पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दान करे कुंभ को रस अन्नादिक साथ । चंदन ही के मोन में बैठावे नंदलाल ५१ चना और गोधूम को सतु देइ द्विव-हाथ ।३२ फूलन को मंदिर रने फूलन सेज बनाय । दघि ओदन आदिक सबै ग्रीषम रितु के भोग। तामे थापे कृष्ण को फूल-माल पहिराय १२ देइ तीज दिन विन को नासै भष-भय रोग 1३३ | रितु-फल बहु सब भाति के दधि-ओदन सुखधाम । शियहि पूजिके तीन दिन शिव-हित दै घट-दान । पना घरै सब वस्तु को कहै सेहु घनश्याम ।५३ शिवपुर सो नर पावई भाषत शिव भगवान ॥३४ | शेषादिक की मुख्यता कालिक में जिमि जान । (मंत्र) | तैसेई माधष मास में सोत वस्तु को मान 1५४ चार वरन को दीजिए माधव मैं जल-दान । प्रम विष्णु शिव रूप यह दियो धर्म घट-दान । अत्यज पञ्च पधीन को नीर-दान सुख-खान ।५५ पिता-पितामह आदि तृप्ति होहि परमान ।३५ जे पशु-पक्षिन देत है ग्रीषम में जल-पान । गंध उदक तिल फल सहित पिवन जल-घट देत । ते नर सुरपुर जात हे सुंदर बेठि विमान १५६ अक्षय पात्रं तृप्ति सब दान कियो एहि हेत ।२६ जे अति आतप सो तपे देहु लिन्डे विनाम । ब्रहम-विष्णु-शिव-रूप यह देत धर्म घट दान । छाया-जल बहु माति सों यह पूरन काम १५७ या सों मेरे काम सब पुरवो श्री भगवान ॥३७ गरमी के हित जे करत यापी कूप तड़ाग । देवता को व्यंजन नासन आतप-ताप । | तिनको पुन्य अखंड टते करत न सुरपुर त्याग ।५८ तासो' याके दान सो प्रीति होहि हरि आप ।३८ साधुन को अरू द्विजन-गृह नदी-तीर हरि-धाम । सक्तु प्रजापति देवता मख-हित किय निरमान । जे छावत खाया तिन्हें मिलत श्याम अभिराम ।५९ होहिं मनोरथ पूर्ण सब या सतुआ के दान ॥३९ अथ श्री गंगा सप्तमी इति माधय सुदि सप्तमि कियो कुद्ध जन्दु जल-पान । चार युगादिक तिधिन मैं करि समुद्र असनान । खोइयौ दक्षिण कर्ण ते तातें पर्य महान 150 सो फश पावत मनुज जो करिके पृथ्वी-दान ।४० नाही सो जान्हवि भई ता दिन सो श्री गंग । इन चारिहू युगादि में कछु नहि स्वैये रात तिनको उत्सव कीजिए ता दिन धारि उमंग ।६१ रात खान सो दिवस को पुन्य नास हो जात ।४१ तामें गंगा न्हाय के पूजन कीजे चारु। माधव शुक्ला तीज को श्रीमाधव को जौन गंगा नाम सहस्र जपि लीजे पुन्य अपार ।६२ चंदन चरचहि पावहीं महा नर तौन ।४२ करपूरादि सुगंध सों सुंदर चंदन यासि । अथ वैशाख शुद्ध द्वादशी कृष्णहि देत जो पुन्य नर रहत पाप सो नासि ।४३ सिह राशि-गत होहिं जो मंगल गुरु इक ठौर । चंदन तन धारन किए कृष्णहि सो लखि लेत । मेष राशि-गत दिवसपति शुक्ल पक्ष-जुत और ।६३ तीज दिवस सो मुक्त बै पावत कृष्ण-निकेत ४४ दादशि तिथि में होइ पुनि बितीपात संयोग । शीतल जल नष घटन भरि माल-विजन बहु भांति हस्त डोय नक्षत्र तो होय महा यह जोग ।६४ देत हरिह सो पावई पुन्य फलन की पांति ।४५ प्रात स्नान यामें करे सहित बिबेक विधान पुष्पमाल बहु भांति अस ग्रीषम के उपचार गो सूबरन अपनी बसन देइ द्विजन कह दान ।६५ जल यंत्रादि अनेक विधि करे बुद्धि-अनुसार 18६ | देव होइ सुरपति बने नरपतिद् जग माहि । कृष्ण-हेत जो कछु करै माधव तृतिया पाइ जो मन इच्छित सो मिले यामै संशय नाहि ६६ सो अखंड होके ४७ अथ नृसिंह चतुर्दशी परशुराम को जन्म-दिन पुनि याही दिन जान । माधव शुक्ल चतुर्दशी स्वाती पुनि शनिवार । तिनके हित छ कीलिये दान वरत असमान ॥४८ वनिज करन सिध जोग मैं नरहरि लिय अषतार ६७ छाता जूता आदि सब की वस्तु तु। जो सब जोग कहूं मिले तो पुरन सौभाग । द्विजन देड या तीज को कहि कृष्णार्पणमस्तु ।४९ बिना जोगहू ब्रत कर करि हरि सो अनुराग ।६८ सुकृत जोन यामें करे सो सब अक्षय होय । | सब लोगन को ब्रत उचित चौदस माधष मास । तासों अक्षय तीज यह नाम कहें सब कोय ।५० पे वैष्णव जन तो कर निश्चय ब्रत उपवास ।।५) लदन को धागो कर चंदन ही की माल । । साँझ समै हरि को कर पंचामृत असनान IA Pats

वैशाख माहात्य २७ 5 रहे पुन्य न कबहुं नसाइ ग्रीषम