पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७४७

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बूंदी का राजवंश दोहा चार वेद प्रिय चार पद चारहु जुग परमान। जयति चतुर्भुज जासु जग बिदित बंस चौहान । बूंदी राज प्रसिद्ध अति राजपुताना जहँ के भारत हाडा नाम नरेस। यह तिनकी बंसाचली क्षत्रिन सानंद। लिखी अतिहि संक्षेप में ग्रंथन सों हरिचंद ॥ देम। में प्रगट हित बाबू शिवनन्दन सहाय के मुताबिक इसका रचना काल १८८० है । सन् १८८२ में | यह पुस्तक बोधोदय प्रेस, बांकीपुर से पहली बार छपी। - सं. बूंदी का राजवंश बूंदी का राजवंश चौहान क्षत्रियों से है । इस वंश का मूल पुरुष अन्हल चौहान प्रसिद्ध है । भट्ट लोगों के मत से चौहान का शुद्ध नाम चतुर्भुज है । अन्हल अनल शब्द का अपभ्रंश है, क्योंकि अनल अग्नि को कहते है और आबू के पहाड़ पर जो चार क्षत्री वंश उत्पन्न किए गए वे अग्नि से उत्पन्न किये गए थे । जम्स निसिप साहब को सन्देह है कि पार्थिअन (पार्थिव ?) Parthian Dynastyसे यह वंश निकला है । उन्हीं के मत के अनुसार ईसामसीह से ७०० वर्ष पूर्व अनल ने गढ़मडला में राज स्थापन किया । अनल के पीछे सुवाच और फिर मल्लन हुआ (जिसने मल्लनी वंश चलाया ?) फिर गलन सूर हुआ । यहाँ तक कि ईस्वी सन् १४५ में (विराट का सं. २०२) अजयपाल ने अजमेर बसा कर राज किया । इसके पूर्व ८०० बरस और पीछे ५०० बरस ठीक ठीक नामावली नहीं मिलती । विल्फर्ड साहब के मत के अनुसार सन् ५०० ई. के अंत तक १. और पठान शब्द भी इसी से निकला हुआ मालूम होता है, क्योंकि जो हिंदुस्तान के पास के क्षत्रियधर्मा मुसल्मान है वे ही पठान कहलाते हैं। बूंदी का राजवंश ७०३