पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७३१

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वर्णन उदयपुर से जो लिख कर आया है उस हम यहाँ पर अधिक प्रकाश करते है । "पहादित्य के वाष्प नामक पुत्र हुआ । कहते हैं कि वाष्प नंदी गण के अवतार थे । यह कथा सविस्तर वायु पुराणान्तर्गत एकलिंग- गावत्म्य में सिती है । अव राजा ग्रहादित्य के एक शत्रु बजावल नाम राजा ने पासा नगर को आन आवर्तन हिया जहां राव प्रादित्य बरे पराक्रम के साथ मारे गए और पासा में बजावाल का अधिकार हो गया तब आपति-काल अवलोकन कर प्रमरवशोदय ग्रहादित्य की राजी ने अपने पुत्र पाप को शिशुता के भय से निव पुरोहित वशिष्ठ के गुढ में गोपान कर पिहित रहना स्वीकार अया । बहुत समय व्यतीत होने पीछे वाण ने वशिष्ठ की गो-चारन का नियम लिया । लिखा है कि उस गो निकर में एक कामधेनु नाम घेन पी. सो जब वाष्य गो-चारन से लाते वहाँ उक्त गाय एक येणु-चय में प्रवेश करती । वहाँ एक स्फटिक का लिंग था उस पर अपने स्तनों से दुग्ध अवती । इस वास्ते गुरुपत्नी ने एक दिन वाण को उगालम दिया कि इस धेनु के स्तनों में दुग्ध नहीं सो कहाँ जाता है । दितीय दिवस वाप्य ने उस गाय को दृष्टि से पिहित न होने दिया । वह सुरभी खो शिव लिग पर पूर्वोक्त दुग्ध अवने सगी अरु वाण ने इस चरित्र को देख साक्षी बनाने को हारीत नामा ऋषि भूगी गण का अवतार लिखा है वहाँ तपस्या करते हुथे, को देख वाण ने निमवण कर वह चरित्र दिखाया । जब भूगी गण ने कहा कि हे पाष्प, इस श्रीमदेकतिगेश्वर के दर्शनार्थ सो में यहाँ ऐसा कठिन तप करता था अरु तु भी इन्दी या सेक्क नंदीगण का अंशावतार है, तब वाष्प को भी स्वरूपवान हुधा । फिर श्रीशंकर की स्तुति कर धर पाय हारीत ऋषि तो केलास सिधारे और वाष्ण ने राज्य की अपेक्षा करी । इससे उन को शंकर ने वरदान दिया कि तेरा शरीर अभिन्न और महत्तर होगा और तुझे इस महरि के पर्वत में खनन करने से बहुत द्रव्य मिलेगा, जिससे सेना एकत्र कर अरु चित्तौड़ का राज्य अपने अधिकार में कीजियो और जान से तुम्हारे नाम पर रावल पद प्रख्यात रहेगा । यह लिग प्रादुर्भाव विक्रमार्क गताब्द २९० वैशाख कृष्ण कृष्ण १ को हुजागा, सो उक्त महीने की इसी तिथि को अब भी प्रादुर्भावोत्सव प्रति वर्ष होता है । फिर राकल वाष्य ने इण्याज्ञा ले द्रव्य निष्कासन कर महत्तर सेना बगाय चित्तौड़ के राजा मानमोरी को जय किया और उसी दुर्ग को जानी राजधानी बनाया। इस मडिपाल ने समस्त भारतवर्ष को विजय किया ।" वापा के विषय में ऐसे ही अनेक आश्चर्व उपास्त्रान मिलते है । पृथ्वी पर जितने बड़े बड़े राजवंश है उन में ऐसे कोई भी न होंगे जो कवि जनों की विचित्र कल्पना से अलंकृत न हो, क्योंकि उस समय में उन के विषय में विविधि देवी कल्पनाओं का आरोप ही मानो उन के प्राचीनता ओर गुरुत्व का मूल था । रोम राज्य के स्थापनकता रमूलस देवता के पुत्र थे और बाघिन का दूध पी कर पले थे । ग्रीस राज्य के हयूलिस और इंगलैण्ट राज्य के अथर राजाओं के दैत्यों से युद्ध इत्यादि अनेक अमानुष कर्म प्रसिद्ध है । जगद्विजयी सिकदर की दो सौग यी । औफार के अफरासियाब ने जब देव सदृश अनेक कर्म किए, तो हिंदुस्तान के बड़े-बड़े उदयपुर, नेपाल, सितारा, कोल्हापुर, ईजानगर, इंगरपुर, प्रतापगढ़ और आलीराजपुर इत्यादि राजवंशों के मूल पुरुष पापा के विषय में विचित्र बातें लिखी हो तो कोन आश्चर्य की बात है । वापा सैकड़ों राजकुल के आदि पुरुष, लोकगीत, सभ्रम-भाजन और चिरजीवी, फिर उनके परिव अलौकिक घटनाओं से क्यों न संघटित बापा वाल्यकाल से गोचारण करते थे. यह पूर्व में कह आए है। कहते है कि शरत्काल में गोचारण के हेतु वन में गमन करके वापा ने एक साथ छ सो कुमारियों का पाणिग्रहण किया । उस देश में शरद ऋतु में बालक और बालिका गन बाहर जा कर भूला झूलते है । इसी रीति के अनुसार नागेंद्रनगर के सोलखी राजा की क्वारी कन्या अपनी अनेक सखियों क साथ भूलने को आई थी. किंतु उन के पास डोरी नहीं थी कि वह मूला बाँध । वाया को देखकर उन सबों ने इन से डोरी मांगी । इन्होंने कहा पहिले व्याह खेल खेलो तो डोरी दें बालिका लोगों के हिसाब सभी खेल एक से थे, इस से इन लोगों ने पहिले व्याह खेल ही खेलना आरंभ किया । राजकुमारी ओर वापा की गांठ जोड़ कर गीत गाकर दोनों की सबने सात फेरी किया । कुछ दिन पीछे जब राजकुमारी की व्याड ठहरा तब एक परपक्षा ज्योतिषी ने हाथ देखकर कहा कि इस का तो व्याह हो चुका है। कुमारी का पिता यह सुन के बहुत ही घबड़ाया और इसको खोज करने लगा। पापा के साथ गोपाल गण यह वरित जानते थे, परंतु थापा ने इसके प्रगट करने की उन से शपथ ली थी । यह शपथ भी विचित्र प्रकार की थी। एक गड़े के निकट पापा ने अपने सब संगियों को बैठाया और हाथ में एक एक छोटा पत्थर देकर कहा कि तुम tek SOLNA उदय पुरोदय ६८७