पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कहुँ पथरा बनि बनि बैठो कहुँ बिना सरूप कहायो । पतित-उधारन दीन-नेवाजन यह सब कैसी बानी मंदिर महजिद गिरजा देहरन डोलत धायो धायो । जो साँचे हो तुम अरू सगरे बेदादिक सब साँचे । बादन मैं पोधिन मैं बैठयौ बचन विषय बनि आय । 'हरीचंद' तौ हमहूँ पतित हवै उधरन सो क्यों बाँचे।३३ 'हरीचंद' ऐसे को खोजें केहि थल देहु बताय ।३० अहो यह अति अचरज की बात । लखौ हरि तीन ताग मैं लटक्यौ । जानि बुझि कै बिष के फल को क्यों भूल्यो जग खात। रीझि रह्यौ पानी चाटन पै करम-जाल में अँटक्यौ । सब जानत मरनो है जग में झूठे सुत पितु मात । हाथ नचावत सोर मचावत अगिन-कुंड दै पटक्यौ । 'हरीचंद' तो फिर क्यों नित नित याही मैं लपटात।३४ 'हरीचंद' हरजाई बनिकै फिरत लखहु वह भटक्यौ।३१ कहाँ तोहिं खोजिए ए राम । माया तुम सों बड़ी अहै । मंदिर बेद पुरान जज्ञ जप तप में तो नहि ठाम । तुम्हरो केवल नाम बड़ो है वेद पुरान कहै । उहँ जहँ भाखत तहँ तहँ धावत मिलत न कहुँ विसराम। वस कछ हि तुम्हरा या जग में यह न साँच कह । 'हरीचंद' इन सों कहा बाहर अहै तिहारो धाम |३५ नाहीं तो 'हरिचंद' तुम्हारो ह्वै क्यौं काम दहै ।३२ देखें पावत कौन सोहाग । न जानै तुम कछु हौ की नाहीं । बहुत सोहागिन एक पियरवा सब ही को अनुराग । मूठहि बेद पुरान बकत सब भेद जान नहिं जाहीं । वाचन सब पावन नहि कोऊ धावन करि कार लाग । तुम साँचे हौ कै सपना हौ के ही मूठ कहानी । 'हरीचंद' देखे पहिले हम काको लागत भाग ।३६ प्रेम-माधुरी (अक्टूबर १८७५ में कविवचन सुधा में प्रकाशित । चन्द्र-प्रभा प्रेस में सन् १८८२ में दूसरी आवृत्ति हुई ।) देखन देहुँ न सबै रस आपुहिं लेत है। प्रेम-माधुरी रूप-सुधा इकली ही पियै पियह दोहा को न आरसी देखन देत है ।१ बार बार पिय आरसी मत देखहु नित लाय ।। कूकै लगी कोइलें कदंबन पै फेरि सुन्दर कोमल रूप में दीठ न कहुँ लगि जाय ।। धोए धोए पात हिलि-हिलि सरसै लगे । आरसी सुंदर नंदकुमार । कहुँ मोहित हवै रूप निज, मति मोहिं देहु बिसार ।। बोले लगे दादुर मयूर लगे नाचे फेरि देखि कै सँजोगी जन हिय हरसै लगे 1 सवैया हरी भई भूमि सीरी पवन चलन लागी राखत नैनन मैं हिय मैं भरि लखि 'हरिचंद' फेर प्रान तरसै लगे दूर भए छिन होत अचेत है। फेरि झूमि भूमि बरषा की रितु आई फेरि बादर निगोरे मुकि मुकि बरसै लगे ।२ हु सों सतराति सहेत है। पहिले ही जाय मिले गुन में प्रवन फेरि लाग भरी अनुराग भरी 'हरीचंद' रुप-सुध मधि कीनो नैन पयान है सौतिन की कहै कौन कथा तसवीर भारतेन्दु समग्र ४०