पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७२७

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900 कलियुग का प्रारंभ पुलोम के समय तक भागवत के मत से ३७३४, ब्रहमाण्डपुराण के मत से ३६५२, वायुपुराण के मत से ३६०६. जैनों के मत से २९५५ और चीन और ब्रहमा के मत से २५६८ वर्ष से है । अँगरेजी विद्वानों के पुराणों के अनुसार इस समय तक पुलोम का समय जोड़ कर एक सम्मति है कि कलियुग बीते ५००० वर्ष लगभग हुए, परंतु इस मत को वे सत्य नहीं मानते, क्योंकि फिर आप ही लिखते हैं कि स्वायंभु मनु को हुए ५८८२ वर्ष और ववस्वतमनु को ४८२७ वर्ष हुए । युधिष्ठिर के ३०४४ संवत् बीते विक्रम का संवत चला और विक्रम के १३५ वर्ष पीछे शालिवाहन का शाका चला। ऊपर जो कालनिर्णय में विद्वानों के परस्पर विरुद्ध मत वर्णन किए गए इस से यह बात प्रसिद्ध होगी कि प्राचीन समय निर्णय करना कितना दुरुहय है, इस के आगे जो ब्रहमा से लेकर सुमित्र पर्यत नामावली दी जाती है उसके मध्यगत काल का निर्णय न कर के सुमित्र के समय से जो हमारे मत के अनुसार २००० वर्ष बीते हुआ है काल का निर्णय प्रारंभ करेंगे । ब्रहमा, मरीचि, कश्यप, विवस्वान, श्राददेव, इक्ष्वाकु, विकक्षी १ पुरंजय, काकुस्थ, २ अनेनास. ३ पृथु, ४ विश्वगश्व, ५ अर्द, भाद्आर्द, युवनाश्व, ६ वृहदश्व, ७ कुवलयाश्व, दृाश्व, हर्यश्व, निकुभ, संकटाश्व, ९ प्रसेनजित् युवनाश्व, १० मांधाता, पुरुकुत्स, चित्रिशदश्व, अनारण्य, पृषदश्व, हयश्व, ११ बसुमान, १२ बिध्न्वा, १३, त्रयारण्य, त्रिशंक, हरिश्चंद्र रोहिताश्व, हारीत, १४ चुचु, विजय, १५ रुरुक, वृक, १६ बाहु, सगर, असमंजस, अंशुमान्, दिलीप, भगीरथ, श्रुत, नाभाग, अंबरीष, सिंधुद्वीप, अयुताश्व, १७ ऋतुपर्ण, सर्वकाम, सुदास, कल्माष्पाद, १८ असमक, १९ हरिकवच, २० दशरथ, इलिवथ, विश्वासह, २१ खट्वांग.. दीर्घबाहु, रघु, अज, दशरथ, श्रीराम, २२ कुश, अतिथि, निषध, नल, नाभ, पुंडरीक, क्षेमधन्वा, २३ द्वारिक, अहीनज, कुरुपरिपात्र, २५ दल, २६ छल, उक्थ, २७ बजनाभि, २८ शंखनाभि, २९ व्युथिताभि, ३० विश्वासह, हिरण्यनाभि, ३१ पुष्प, ३२ ध्रुवसधि, ३३ अपवर्म, शीघ्न, ३४ सरु, प्रसव श्रुत, ३५ सुसंध, आमर्ष, ३६ महाश्व, वृहद्वाल बृहदशान, उरुक्षेप, वत्स, वत्सव्यूह प्रतिव्योम, ३७ देवकर, सहदेव, ३८ वृहदश्व, ३९ भानुरत्न, सुप्रतीक, मरुदेव, सुनक्षत्र ४० । केशीनर, ४१ अतरीक्ष, ४२ सुवर्ण, अमित्रजित. वृहद्राज, ४३ धर्म ४४ कृतंजय, ४५ रणंजय, संजय, शाक्य, ४६ क्रोधदान, शाक्य सिंह, ४७ अतुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुंदक, ४८ सुरथ. सुमित्र । महाराज जैसिंह के ग्रंथ के अनुसार सुमित्र के पीछे महारितु, अंतरित, अचलसेन, कनकसेन, महामदनसेन, सुदत वा प्रथम सोणादित्य, (विजयसेन वा अजयसेन वा विजयादित्य) पद्यादित्य, शिवादित्य, हरादित्य, सूर्यादित्य, शिलादित्य, ग्रहादित्य, नागादित्य. भार्गादित्य, देवादित्य, आशादित्य, कालभोज व मोजादित्य, द्वितीय ग्रहादित्य और बापा । सुमित्र से नाहऋतु तक चार नाम नहीं मिलते और इस क्रम से श्रीरामचंद्र से बापा अस्सी पीढ़ी में हैं । तक्षक से लेकर के बाहुभान वा भानुमान तक आठ राजाओं के नाम कई वंशावली में नहीं मिलता । अनेक ग्रंथकारों का मत है कि इसी तक्षक के समय से ईरान. तूरान तुरकिस्तान इत्यादि देशों में इसका वंश राज करता था और तुरकिस्तान का प्राचीन नाम तक्षकस्थान बतलाते हैं और यूनान में जो अर्तक्षर्क नामक राजा हुआ है वह भी इसी तक्षक का नामांतर मानते हैं। राजा जयसिंह का मत है, कनकसेन के समय में अर्थात सन् १४४ में सौराष्ट्र देश में इस वंश का राज १ नामांतर काकुस्थ । २.३ ना. अनुपृथु । ४ ना. विश्वगंधि । ५ ना. चंद्र । व ना. स्वसव या प्रव । ७ ना. धुघुमार । ८ संकटाश्व के पीछे वरुणश्व और कृशाश्व दो नाम और मिलते हैं । ९ ना. सेनजित । १० ना. सुबंधु इन को चक्रवर्ती लिखा है । ११ ना. महण या अरुण । १२ ना. त्रिविधन १३ ना. सत्यव्रत । १४ ना. चप, किसी पुस्तक में चप के पीछे सुदेव तब विजय लिखा है । १५ ना. भसक । १६ ना. बाहुक । १७ अतुपर्ण के पीछे किसी पुस्तक में नल. तब सार्वकाम लिखा है । १८ ना. आमक । १९ ना. मूलक । २० दशरथ, और इलिवथ दो के बदले किसी पुस्तक में ऐडाबिड़ एक ही नाम लिखा है । २१ ना. खरभंग । २२ कुश के समय से अनेक ग्रंथकार द्वापर की प्रवृत्ति मानते हैं (इन्हीं कुश का एक पुत्र कर्म नामक था जिस से कछवाहे लोग अपनी वंशावली मानते है ।) २३ ना. देवानीक । २४ ना. अहीनग । २६ ना. बल । २५ ना. रणच्छल । २७ बजनाभि के पीछे कोई अर्क तब शखनाभिी को लिखता है । २८ ना. सगण । २९ ना, विधूत । ३० ना. विशिवाश्य । ३१ ना. पुष्य । ३२ ध्रुवसंधि और अपवर्म के बीच में कोई सूदर्शन नामक और एक राजा मानता है । ३३ ना. अग्निवर्म । ३४ ना, मनु । ३५ ना, MA उदय पुरोदय ६८३ 46