पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७१५

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VềG: । आयरलैंड के एक में मिल जाने के लिये जो नियम बने थे उन के अनुसार भी यह अधिकार मिला था कि यूनाइटेड किंगडम और उस के अधीन देशों की राजसंबंधी पदवी और प्रशस्ति इस संयोग के पीछे वही होगी जो श्रीमती ऐसे राजाज्ञापन के द्वारा प्रकाश करेंगी, जिस पर राज की मुहर छपी रहे । और इस ऐक्ट में यह भी वर्णन है कि ऊपर लिखे हुए नियम और उस राजाज्ञापत्र के अनुसार जो १ जनवरी सन १८०१ को राजसी मुहर होने के पीछे प्रकाश किया गया, हम ने यह पदवी ली "विक्टोरिया ईश्वर की कृपा से ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंण्ड के संयुक्त राज की महारानी स्वधर्मरक्षिणी," और इस ऐक्ट में यह भी वर्णन है कि उस नियम के अनुसार, जो हिंदुस्तान के उत्तम शासन के हेतु बनाया गया था, हिंदुस्तान के राज का अधिकार, जो उस समय तक हमारी ओर से ईस्ट इंडिया कंपनी को सपुर्द था, अब हमारे निज अधिकार में आ गया और हमारे नाम से उस का शासन होगा । इस नये अधिकार की कि हम कोई विशेष पदवी लें और इन सब वर्णनों के अनंतर इस ऐक्ट में यह नियम सिद्ध किया गया है कि ऊपर लिखी हुई बात के स्मरण निमित्त कि हमने अपने मुहर किये हुए राजाज्ञापन के द्वारा हिंदुस्तान के शासन का अधिकार अपने हाथ में ले लिया, हम को यह योग्यता होगी कि यूनाइटेड किंगडम और उस के आधीन देशों के राजसंबंधी पदवियों और प्रशस्तियों में जो कुछ उचित समझे बढ़ा लें । इस लिये अब हम अपने प्रीबी काउंसिल की संमति से योग्य समझ कर यह प्रचलित और प्रकाशित करते हैं कि आगे को, जहाँ सुगमता के साथ हो सके, सब अवसरों में और संपूर्ण राजपत्रों पर जिन में हमारी पदवियाँ और प्रशस्तियाँ लिखी जाती हैं, सिवाय सनद, कमिशन, अधिकारदायक, पत्र, दानपत्र, आज्ञापत्र, नियोगपत्र, और इसी प्रकार के दूसरे पत्रों के, जिन का प्रचार यूनाइटेड किंगडम के बाहर नहीं है, यूनाइटेड किंगडम और उस के अधीन देशों की राजसंबंधी पदवियों में नीचे लिखा हुआ मिला दिया जाय, अर्थात लैटिन भाषा मे "इंडिई एम्परेट्रिक्स" (हिंदुस्तान की राजराजेश्वरी) और अँगरेजी भाषा में "एम्प्रेस ऑव इंडिया"। और हमारी यह इच्छा और प्रसन्नता है कि उन राजसंबंधी पत्रों में जिन का वर्णन ऊपर हुआ है यह नई पदवी न लिखी जाय । और हमारी यह भी इच्छा और प्रसन्नता है कि सोने चाँदी और तांबे के सब सिक्के, जो आज कल यूनाइटेड किंगडम में प्रचलित हैं और नीतिविरुद्ध नहीं गिने जाते और इसी प्रकार तथा आकार के दूसरे सिक्के जो हमारी आज्ञा से अब छापे जायगे, हमारी नई पदवी लेने से भी नीतिविरुद्ध न समझे जायगे. और जो सिक्के यूनाइटेड किंगडम के अधीन देशों में छापे जायगे और जिन का वर्णन राजाज्ञापत्र में उन जगहों के नियमित और प्रचलित द्रव्य करके किया गया है और जिन पर हमारी संपूर्ण पदवियाँ या प्रशस्तियाँ या उन का कोई भाग रहे, और वे सिक्के जो राजाज्ञापत्र के अनुसार अब छापे और चलाए जायेंगे इस नई पदवी के बि भी उस देश के नियमित और प्रचलित द्रव्य समझे जायंगे, जब तक कि इस विषय में हमारी कोई दूसरी प्रसन्नता न प्रगट की जायगी। हमारी बिंडसर की कचहरी से २८ अप्रैल को एक हजार आठ सौ छिहत्तर के सन में हमारे राज के उनतालीसवें बरस में प्रसिद्ध किया गया । ईश्वर महारानी को चिरंजीव रक्खे! जब चीफ हेरलड राजाज्ञापत्र को अंगरेजी में पढ़ चुका तो हेरल्ड लोगों ने फिर तुरही बजाई. इस के पीछे फॉरेन सेक्रेटरी ने उर्दू में तर्जुमा पा । इस के समाप्त होते ही बादशाही झंडा खड़ा किया गया और तोपखाने से, जो दरबार के मैदान में मौजूद था, १०१ तोपों की सलामी हुई । चौंतीस चौतीस सलामी होने के बाद बंदूकी को बाढ़ें दीं और जब १०१ सलामियाँ तोपों से हो चुकीं तब फिर बाढ़ छूटी और नैशनल ऐन्थेम का बाजा बजने लगा। इसके अनंतर श्रीयुत बाइसराय समाज को एड्रेस करने के अभिप्राय से खड़े हुए । श्रीयुत वाइसराय के खड़े होते ही सामने के चबूतरे पर जितने बड़े बड़े राजा लोग और गवर्नर आदि अधिकारी थे खड़े हो गए पर प्रीयुत ने बड़े आदर के साथ दोनों हाथों से हिंदुस्तानी रीति पर कई बार सलाम करके सब से बैठ जाने का इशारा किया । यह काम श्रीयुत का, जिस से हम लोगों की छाती दूनी हो गई, पायोनीयर सरीखे अंगरेजी समाचार पत्रों के संपादकों को बहुत बुरा लगा, जिन की समझ में वाहसराय का हिंदुस्तानी तरह पर सलाम करना बड़े हेठाई और ल्ज्जा की बात थी । खैर, यह तो इन अंगरेजी अखबारवालों की मामूली बाते हैं । श्रीयुत वाइसराय ने जो उत्तम ऐड्रेस पढ़ा उस का तर्जुमा हम नीचे लिखते हैं :- दिल्ली दरबार दर्पण ६७१