पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६७५

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इन्हों ने स्वयं अपने लड़के ज़ार को विद्या सिबाई, परंतु इस बात से इन के पिता अप्रसन्न रहते थे । उन्होंने बार को फौजी गवर्नरों और निपुण शिक्षकों के पास विद्योपार्जन के निमित्त बैठाया । इस बात को जार ने अनहित समझ अपने को उस शिक्षा से हटाया और देश देश पर्यटन करने लगे और कुछ काल तक अपनी माता की संबंधिनी स्त्रियों के सहवासी रहे । ये राजकीय प्रबंधों से बहुत प्रसन्न रहते थे । सैनिक कामों में इन का मन कुछ भी नहीं लगता, जो बात रूसी राज दरबार के संपूर्ण विरुद्ध थी । इस विषय में पूर्ण चिंतना और यह कल्पना होने लगी कि इस युवराज के अधिकार में पुराने रूसी समूह क्योंकर रहने पावेगे । यह बात इन के भाई ग्रांडड्यूक कास्टेन्टाइन के लिये परमोपयोगी थी । इन दोनों भाइयों में इस कारण ईर्षा उत्पन्न हुई। सामान्यतः इस बात की चर्चा होने लगी और कभी कभी लड़ाई भी हो जाती थी। एक समय की बात है कि इन के भाई कंस्टेन्टाइन ने जो समुद्रीय सेना के एडमिरल धे, इतनी अधिक शत्रुता इन पर की कि ये कैद कर लिए गए । इस व्यवहार के पल्टे निकोलस ने यही दंड देना कंस्टेन्टाइन को योग्य समझा । इस आपुस के विरोध से इनके पिता को बड़ा शोच रहता था । जब कि सन् १८४३ में अलेकबेंडर का प्रथम पुत्र जन्मा तब निकोलस ने कास्टेन्टाइन से शपथ ली कि वह युवराज का आज्ञाकारी रहेगा । निदान निकोलस ने अपने माने के समय दोनों लड़कों को बुलाकर उन के समक्ष अलेक्जेंडर को राज्याधिकार का तिलक दे दिया और इन दोनों से शपथ ली कि आपुस में विरोध रहित राज्य प्रबंध में सन्नद्ध रहे, जिस से प्रजा और राज्य को हानि न पहुँचे । यह सुन शाहज़ादे ने बड़े बड़े प्रधान मंत्रियों के सन्मुख प्रतिज्ञा की कि राज्य प्रबंध हम भलीभाँति करेंगे और अपने को द्वितीय अलेजेंडर के नाम से विख्यात किया । उसी दिन अपरान्ह समय सब राजकीय और सैनिक कर्मचारियों ने जो सेन्टपीटर्सबर्ग में थे आज्ञाकारिता स्वीकार की और भेटें दीं । एक कौंसिल जो नवीन अलेक्जेंडर के लिए नियत हुई थी उस में यह विचार ठहरा कि जो युद्ध उस से और अन्य राजों से हो रहा है वह हुआ करे । अलेक्जेंडर का प्रथम काम यह था कि उस ने समग्र राज्यभर में अपने नाम और राज्यसिंहासन पर स्थित होने का विज्ञापन दिया और उस में यह आशय प्रगट किया कि मुख्य अभिप्राय मेरा यह है कि जिस प्रकार से पीटर, कैथराइन, अलेक्जेंडर प्रथम के समय से राज्य को प्रभा और वैभव बढ़ती आई है और वैसी ही बढ़ा करे । जेनरल रुड़ीगर को वासं नामक स्थान से बुलाकर राजकीयगार्ड की कमान दी और अपनी शान, शौकत के मुआफिक सेना भरती की; वाणिज्य की उन्नति में भी बड़ी चेष्टा की । राज्य में बहुत से गुलाम जो सरदार लोगों के पास थे उनमें से २३०००000 गुलामों को दासत्व भाव से मुक्त कराया । यही नहीं वरन् उन को पेट भरने का उद्योग भी बतला दिया । निस्संदेह यह काम जार का, जो सन् १८६१ में हुआ था, अत्यंत प्रशंसा के योग्य है । इन्होंने सरकारी कालेज स्थापित किए । देश देश में सभा नियत कराई । फेब्रुअरी सन् १८६८ में पोलैंड गुलामों को भी स्वाधीन किया । इस के करने का अभिप्राय यह था कि पोलेंड के सरदारों का ऐश्वयं न्यून हो जाय, क्योंकि पूर्व में उस भूमि के स्वामी वेही लोग थे । जार की विद्याविभाग की ओर दृष्टि इतनी अधिक बढ़ी थी कि उन्होंने यूरप के कालिजो' के समान अपनी राजकीय पाठशाला में बड़े बड़े पद स्थापित किए थे और यह प्रबंध बड़ा ही उत्तम था कि प्रत्येक सूबे की ओर से मेंबर भरती होते थे । इन की सभा प्रथम सन् १८६५ में हुई थी, जिस से बहुत कुछ उपकार के पलटे अपकार की संभावना भी हुई । जार ने अपनी प्रजा को युद्ध विद्या में बहुत निपुण किया और राज्य में पंचायती कोर्ट न्याय करने को स्थापित कर दिए । सन् १८६६ में इन्होंने बुखार के अमीर से लड़ाई प्रारभ को, जो डेढ़ वर्ष तक होती रही । इस में रूसी लोग विजयी हुए और समरकंद पर अपना अधिकार जमा लिया । सन् १८६८ में जार ने अपना अमेरिका प्रदेश यूनाइटेड स्टेट्स की गवर्नमेन्ट अमेरिका के हाथ १४००००००) रुपये को बेंच दिया । जब फ्रेंच और जर्मन में लड़ाई होने लगी और जर्मन लोगों ने पैरिस नामक स्थान को घेर लिया तब जार ने सन १८५६ के संधिपत्र को (जिस से बल्पक्सी की सीमा बाँधी गई थी) मानना अंगीकार किया । इस से बड़े बड़े राष्ट्रों की बड़ी कठिनता देख पड़ने लगी । सन् १८७१ में इस निमित्त एक कान्फरेन्स हुआ, जिस में जार के इच्छानुरूप संधिपत्र स्थापित हुआ । सन् १८७२ में जब चार बलिनि नगर को गए तो जर्मन और ऑस्ट्रिया के सम्राट से भेंट किया । ये दोनों महाराज सेन्टपीटर्सबर्ग में थे । शाहनशाह को भेंट के लिए निमंत्रित होकर आए थे। उस अवसर में बड़ा उत्सव हुआ था । सन् १८७३ में जेनरल कॉफमैन ने खीवा को अधिकार में लाकर इस का कुछ खंड रूसी महाराज्य में जोड़ा था । सन् १८७४ में इन्हों ने अपने राज्य के चारो ओर चरितावली ६३१