पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७६

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लतारी । अकि तह निबिड़ में शोभा भई अति ही सुगंध झकोर । मंद मंद मारुत मन मोहत मत्त मधपगन सोर लखि हंस सारस भंवर गुंजत नचत बहु बिधि मोर । 'हरीचद' बृजचंद्र पिया बिनु मारत मदन मरोर ।३६ 'सोभा अति भूलत भई आजु बृदाबन महि । जेवत भीजत हैं पिय प्यारी । एक उतरहिं एक चढ़हि पुनि एक आवहिं एक जहि ।। सावन मास घटा जुरि आई बैठे मोर कतारी । तैसी भूमि सबै हरियारी। मुरछल चवर करत ललितादिक बैठे कंचन धारी । तैसी सीतल चलत बयारी ।। स्यामा-स्याम-बदन के ऊपर 'हरीचंद' बलिहारी ।३७ डोलत कीर कतारी । रि घिरि घोर घमक धन धाए । तैसी दादुर की धुनि न्यारी । बरसत बारि बड़ी बड़ी बूंदन बृज-मंडल पर छाए । दादर की नि चहुँ ओर नैसी बीर-बध छाब देत । दादुर बक पिक मोर पपीहा चातक सोर मचाए । बग-पाति तैसी श्याम घन मैं इंद्रधनुष समेत ।। दामिनि दमकति दसहुँ दिसा सों बह खद्योत चमकाए। जल बरसि नान्हीं नान्हीं बूंदन जिय बढ़ावत हेत । कमित कज कद की कालका केकि कदम सहाए । कहुँ पंथ नहिं सूझत तृनन सों जल हलोरा लेत ।। 'हरीचंद' हरिचंद-नंदन-छवि जब चमकत घन दामिनी प्यारी तबै तुरंत । लखि ति-काम लजाए ।३८ पिय के कंठन लागई बाढयौ मोद अनंत ।। चौताला तैसी झुकी रही तैसे सोभित नवल पतारी ।। स्याम घटा स्यामही हिंडोरो बन्यो, तामैं स्यामा स्याम भूलें जामें अतिही अनंद सों । रहे सारी। तैसोई तमाल कुंज स्याम रंग सोहत गोपी तेहि आप छुड़ावत प्यारी ।। सब मिलि गावें आनंद के कद सों । प्यारी छोड़ावत आप सारी फूल सखि खसि के गिरें । अलि पिक मोर नीलकंठ स्याम रंग सोहैं. सब हिलत दुम अरू डार सोभा लखत ही मन को हरे ।। बेला चमेली कुंद मरुआ अरु गुलाबन के तरै । स्याम श्री यमुना बढ़ गति अति मंद सों । 'हरीचंद' हरि की निरखि छबि महादेव. बह रंग फूले फूल तापै भंवर बहु बिधि गुंजरें ।। | अति आनंद वाढ़यों तहाँ मूलत हैं बृजचंद । स्याम गज-खाल ओढ़ि नाचे गावै छंद सो ३९ सब बृजनारि झुलावहीं कबहुँ तरल कहुँ मंद ।। सखी री ठाढ़े नंद-कमार । सिर मोर मुकुट छबि छाजे । सुभग स्याम घन सुख रस बरसत चितवन मांझ अपार । उनके सुरंग चूनरी राजे ।। नटवर नवल टिपारो सिर पर लाख विलाजन मार । बिछुआ किकिनि सब बाजै । 'हरीचंद' गि बूंद निवारत जब बरसन धन-धार।४० मनु काम नृपति-दल गाजै ।। हिंडोला मनु काम नृप की सैन गाजे जति सब संसार को । मूलत हैं राधिका स्याम सँग नव रंग सुखद हिंडोरे । कियो अचल पूरन प्रम पर्धाह नासि ग्यान-बिकार को। गावत मालव राग रस भरे तान मान मधुरे सुर जोरे । नित एक रस यह ब्रज वसौ श्री श्याम नंदकुमार को । उगि रहीं ब्रजनारि नवेली पंचरंग चीर 'हरीचंद' का बरने कहो या नित्य नवल बिहार को।३४ पहिरि चित चोरे। राग मलार पँचरंग छबि रस जुगल माधुरी बोले भाई गोबर्द्धन पर मोर । कहि न जाइ श्यामल रंग गोरे । सावन मास घटा जुरि आई करत पपीहा सोर । बरसत मंद मंद घन तेहि छन बूंदाबन तरु पुंज कुंज मैं ठाढ़े नंदकिसोर । पंच-रंग बादर सब सुख-बोरे । तैसिहि सँग बृषभानु-नंदिनी तन जोरन को जोर । 'हरीचंद' वृषभानुनंदनी कोटिन सीतल चलत समीर सुहायो भरत सुगधि अथोर । ससि-छबि छिन महँ छोरे ।४१ या वृज माहिं सदा चिरजीवै 'हरीचंद' चित-चोर ।३५ बृषभानु-कुमारी लाडिली प्यारी फूलत हैं संकेत हो ।' सँग सुंदर सधी सुहावनी जिन कीनो हरि सों हेत हो । सुंदर साज सिंगार किए सब पहिरे बिबिध रंग चीर हो। हिलि मिलि झुलवहिं लाडिली हो नव रस जमुना तीर हो। सासरी कंजन बोलन मोर। दानि दर्माक दसो दिसि दावत टि झवत छित छोर। 1 भारतेन्दु समग्र ३६