पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४२

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नाचार स्वधर्माचरणे चैव विशा ते सुनियोजिताः । एवमेवापरे बाला: स्त्रियो येन सुरक्षिता : !|३९।। पोषिता: स्वीयदत्तेन अन्नेनैव तथैव ते। मत्वा तमेव ववर्तुस्तेन सन्मुदा ।।४।। इमे लक्ष्मीविलासेन रक्षिता: क्षत्रवंशजा:। शुदा सदाचारयुक्ता बभू दुर्भाग्यशालिनः ।।४१।। येषा कलियुगेपीमे चत्वारो वंशजा स्मृताः । अग्नि: सोमश्च सूर्य्यश्च नाग एते चतुर्विधा: ।।४।। अद्यापि भूमी वर्तते चतुस्सन्तानवर्दका : । दानशूराः सदाचारा भाग्यवत: सुविक्रमा: ।।४३।। इत्यादि । अर्थ – जब परशुराम जी दिग्विजय करने निकले तब सब पृथ्वी आनंदपूर्ण हो गई क्योंकि दुष्टों के भार से पृथ्वी व्याकुल हुई थी और इन्होंने दुष्टों का संहार किया । सब पृथ्वी पर घूमते और बाहुबल से जय करते हुए पंचनद देशों में गए और वहाँ के राजा से बड़ा संग्राम किया । यद्यपि भगवान अकेले थे तथापि वहाँ के राजा की सब सेना मार डाली - उन हत वीरों की स्त्रियाँ और बालकों को लक्ष्मीविलास नामक वैश्व ले गया और धर्मपूर्वक रक्षण किया और उनके पुत्रों का लालन पालन और यज्ञोपवीतादि संस्कार किया । इसी भांति उन मृत वीरों की स्त्रियाँ और बालक ब्राहमण वा शूद्रादि जिन वर्गों के घर गए उनके ऐसे ही आचरण हुए और लक्ष्मीविलास का पालित क्षत्रियों का समूह जो अग्नि, सूर्य, चंद्रमा और नागवंश का था, क्षत्रियसंस्कार पाकर भी वैश्यधर्म में निष्ठ हुआ इत्यादि । इनका विशेष वर्णन भविष्य पुराण के पूर्वाद में जो लिखा है उस से और भी निश्चय होता है कि सब क्षत्रिय हैं । इन श्लोकों की संस्कृत ऐसी ही सहज है कि अर्थ लिखने की आवश्यकता नहीं । सिद्धांत यह है कि वैश्यों की वा दूसरी वृत्ति करनेवाले क्षत्रिय जो पंजाब देश में हैं वे क्षत्रिय ही हैं किंतु परशुराम जी के समय से वहाँ के क्षत्रियों का युद्ध संस्कार छूट गया है और ऐसे लोगों की एक पृथक जाति,खत्री, रोड़े, भाटिये इत्यादि हो गई है। इस विषय के दोनों अध्याय यहाँ प्रकाशित किए जाते हैं । सूतउवाच एवं बहुविधे देश स हत्या क्षत्रियर्षभान् । गतो पञ्चनदे देवो क्षत्रियान्वयसूदन : ।।१।। तत्र प्राप्तान महाशूरान क्षत्रियान रणदुर्मदान् । युयुधे ऽ तिबलो राम: साक्षान्नारायणांशज : ।।२।। जनन्या जनितो लोके क: शूरोयस्तु पार्थिवान । पाञ्चालान जयतो युद्धे विना नारायण स्वयं ।।३।। सर्वान हत्वा महाराजान क्षत्रियान् सिद्विजोत्तम: । रुरुधे पंकजवने यथा मत्त द्विपाधिप: ।४।। एवं हत्वा रणे शूरान तरुणान रणदुर्मदान । पवृत्तो वृद्धबालेषु हन्तुं क्रोधाकुलेक्षण : ।।५।। हाहाकारो महानालीतत्र क्षत्रिय पर्यवे। नार्यो वृद्धाश्च बालाश्च मुमुहुर्भयविहवला : ।।६।। हत शूरेषु बालवृदेषु च क्रमात । अनाथाश्चाभवन सा: क्षत्रियाण्यो हतान्वया: ।।७।। PMORK भारतेन्दु समग्न ६९८