पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५९९

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अथवा दृश्य काव्य सिद्धान्त विवेचन भारतेन्दु बाबू ने महज नाटक ही नहीं लिखे नाट्य कला पर भी एक स्वतन्त्र पुस्तक नाटक लिखी। जिसे उन्होने संस्कृत और अंग्रेजी दोनों के नाट्य ग्रन्थों के आधार पर तैयार किया था। यह पुस्तक मेडिकल हाल प्रेस बनारस से सन् १८८३ में प्रकाशित हुई थी। -सं. उपक्रम मुद्राराक्षस का जब मैंने अनुवाद किया तब यह इच्छा थी कि नाटकों के वर्णन का विषय भी इसके साथ दिया जाय। किंतु एक तो ग्रंथ के बढ़ने के भय से दूसरे कई मित्रों के अनुरोध से यह विषय स्वतंत्र, पुस्तकाकार मुद्रित हुआ। इसके लिखित विषय दशरूपक, भारतीय नाट्य शास्त्र, साहित्यदर्पण, काव्यप्रकाश, विल्सन्स हिंदू थिएटल, लाईफ आव दिएमिनेंट परसन्स, ड्रामेटिस्ट्स ऐंड नोवेलिस्ट, हिस्टी दि इटालिक थिएटर्स, और आर्य दर्शन से लिए गए हैं। आशा है कि हिंदी भाषा में नाटक बनाने वाले का यह ग्रंथ बहुत ही उपयोगी हो। एक तो मनुष्य बुद्धि ही प्रमालिका है। दूसरे मेरी ठीक रुग्णावस्था मे यह विषय लिखा गया है, इससे बहुत सी अशुद्धियां संभव हैं। आशा है कि सज्जनगण गुण मात्र ग्रहण करके भेगकाम सफल करेगे। इसके निर्माण से मुझको जिससे सहायता मिली है उसको धन्यवाद देने की आवश्यकता नही क्योंकि दक्षिण हस्त के परिवर्तमे वाम हस्त जो कार्य करे वह भी निजकृत ही है। चैत्र शुक्ला १५, संवत् १९४० हरिश्चन्द्र समर्पण हे मायाजवनिकाच्छन्न! जगन्नाटक-सूत्रधार! मदंगरंग नायक! नट नागर! जिसने इसे इतने बड़े संसार-नाटक को रचकर खड़ा किया है, जगदंतः पाती वस्तु मात्र उसी को समर्पणीय है, विशेषकर नाटक संबंधी और यह भी उसी के एक अभिमानी जन SAR श्री रामलीला ५५५ 38