पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८०९

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बादशाह का बनवाया है । नूरजहाँ जहाँगीर के पीछे २० बरस जीती रही और शाहजहाँ पच्चीस लाख रूपया साल इसको देता था । शाहजहाँ ने जैसा राज भोगा और सुख किया और हिन्दुस्तान की बादशाहत को चमकाया, पहले कभी ऐसा किसी और ने नहीं किया था । बत्तीस करोड़ साल इस की आमदनी थी । प्रति वर्ष सालगिरह में डेढ़ करोड़ व्यय होता था । मकानों में सोना और हीरा जड़ा जाता था । इस पर भी मरने के समय यह बयालीस करोड़ रुपया नक्द छोड़ गया था । १६३२ में कंदहार के ईरानी सूबेदार अलीमनिखाँ के शाहजहाँ से मिलजाने से कंदहार फिर हिन्दुस्तान के राज्य में मिल गया था, किन्तु इक्कीस बरस पीछे ईरानियों ने फिर जीत लिया । १६४६ में बुखारा भी बादशाह ने जीता । १६४७ में कई बरस की लड़ाई के पीछे दक्षिण में भी शांति स्थापन हुई और अबदुल्ला शाह गोलकुंडे के बादशाह से संधि हो गई । इसी संधि में कोहनूर नामक प्रसिद्ध हीरा बादशाह के हाथ लगा । शाहजहाँ को चार पुत्र थे । दाराशिकोह, शुजा, औरंगजेब और मुराद । दाराशिकोह बड़ा बुद्धिमान, नम्र और उदार था, किन्तु औरंगजेब इस के विरुद्ध दीर्घदर्शी और महाछली था । शुजा वीर था, परंतु अव्यवस्थित था और मुराद चित्त का बड़ा दुर्बल था । १६५७ में शाहजहाँ बहुत ही अस्वस्थ हो गया । दारा के हाथ में राज का शासन था । औरंगजेब ने इस अवसर को उत्तम समझ कर मुराद को बहकाया कि बेदीन दारा से बादशाहत तुम ले लो, हम तुम्हारी सहायता करेंगे और तुम को तख्त पर बैठा कर मक्के चले जायगे । मुराद दारा से लड़ने चला । औरंगजेब भी आगे बढ़ कर उससे मिल गया । १६६२ में बंगाल से शाहशुजा भी फौज ले कर चढ़ा, किन्तु सुलैमान शिकोह (दाराशिकोह के बेटे) से बनारस के पास लड़ाई में हार कर फिर बंगाले चला गया । मुराद और औरंगजेब इधर यशवंत सिंह को जीतते हुए आगरे से एक मंजिल श्यामगढ़ में आ पहुँचे । दारा एक लाख सवार लेकर इन से युद्ध करने को निकला । राजा रामसिंह, राजा रूपसिंह, छत्रसाल आदि कई क्षत्री राजे उसकी सहायता को आए थे और बड़ी वीरता से मारे गए । परमेश्वर को मुसल्मानों का राज्य स्थिर नहीं रखना था इससे हाथी बिचलने से दारा की फौज भाग गई और औरंगजेब ने आगरे में प्रवेश कर के विश्वासघातकता से मुराद को कैद कर के १६५८ में अपने को बादशाह बनाया । अंत में एक दिन मुराद को भी मरवा डाला और सुलैमानशिकोह को भी, जो कश्मीर से पकड़ आया था, मरवा डाला । शुजा लड़ाई हार कर अराकान भागा और वहीं सवंश मारा गया । दारा ने सिंध की राह से अजमेर आकर बीस हजार सैना एकत्र कर के औरंगजेब पर चढ़ाई किया, किन्तु युद्ध में हार गया और औरंगजेब ने बड़ी निर्दयता से उसको मरवा डाला । उसके पुत्र सिपहरशिकोह को ग्वालियर के किले में कैद किया और फिर बहुत से शाहजादों को, जिन का बादशाह से दूर का भी संबंध था, कटवा डाला । कहते हैं कि दाराशिकोह बादशाह होता तो लोग अकबर को भी भूल जाते । इस के पीछे शाहजहाँ सात बरस जिया था । औरंगजेब के राज्य के आरंभ ही से मुसल्मानी बादशाहत का वास्तविक यस समझना चाहिए । जिजिया का कर फिर से जारी हुआ । हिन्दुओं के मेले और त्योहार बंद किए । तीर्थ और देवमंदिर ध्वंस किए गए। इसी से 'तीन पुश्त की कमाई' स्वरूप हिन्दुओं की जो दिल्ली के बादशाहों से प्रीति थी वह नाश हो गई । इधर दक्षिण में महाराष्ट्रों का उदय हुआ । शिवाजी नामक एक वीर पुरुष ने, जो यादवराव का नाती और मालोजी का पुत्र था, दक्षिण में अपनी स्वतंत्रता का डंका बजाया । पहले विजयपुर के राज में लूटपाट कर के अपनी सामर्थ्य बढ़ा कर १६६२ में बादशाही देशों को लूटना आरंभ किया । बादशाही सैनाध्यक्ष शाइस्ताखाँ ने इनके विरुद्ध आ कर पूने में अपना अधिकार कर लिया । किन्तु असम साहसी शिवाजी केवल पच्चीस मनुष्य साथ लेकर एक रात उसके डेरे में घुस गए और शाइस्ता बिचारे प्राण लेकर भागे । शिवाजी ने अबकी पूने से ले कर गुजरात तक अपना प्रताप बढ़ाया और तजौर और मंदराज जीत कर १६६४ में अपने को राजा प्रसिद्ध किया । औरंगजेब शिवाजी के इस साहस से बहुत ही खिसिया गया और जयसिंह के साथ बहुत सी सैना उसे जीतने को भेजी । राजा जयसिंह और शिवाजी से संधि हो गई और उससे मरहठे दक्षिण में बादशाही मालगुजारी की चौथ लेने लगे । १६६५ में शिवाजी दिल्ली आए और औरंगजेब ने जब उन को नजरबंद कर लिया तो कुछ दिन पीछे बड़ी सावधानी से वह दिल्ली से निकल गए । १६६७ में औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की पदवी भेज दी और बीजापुर और गोलकुंडा के बादशाहों से लड़ने को इनको कहला भेजा । शिवाजी इन दोनों बादशाहों से लड़े और अंत में जब संधि हुई तो अपने राज्य का शिवाजी ने सुप्रबंध किया । १६६९ में शिवाजी का प्रभुत्व दक्षिण में स्थिर हो गया था, इससे औरंगजेब ने क्रोध करके महाबत खाँ को बड़ी सैना के साथ उन को दमन करने को भेजा, किन्तु (१६७०) शिवाजी ने उन को परास्त कर दिया । इसी समय सत्तनामी और सिख नामक दो

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बादशाह दर्पण ७६५