पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६१

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वीरचंद्र । यह वीरचंद्र रत्नभ्रमर (रणथम्भौर) के राजा प्रसिद्ध हम्मीर' के साथ खेलता था । इसके वंश में हरिश्चंद्र हुआ । उसके पुत्र को सात पुत्र हुए. जिन में सबसे छोटा (कवि लिखता है) मैं सूरजचंद था । मेरे छ : भाई मुसलमानों के युद्ध में मारे गए । मैं अंधा कुबुदि था । एक दिन कुएँ में गिर पड़ा. तो सात दिन तक उस (अधे) कर में पड़ा रहा. किसी ने न निकाला । सातवें दिन भगवान ने निकाला और अपने स्वरुप का (नेत्र दे कर) दर्शन कराया और मुझ से बोले कि वर माँग । मैंने वर माँगा कि आप का रूप देख कर अब और रूप न देखें और मुझ को दृढ भक्ति मिले और शत्रुओं का नाश हो । भगवान ने कहा ऐसा ही होगा । तू सब विद्या में निपुण होगा । प्रबल दक्षिण के ब्राह्मण-कुल' से शत्रु का नाश होगा । और मेरा नाम सूरजदास, सूर, सूरश्याम इत्यादि रखकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए । मैं ब्रज में बसने लगा । फिर गोसाई ने मेरी अष्टछाप में धापना की इत्यादि । इस लेख से और लेख अशुद मालूम होते हैं, क्योंकि जैसा चौरासी वार्ता की दीका में लिखा है कि दिल्ली के पास सीही गांव में इन के दरिद्र माता पिता के घर इनका जन्म हुआ. यह बात नहीं आई । वह एक बड़े कुल में उत्पन्न थे और आगरे वा गोपाचल में इनका जन्म हुआ । हाँ, यह मान लिया जाय कि मुसलमानों के युद्ध में इतने भाइयों के मारे जाने के पीछे भी इन के पिता जीते रहे और दरिद्र अवस्था में पहुँच गए थे और उसी समय में सीही गाँव में चले गए हों तो लड़ मिल सकती है । जो हो. हमारी भाषा कविता के राजाधिपति सूरदास जी एक इतने बड़े वंश के हैं, यह जान कर हम को बड़ा आनंद हुआ । इस विषय में कोई और विद्वान जो कुछ और विशेष पता लगा सके तो उत्तम हो । भजन प्रथमही प्रथ जगत में प्रगट अद्भुत ब्रह्मराव विचारि ब्रह्मा राखु नाम अनूप॥ पान पिय देवी दियो सिव आदि सुर सुर पाय। कयो दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति अधिकाय ॥ पारि पायन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन । तासु वंश प्रसिद्ध में भौचंद चारु नवीन॥ भूप पृथ्वीराज दीन्हों तिन्है ज्वाला देस। तनय ताके चार कीन्हों प्रथम आप नरेस॥ दूसरे शुनचंद ता सुत सीलचंद सरूप। बीरचंद प्रताप पूरन भयो अद्भुत १. हम्मीर चौहान, भीमदेव का पुत्र था । रणथंभौर के किले में इसी की रानी इस के अलाउद्दीन (दुष्ट) के हाथ से मारे जाने पर सहस्त्रावधि स्त्री के साथ सती हुई थी । इसी का वीरत्व यश सर्वसाधारण में 'हमीर हठ' के नाम से प्रसिद्ध है (तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार) । इसी की स्तुति में अनेक कवियों ने वीर रस के सुंदर श्लोक बनाए है "मुञ्चति मुञ्चति कोष मजति च भजति प्रकम्पमरिवर्ग ।मीर वीर खड्ग त्यजति च त्यजति क्षमामाशु" । इस का समय सन् १२९० (एक हमीर सन् ११९२ में भी हुआ है)। २. संभव है कि हरिचंद के पुत्र का नाम रामचंद्र रहा हो, जिसे वैष्णवों ने अपनी रीति के अनुसार रामदास कर लिया हो। ३. उस समय तुगलकों और मुगलों का युद्ध होता था । ४. शत्रुओं से लौकिक अर्थ लीजिए तो मुगलों का कुल (इससे संभव होता है इन के पूर्वपुरुष सदा से राजाओं का आप्रय कर के मुसलमानों को शत्रु समझते थे या तुगलकों के अनित थे, इससे मुगलों को शत्रु समझते थे), यदि अलौकिक अर्थ लीजिए तो काम-क्रोधादि । ५. सेवा जी के सहायक पेशवा का कुल, जिस ने पीछे मुसल्मानों का नाश किया । अलौकिक अर्थ लीजिए तो सूरदास जी के गुरु श्री वल्लभाचार्य दक्षिणब्राहाण-कुल के थे। ६. 'गोसाई' श्री बिट्टलनाथ जी, श्री बल्लभाचार्य के पुत्र । ७. अष्टछाप यथा सूरदास, कुंभनदास, परमानंद दास और कृष्णदास ये चार महात्मा आचार्य जी के सेवक और दीत स्वामि, गोविन्द स्वामि, चतुर्भुज दास और नंददास ये गोसाई जी के सेवक । ये आठो महाकवि थे । चरितावली ६१७