पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३०

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weke दूसरा अध्याय कल्लभी वंश की रात्रि का अवसान हुा । उदयपुर के इतिहास को यहाँसे शंखला बंधी । पूर्व में लिस आए है कि बल्लभीपुर को यवनों ने वेरा और राजा शिलादित्य ने सकुटुंब सपरिवार वोरों की गति पाया । अब और सीमतिनीगण राजा की सहगामिनी हुई. किंतु रानी पुष्पवती (वा कमलावती) मात्र जीवित रही। रानी पुष्पवती चंद्रावती नगर (सांप्रत आयूनगर) के राजा की दुटिता थी । वल्लभोपुर के आक्रमण के पूर्व ही यह रानी गर्भवती खेकर अपने पिता के राज में जगदा (आशांम्विका) के दर्शन को गई थी और वहाँ से लौटती समय मार्ग में अपने प्राणवल्लभ और बल्लभीपुर का विनाश सुना और उसी समय अपना प्राण देना चाहा । परंतु बीरनगर की एक ब्राहमणो लक्ष्मणावती जो रानी के साथ थी उसके समझाने से प्रसव काल तक प्राण धारण का मनोरय कर के मालिया प्रदेश के एक पर्वल की गुहा में कालयापन करना निश्चय किया । इसी गुह्य में गुहा का जन्म हुआ और रानी ने सद्य :जात संतान उस ब्राहमणी को देकर आप अग्नि-प्रवेश किया । मरती समय रानी ब्राहमणी को समझा गई थी कि इस पुत्र को ब्राहमगोचित शिक्षा देकर भत्रिय कन्या से व्याह देना । लक्ष्मगावती ब्राहमणी उस बालक का लालन पालन करने लगी और देषियों के भय से भाडेरगढ़ और पराशर वन में कम से रही । गुहा में जन्म होने के कारण बालक का नाम भी गुहा (ग्रहादित्य वा केशवादित्य) रक्या । गुहा की प्रकृति दिन दिन अति उत्कट होने लगी और बहुत से वनवासी बालकों को इन्होंने अपना अनुगामी बना लिया । इसी वृत्तात पर उस देश में यह कहावत अब भी प्रचलित है कि सूर्य की किरण को कौन छिपा सकता है। मेवाड़ को दक्षिण सीमा पर ईदर के राज्य पर उस समय भीलों का अधिकार था और उस समय के भीलों के राजा का नाम मंडलिका था । प्रतिपालक शातिशील माहमणों के साथ गुहा का जी नहीं मिलता था। इस से सम स्वभाव उग्र प्रकृति वाले भीलों से अपनी उद्दड प्रचंड प्रकृति की एकता देखकर गुहा उनी लोगों के साथ वन घूमते थे और काल-क्रम से भीलों के ऐसे स्नेहपात्र हो गए सधन पर्वत ईदर प्रदेश भीलों ने इनको समर्पण कर दिया । अबुलफवल और भट्ट गण गुहा के भील-राजप्राप्ति का वर्णन यों करते हैं । एक दिन खेल में मौत के लोग एक बालक को राजा बनाना नाहते थे और सब ने एक वाक्य होकर गुहा ही को राजा बनाना स्वीकार किया । एक भील के चालक ने बट से अपनी उंगली काट के ताजे लहू से गुहा के सिर में राजतिलक लगाया । यह खेल का व्यापार पीछे कार्यत : सत्य हो गया. श्योकि भील-राजा मंडलिका ने यह समाचार सुन कर प्रसन्न हो कर ईदर का राज्य गुहा को दे दिया । कहते हैं कि गहा ने व्यर्थ भीलराज मंडलिका को पीछे से मार डाला । गुहा के नाम के अनुसार उन के वश के लोग गोहिलोट (गहिनौत वा गिहलोट) कहलाए । टॉड साहब कहते हैं कि गहिलोट ग्राहिलोत का अपभ्रश है। गुहा (केशवादित्य) के पुत्र नागादित्य हुए । इन्हीं ने पराशर पन में नागडद नामक एक बड़ा हद बनवाया । इन्हीं के नाम के कारण लक्ष्मणावती ब्राहमणी के संतान वा यह वन और तालाब सब नागदहा के नाम से प्रसिद्ध है और सिसोधियों को भी नागदहा कहते हैं । नागादित्य के भोगादित्य । इन्होंने कटुिला नदी पर पक्का घाट बनाया और इंद्र सरोवर नामक तालाब का जीर्णोद्धार किया । पूर्वोक्त ताग इन के नाम से अप तक भाडेला कहलाता है । इन के पुत्र देवादित्य, जिन्हों ने देलवाड़ा ग्राम निर्माण किया और उन के आशादिश्य जिन्होने शहाइपुर नगर वसा कर अपनी रावधानी बनाया । यह अहाड़पुर अब राणा लोगों का समाधिस्थण है । कहते हैं कि आहाइपुर में जो गगोदर तीर्थ है वह इसी राजा का निर्माण किया है और इन्हीं की भक्ति से उस में गंगा जी का आविर्भाव हुआ था । उस प्रांत में इस तीर्थ का बड़ा माहालय है । यह तीर्थ उदयपुर से एक कोस पूर्व की ओर है । आशादित्य के पुत्र कालभोजादित्य और उन के पुत्र ग्रहादित्य (या दिलीय नागादित्य) । वास गाँध इन्की के नाम से प्रसिद्ध है । गहा राजा से लेकर नागादित्य पर्वत छ (टॉर साहब के मत से साल) राजाओं ने इसी पर्वत भूमि का राज्य किया. पर इन में से कोई अत्यन्त प्रसिद्ध न था. किंतु नागादित्य का पुत्र अप्पा बल प्रसिद्ध और नामी मनुष्य हुआ. परंच उदयपुर के राज का इसे मजस्तंभ कहे तो योग्य न होगा । वाया का भारतेन्दु समग्र ६८६