्तारी न चामपीडितेच जनपदे कि होलिकारमणेन ? (वाह ! संति, धवलधूलि : कुत आगमिष्यति ? (आजकल ऐसे कठिन समय भी आप जैसे लोग होली खेलने का भारत में वैसे कीर्तिशाली नहीं रह गये हैं, सफेद धूल समर्थन करते हैं, यह नहीं जानते कि यह समय होली कहां से आयेगी ?) खेलने का नहीं। भारतवर्ष का धन विदेश जाने से भं.- न ज्ञात भवता ? चुंगीरचित राज मार्गत : जनता भूख प्यास से पीड़ित है । यह क्या होली खेलने (आपको मालूम नहीं ? चुंगी रचित शाही सडंक से ।) का समय है ?) सं.- भवतु राजमार्गतो, देवमार्गतो वा, किन्तु भं. .-- अस्मादृशा गृहे सर्वदैव होलिका, नाहं | धवलधूलि : कुतस्तत्र निरंतरसेककर्मप्राचुर्यात् ? (शाही लोकरोदनं नृणोमि । लोकास्तु सर्वदैव रोदनशीना : । सड़क हो या देवताओं की सड़क परंतु बराबर बहुत (हम जैसों के घर सदा होली हैं मैं लोगों का रोना नहीं | छिड़काव होने से वहां धूल कहाँ ?) सुनता । लोग तो हमेशा रोते ही रहते हैं।) भं.--आ : । यधार्थनामन । नास्ति धूल्यभाव : ? भं. तहि भवान ढढावंशजात : । (तो आप ढुंढा भारतेतु प्राय : सर्वेषामेव धूर्तनेत्रप्रक्षेपिता धूलि- के वंश में उत्पन्न हुए हैं ?) मिलिष्यति । (हे अन्वर्थनाम । धूल की कमी नहीं है। भं.-- नाहं इंढिराज : । (मैं हँडिराज नहीं हूँ । भारत में प्राय : सभी की आंखों में धूतों द्वारा झोंकी गयी --- नहि भो. मया उच्यते नहिंतु भवान धृन मिलेगी। दढावसजात : ? (नहीं जी, मैंने तो यह पूछा कि क्या सं.- तर्हि रक्तपौडर'कुत : मेडिकलहालात 70

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