पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७७

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सबै सोहाई नवल बधू मिलि गावत गौरी राग हो । 'हरीनंद' को घन बरसन बाढ़यो सलिल सोहाग हो ।४२ कलेऊ कीजै नंद-कुमार । भई यो यार साह जमना-ह सम्ना मन्त्र द्वार । आज प्रात ही घेर रह्यौ है बरसैगो बड़ी धार । 'हरीचंद बलि बेहि ऐयो भी जोगे सुकमार ।४३ म म पनगा' बरमा धुम धम पिय न्यारी रंग-भौन भोजन रस भीने । फुह फुह पुह बूंद पर छज्जन सो नीर झरे. बानन रंग-भरे दोऊ अरस-परस कीने । नागौर नागनादिदा बिन बहमति हान सीतल जल भारी भरि बीड़ादिक लीने । 'हरीचंद' हँसै गा3 भोजन को सुख पावै. वारि फेरि सखी तून तोरि तोरि दीने ।४४ लाल यह सुंदर बीरी लीजै । हँस हँसि कै नंदलाल अरोगौ मुख ओगार मोहिं दीजै। रंग रयो बाही कीचन में चार मिय कीजै । ग्य बाढ़यो निय की बानन में 'हरीचंद' पिय भीनै ।४५ नानन वरात्र माने नटगज-मात्र, पावस सों बर्बाद बर्बाद कै होड़ सी लगाई। कोकिल कल बसी-धुनि नृत्य कला मोर ननि, पीत बसन चपला दृति छीनत चमकाई । ज्यों ज्यों बरसत सुबेस त्यौं त्यौं रस बरसत. हरि घन गरजत उत इत रहे मृदंग बजाई । 'हरीचंद' जीति रंग रह्यौ आजु ब्रज अखार, हारे घन रीझि देव कुसुमन भर लाई ।४६ SIC Gel Cuidad जैन-कौतूहल अर्हन्नित्यपि जैन शासन रता : (रचना-काल : सन् १८७३) समर्पण प्यारे तुम तो मेरा मत जानते ही हो, इस पचड़े से तुम्हे क्या! यह देखो यह नया तमाशा - वु जैन-कुतूहल नाम का तुम्हे दिखाता हूँ। तुम्हे सौगंद, वाह वाह अवश्य कहना। केवल तुम्हारा हरिश्चंद्र जैन-कौतूहल पियारे दजो को अरहंत ? जय जय जति अषभ भगवान । पूजा जोग मानिकै जग मैं जाको पूर्जे संत । जगत ऋषभ बुध ऋषभ धरम के ऋषभ पुरान प्रमान । अपुनी अपुनी चि सब गावत पावत कोउ नहिं अंत । प्रर्गाटत-करन धरम पथ धारत नाना बेश सुजान । 'हरीचंद' परिनाम तुही है तासों नाम अनंत ।१ हरीचंद' कोउ भेद न पायो कियो यथारूचि गान ।२ जैन कौतूहल ३७