पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७०३

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चित्रकूट (चित्तौर) स्थ रमा कुंड प्रशस्ति: ओनम : श्रीगणेशप्रसादात सरस्वत्यै नम: ।। श्रीचित्रकोटाधिपति श्रीमहाराजाधिराज महाराणा श्रीकुंभकर्ण पुत्री श्रीजीर्ण प्रकारे सोरठ पति महाराया राय श्रीमंडलीक के भार्या श्रीरमाबाई ए प्रासाद रामस्वामि रु रामकुंड कारायिता सवंत १५५४ वर्षे चैत्र सुदि ७ रवौ मुहूर्त कृता : शुभं भवतु । श्रीमत्कुंभ नृपस्य दिग्गज रदातिक्रांत कीत्यं बुधे : कन्या यादव वंश मंडन मसि श्रीमंडलीक प्रिया । संगीतागम दुग्ध सिंधुजसुधा स्वादे परा देवता । प्राद्युम्न कुरुते वनीपक जन के न स्मरत' रमा ।।१।। श्रीमत्कुंभलमेर दुर्ग शिखरे दामोदर मंदिर श्रीकुंडेश्वर दक्षणा श्रित गिरे स्तीरे सर : सुंदर । श्रीमद्भरि महाब्धि सिंधु भुवने श्रीयोगिनी पनने भूय : कुंड मचीकरत्किल रमा लोकत्रये कीर्तये ।।२।। श्रीकुमोभन्षया बुधिनियमित : किं वा सुधा दीधितेनिक्षेप स्त्रिदशैरशोषण भिया किंवाप्सरासुंदर । प्राप्तुं पौर पुरंघ्रि वृंद मभुज मी तलं मानस चित्र रामशर प्रहार भयतोधिह कंडायते ।।३।। यस्मिन्नीर विहारि कोक मिथुन क्रीडासमुन्मीलिते शीताशा वितरेतरेण नितरां विश्लेष मासाद्य वा । तापे नैव तनौ विमर्त्य विरतं सोपान भितिस्फुरत स्वीयांगे प्रतिबिंब संगम वशाइरेपि तीरे वरत् ।।४।। पानीय हार विहार सुंदर सुंदरी वदन निज प्रतिबिंब भूत मितीह निर्मल धीर नीरगमंबुज । आदातु मुद्यत पाणिना जलदोलनेन गत श्रम वितनोति कानन कुंभ पूरणमत्र विस्मय विभ्रमा ।।५।। रसाल तरु मंजुलं पिक विनोद नादोत्कल क्कचित कनक केतकोन्द पराग पिंगांचल । सशीकर सुशीतलं सुरभि वृंद मंदानिलं मदीय मति निर्मल जयति वीर भूमी तल ।।६।। यदिय तट भूतल हसित कुंद पुष्पोज्वलं क्कचिद्विकच मालती कुसुम लोल मँगे ष्कल । क्कचित् शरलसारणी तरल नीरता पेशल स्तवति सुरयोषित किमुत नंदना दव्यल । एतभित्ति तटालयेषु रुचिरोत्कीर्णे : सुरीणां गणै : क्रीडो पागत पौर यौवत रखते रपि । तत्तादृकप्रतिबिंबतै रुपलसन्नागांगना संगिभिमन्ये कुंडमिदं रमा विरचित लोकत्रया दद्भुतं ।।८।। यद्वारुण प्रतिष्ठा समये समुपेत विबुध वृंदस्य । कनकदुकूल विवरणं विदधाति रमेति लोलुपति सुराः ।।९।। यावच्छेष शिर सुशेखरपदं भूभूतधात्र्या मये मेरुमेरु गिरेरुपर्युपरितो ब्रहमादि लोकत्रयं । धत्ते यावदमुत्र वा दिनमणि माणिक्य नौराजनं तावच्चारुतरं रमा विरचितं कुंड चिर' नंदतु ।।१०।। श्री रमा वर्णनं उन्मीलद्गुण रत्नरोहण मही प्रौढप्रभालंकृता सौंदर्यामृत वाहिनी मधुसुहृत्साम्राज्य सर्वस्वभूः । सौराष्ट्रेश्वर यादवान्वयमणे : श्रीमंडलीक प्रभो राज्ञी चारु रमावती वितनुते संगीतमानंददं ।।१।। कुंभब्रहम सुमीरित क्रममगा दुच्छिन्नता यत्क्षितौ तत्पोवृत्य गिरीश भक्ति परमा रम्या रमा भारती । संगीतं भरतादि गोत्र विधिना ब्रहमैक तानोपमा मंदानद विधायक विलसति प्रोल्हासयंति परम् ।।२।। नादा नंद मयी वरोन्नतकरा लोलोल्लसदल्लकी रागा रक्त गिरीश्वर स्वरकला शमोमिरम्यो ज्वला । लीला दोलित राजहंस गमना सद्भोगी भुर्तःसुता पद्मा मोदित मानसा विजयते वागीश्वरी 'श्रीरमा ।।३।। संजाता जलधे विवेक विधुरा धीरेष्वबदादरा चापल्या भिरता प्रमोद मयते या पंकजातस्थितो : । विद्वत कुभ नृपोद्भवा गुण गणा पूर्णा प्रवीणा नदी धैर्य प्रीति मतीति ता विजयते श्रेयो चित श्रीरमा ।।४।। राज दैवत भूधरां तररत श्रीकांतमाराधयत कांतानंदित मानसा यदनिश राधेव चावत्यत : । मेरौ कुंभकृते महीप तनय श्रीमंडलीक प्रिया श्रीदामोदर मंदिर व्यरचयत कैलास शैलोज्वल ।।५।। श्रीरस्तु सूत्रधार रामा । अथ श्रीमहाराज श्रीमंडलीक प्रबंध : । इंदोरनिंदित कुलं बहुबाहुजातं वंशेषु यस्य बसतेरतुलं बभूव । श्रीमंडलेंद्र गिरि रेवतकाधिवासो दामोदरो भवतु व : सुचिर विभूत्यै ।।१।। श्रीमंडलीक दर्शन परितुष्ट मना महेश्वर सुकवि : । श्रीमदपाट बसतिर्गुणनिधिमेनं यथा मति स्तौति ।।२।। आश्लिष्ट : सुर विटपी संप्रति चिंतामणिमया कलित : । लब्ध : सुवर्ण शिखरी मिलिते त्वयि मंडलाधीश ।।३।। सुर विटपि विटप विशाल भुजदलकलित विपुल महाफलं । कवि चित्त चिंतामणि महागुण जाल जन्म महीतल । अनवरत सुर सरिदमलतमजल लुलित सुर शिखरि प्रभं कलयामि मंडल राज महमिह तोष मेमि हिम प्रभ ।।४।। परि कलित : पुरुहूतो धन नाथो नगन गोचरो रचित : । साक्षात् कृतो रतीशस्त्वपि पुरावृत्त संग्रह ६५९